नई दिल्ली। इंटरनैशनल ट्रैवल के लिए सबसे व्यस्त दुबई एयरपोर्ट पहले से ही अपनी सर्विसेज के लिए काफी मशहूर है। अब इसमें एक ऐसा फीचर शामिल किया गया है जो किसी साइंस फिक्शन से कम नहीं लगता है। यहां देश में आने और जाने पर आइडेंटिटी वेरिफिकेशन के लिए आइरिस-स्कैनर लगाए गए हैं। कोरोना वायरस महामारी के बीच इंसानों के आपस में संपर्क को कम करने और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का अडवांस्ड इस्तेमाल करने के लिए इस कॉन्टैक्टलेस टेक्नोलॉजी का प्रमोशन किया जा रहा है। यह सेवा पिछले महीने से शुरू की गई है। अब कुछ ही सेकंड में यात्री पासपोर्ट कंट्रोल का काम पूरा करके फ्री हो जाते हैं।
कुछ ही सेकंड का काम
आइरिस डेटा को देश के फेशियल रिकग्निशन डेटाबेस के साथ जोड़ा गया है जिससे यात्रियों को पहचान पत्र या बोर्डिंग पास की जरूरत भी नहीं पड़ती है। एमिरेट्स और दुबई के इमिग्रेशन अधिकारियों के बीच सहयोग से डेटा का एकीकरण किया जाता है और चेक-इन से लेकर बोर्डिंग तक सब एक साथ हो जाता है। एमिरेट्स के बायोमेट्रिक प्राइवेसी स्टेटमेंट के मुताबिक एयरलाइन यात्रियों के चेहरों को उनकी निजी पहचान के डेटा के साथ जोड़ा जाता है, जिसमें पासपोर्ट और फ्लाइट की जानकारी भी होती है और इस डेटा को तब तक रखा जाता है जब तक उसकी जरूरत हो।
सर्विलांस तो नहीं?
इस तकनीक को लेकर सर्विलांस पर चर्चा भी शुरू हो गई है। संयुक्त अरब अमीरात पर पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में इस तरह डेटा कलेक्शन से निजता पर खतरा बताया जा रहा है। एमिरेट्स ने अपने बयान में डेटा को स्टोर करने और इस्तेमाल करने के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है लेकिन बताया है कि चेहरे को छोड़कर दूसरे डेटा का इस्तेमाल एमिरेट्स के दूसरे सिस्टम्स में किया जा सकता है। वहीं, जनरल डायरेक्टोरेट ऑफ रेजिडेंसी ऐंड फॉरन अफेयर्स के डेप्युटी डायरेक्टर मेजर जनरल ओबैद महेयर बिन सुरूर का कहना है कि दुबई का इमिग्रेशन ऑफिस यात्रियों के पर्सनल डेटा को सुरक्षित रखता है ताकि कोई थर्ड पार्टी उसे देख ना सके।
न हो गलत इस्तेमाल
एक्सपर्ट्स को बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल और स्टोरेज के गलत इस्तेमाल का शक रहता है। मैसेच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के आर्टिफिशल इंटेलिजेंस स्टूडेंट जोनाथन फ्रैंकल का कहना है कि सर्विलांस टेक्नॉलजी पर आशंका होती चाहे वह किसी भी देश में हो। हालांकि, किसी लोकतांत्रिक देश में इसमें पारदर्शिता होती, कम से कम सार्वजनिक चर्चा का मौका होता है। आइरिस स्कैन कई देशों में हाल के सालों में प्रचलन में आई है। इससे पहले चेहरे की पहचान की सटीकता और बिना अनुमति इस्तेमाल पर काफी विवाद रहा है।