कोटा। इस भौतिकवादी युग मे कई ऐसे विरले ही होते है जिनके कदम जीवन के हर एक मोड़ पर जनहितकारी होते हैं । कोरोनाकाल के इन संकटकालीन समय मे ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले। कोरोना लगभग अब अपने पैर समेट रहा है, किंतु अभी भी अस्पताल के बेड पर इस संकट को झेल रहे लोगों के लिये प्लाज़्मा जीवनद्रव्य बना हुआ है। जानकारी के अनुसार औसतन रोज़ एक मरीज को प्लाज़्मा की ज़रूरत होती है, जिसके लिए कुछ स्वयंसेवी संस्थायें अभी भी अपना पूर्ण समर्पण देकर मदद के लिए आगे आ रही हैं।
ऐसे वक्त में वो डोनर जो पूर्व में प्लाज़्मा का दान कर चुके हैं, ऐसी ज़रुरत को अवसर मानकर तुरंत एमबीएस पहुँचते हैं और पूर्ण ज़ज़्बे से प्लाज़्मा का दान करते हैं । सोमवार को सेवा का ऐसा ज़ज़्बा पुनः देखने को मिला, जब टीम जीवनदाता की प्रेरणा से पाँच बार प्लाज़्मा का दान करने के बाद कोटा जंक्शन भगतसिंह कॉलोनी निवासी वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रेस क्लब कोटा के पूर्व अध्यक्ष धीरज गुप्ता तेज़ (49 वर्ष) छठवीं बार प्लाज़्मा का दान करने पहुँचे। हुवा यूं कि चित्तौड़गढ़ से आये एक व्यक्ति को कोरोना हो गया और मेडिकल कॉलेज में भर्ती इस मरीज को A पॉज़िटिव प्लाज़्मा की ज़रूरत पड़ी।
लायंस क्लब के जोन चैयरमैन व टीम जीवनदाता के संयोजक भुवनेश गुप्ता बताते हैं कि इस मरीज के कोटा में कोई जान पहचान नहीं थी। इस तरह सोमवार को ही बूंदी के एक मीडियाकर्मी संदीप व्यास की माता मेडिकल कॉलेज में भर्ती रुकमणी दाधिच (74) को व चित्तौड़गढ़ निवासी मनोज शर्मा(45) को प्लाज़्मा लिखा गया और व्यवस्था हेतु तीमारदार डोनर के लिये परेशान नज़र आये। टीम से जुड़े धीरज गुप्ता ‘तेज’ ने पूर्व में ही स्पष्ट कर दिया था कि जब तक एंटीबॉडी है तब तक लगातार प्लाज़्मा डोनेट करेंगें।
इसी भाव से उन्होंने अविलंब टीम की चर्चा के साथ ही एमबीएस पहुँचकर छठवीं बार प्लाज़्मा दिया। रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य और पत्रकारिता संगठन ज़ार से जुड़े धीरज का कहना है कि इस बार बहुत आत्मीय सुख प्रदान करने वाला संयोग रहा। जिनके लिए वे प्लाज़्मा दे रहे हैं, वे उनकी भाई तुल्य है। क्योंकि चित्तौड़गढ़ उनकी जन्मस्थली है।
दूसरे मरीज के तीमारदार के साथ मीडिया में सहकर्मी के रूप में कार्य कर चुके हैं, सो वो भी उनकी माता के समान है। उनका यह भी कहना है कि अब तक बारह मरीज़ो को उनके द्वारा डोनेट किया गया प्लाज्मा चढ़ चुका है, जिससे वास्तव में खून से खून का अनुपम रिश्ता बन गया है। वह सुख कल्पना के परे है। इस कार्य मे नीतिन मेहता, एडवोकेट महिन्द्रा वर्मा व मनीष माहेश्वरी का पूर्ण सहयोग रहा।