अर्नब गोस्वामी पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता- सुप्रीम कोर्ट

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अर्नब को मुंबई हाई कोर्ट ने जमानत ना देकर गलती की

नई दिल्ली। दो साल पहले के सुसाइड के लिए उकसाने के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के इडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को जमानत दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक हाई कोर्ट उनकी एफआईआर को रद्द करने वाली याचिका पर फैसला नहीं सुनाता यह जमानत मान्य रहेगी।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने 11 नवंबर को अर्नब को जमानत देने के कारणों की डीटेल देते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि चार हफ्ते तक अर्नब जमानत पर रहेंगे और उसके बाद भी इस कोर्ट के दरवाजे खुले हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट में जब अर्नब की जमानत याचिका खारिज हो गई तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। बेंच ने प्रथम दृष्ट्या टिप्पणी करते हुए कहा था कि आत्महत्या के लिए उकसाने की कोई एफआईआर नहीं बनती है।

बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट को इस बारे में ठीक से विचार करना चाहिए था, एफआईआर को समझना चाहिए था। उसने अर्नब को जमानत न देकर गलत किया। अदालत ने कहा कि अगर कोई सरकार अपने व्यक्तिगत मतभेदों की वजह से किसी को टारगेट करती है तो कोर्ट का कर्तव्य है कि वह नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा करे।

11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अलग विचारों की वजह से किसी भी व्यक्ति को इस तरह टारगेट नहीं किया जा सकता है। आप किसी को नापसंद कर सकते हैं या फिर असहमत हो सकते हैं लेकिन किसी को परेशान नहीं किया जा सकताहै। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट को संदेश दिया था कि वे नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करें।

बेंच ने FIR पर कहा, ‘जब बकाया राशि चुकाई जा चुकी है और कोई शख्स आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या कर लेता है तो क्या कंपनी के हेड पर सुइसाइड के लिए उकसाने का आरोप लगा दिया जाएगा? जब किसी की एफआईआर रद्द करने की याचिका पेंडिंग है तो इस तरह जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।’ अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने के बाद तलोजा जेल में रखा गया था। पुलिस इस मामले की जांच अभी कर रही है।