शहर को विनाश से बचाना है तो वृक्षों को जिंदा रखना होगा

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कोटा। भारतीय सांस्कृतिक निधि इंटेक, बाघ मित्र सदस्य एवं पर्यावरण प्रेमी बृजेश विजयवर्गीय ने कलेक्टर को ज्ञापन देकर विकास एजेंसियों को हरियाली को किसी भी कीमत पर नष्ट होने से बचाने का आग्रह किया है।

उन्होंने बताया कि शहर को विनाश से बचाना है तो वृक्षों को जिंदा रखना होगा। कोटा में नगर विकास न्यास द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के इंस्ट्रूमेंटेशन लिमिटेड के स्थान पर वहां लगे सैकड़ों पेड़ों को निर्ममता से काटने के बाद राज्य सरकार नकली ऑक्सीजोन के नाम पर शहर की जनता को भरमा रही हैं। शहर के जागरूक लोगों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि कोरोना महामारी के दौर में भी प्रकृति को नष्ट करने में युद्ध स्तर पर जुटे हुए हैं। इससे आने वाले समय में शहर का तापमान और बढ़ने की आशंका हो गई है।

उन्होंने बताया कि कोटा में नगर विकास न्यास तो विनाश कार्यों का पर्याय बन गया है। हर कहीं वृक्षों की बलि लेने का काम निर्बाध रूप से जारी है। aयहां पर आईएल उद्योग की जमीन पर स्कीमें काट कर फैक्ट्री तथा टाउनशिप में हजारों पेड़ों की बलि ले चुके है। इसके पूर्व अदालत चैराहे पर पार्किंग के नाम पर डाक्टरों के निवास का क्षैत्रफल घटाकर कई पेड़ों को खत्म कर दिया गया जो कि सभी जिम्मेदारों ने देखा पर आंख व मुंह बंद कर लिया।

पेड़ों का खात्मा करने वाली ऐजेसियों का अक्सर कहना होता है कि हम हजारों पेड़ लगाते भी तो हैं और भी नए पेड़ लगाने की योजना है। इनको पता नहीं है कि कोई भी पौधा 20 से 25 वर्ष में जा कर तैयार पेड़ बनता है। पेड़ काटने से उससे मिलने वाला ऑक्सीजन का लाभ तुरंत ही बंद हो जाता है। नए पौधे लगाना कोई जवाब नहीं है। मौजूदा पेड़ों को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

उन्होंने बताया कि कोटा शहर में ही अस्सी फुट बोरखेड़ा डीसीएम लिंक रोड़ पर पर्यावरणप्रेमियों द्वारा लगाए गए पेड़ों को बेरहमी से काट दिया। लगता है सरकारी विकास एजेंसियां वे ऐसा विकास कर रहे हैं कि जो विनाश में बदल गया। प्रशासनिक अधिकारी मूक दर्शक बन गए। जबकि कोटा के मेडिकल काॅलेज के प्राचार्य कह रहे हैं कि मरीजों के लिए भी ऑक्सीजन के सिलेण्डर कम पड़ रहे है। कृत्रिम ऑक्सीजन के प्लांटों को 900 सिलैण्डर प्रतिदिन कोटा में आपूर्ति करने के आदेश दिए गए है। वहीं सरकार जीते जागते ऑक्सीजोन के स्त्रोतों को काट कर लोगों के प्राण संकट में डालने का घिनौना कृत्य कर रही है।

कितने दिन लोगों को अस्पताल की ऑक्सीजन पर जिंदा रख सकेंगे। क्या कृत्रिम ऑक्सीजन से जिंदा रहना विकास है? कथित विकास कार्यों के नाम पर प्रकृति की लूट को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। न्यायपालिका को स्व प्रसंज्ञान लेकर राज्य सरकार की मन मर्जी पर लगाम लगाना चाहिए। मशहूर चिकित्सक और पर्यावरणविद भी कह चुके हैं कि प्रकृति की शरण में ही हर बीमारी का ईलाज है। वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डाॅ. साकेत गोयल का कथन पढ़ने को मिला है, जो कह रहे हैं कि पेड़ों से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है तथा पेड़ों को काटने से ऑक्सीजन की कमी होती है जिससे कोरोना जैसी घातक बीमारियां ज्यादा फैलतीं है।

जहां प्रकृति फलती फूलती है वहां बीमारियां भी नहीं होती यदि संक्रमण के कारण हो भी गई तो ठीक भी जल्दी होते है। डाॅ गोयल ने कहा है कि योग व्यायाम करें। परंतु सरकार तो प्रातः भ्रमण करने वालों के ही द्वार बंद कर रही है। आईएल टाउनशिप के पेड़ों को काट कर गिरा दिया।पूर्व में कंपनी परिसर में 200 साल के पुराने धार्मिक आस्था के केंद्र रहे वट वृक्ष को काटने का प्रयास किया जो कि जागरूक लोगों के हस्तक्षेप से बच गया।

उसे अन्य तरीकों से मारने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि सरासर मूक पेड़ों और उन पर बसेरा कर रहे मोर आदि पर अत्याचार है। कंपनी परिसर में आवासीय काॅलोनी काट दी। लेकिन, इस बात की परवाह नहीं करी कि लोग सांस कहां से लेंगे। वहां के सैकड़ों मोर व हजारों पक्षी अपना आवास उजड़ने पर कहां गए, सरकार को बताना चाहिए। राष्ट्रीय पक्षी मोर का घर उजाड़ कर किसका घर बसाना चाहती है सरकार। अब तो डाक्टर खुद कह रहे हैं कि लोगों को खुले वातावरण में चले जाना चाहिए, शहरों में तंग स्थानों के कारण ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।