विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है एवं उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. के कारण नेत्र ज्योति हमेशा के लिए खो देते है।
कोटा । समूचे विश्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा को विश्व प्रीमेच्योरिटी डे (17 नवम्बर) मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य 9 माह से पूर्व जन्में प्रीमेच्योर बच्चों में होने वाली बीमारियाँ के प्रति जनसाधारण में जागरूकता बढ़ानी है। विश्वभर में प्रत्येक दिन 3 लाख 60 हजार बच्चे जन्म लेते है जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत बच्चे प्रीमेच्योर होते है। डायबिटिज, हाइपरटेंशन, स्मोकिंग, मोटापा से ग्रस्त महिलाओं को प्रीमेच्योर संतान होने की संभावना अधिक होती है।
विश्व प्रीमेच्योरिटी डे के अवसर पर सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेजर सेन्टर में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी कारण एवं उपचार नामक विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी। इस अवसर पर रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी कारण एवं उपचार नामक विषय पर पोस्टर विमोचन भी किया गया।
कोटा डिवीजन नेत्र सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नेत्र सर्जन डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि आर.ओ.पी. द्वारा होने वाली अंधता से बचने के लिए बच्चे के जन्म के 2-4 सप्ताह के अंदर पर्दे (रेटिना) के विशेषज्ञ नेत्र चिकित्सक द्वारा पर्दे की इनडायरेक्ट ऑफ्थलमाॅस्कोपी नामक सम्पूर्ण जाँच करवाने से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
सुवि नेत्र चिकित्सालय की लेसिक सर्जन डाॅ. विदुषी शर्मा ने बताया कि 9 माह से पहले जन्म लेने वाले नन्हे शिशुओं को रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी(आर.ओ.पी.) नामक गंभीर नेत्र रोग होने का खतरा बढ़ा हेै एवं उपचार के अभाव में एडवांस आर.ओ.पी जीवन पर्यन्त अंधता का कारण बन सकता है। समय से पहले जन्में शिशुओं जन्म के तुरंत बाद यह बीमारी नहीं होती है। यह रोग जन्म के कुछ दिनों बाद प्रकट होता है एवं उपचार के अभाव में जन्म के 1-2 माह के अन्दर लाइलाज हो जाती है एवं बच्चे के जीवन पर्यन्त अंधता का कारण बनती है जिसको समय पर स्क्रीनिंग के द्वारा रोका जा सकता है।
सुवि नेत्र चिकित्सालय के रेटिना विशेषज्ञ डाॅ. निपुण बागरेचा ने परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए बताया कि रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी) विश्वभर में बच्चों में होने वाली अंधता/दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है। सुवि नेत्र चिकित्सालय के नेत्र सर्जन डाॅ. एस. के. गुप्ता ने बताया कि जिन बच्चों का जन्म 36 सप्ताह से पहले हुआ है उन्हें जन्म के 30 दिन के दौरान पर्दे की विस्तृत जांच करना आवश्यक है एवं जिन बच्चों का जन्म 30 सप्ताह से पहले हुआ है उन्हें जन्म के 20 दिन के दौरान पर्दे की विस्तृत जांच करना आवश्यक है।
स्क्रीनिंग एवं आर.ओ.पी. होने पर आँख के पर्दे का लेज़र, क्राओ थैरेपी, एन्टीवेजेएफ इंजेक्शन एवं आंख के पर्दे की शल्य चिकित्सा द्वारा इस बीमारी के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस संबंध में आर.ओ.पी. स्क्रीनिंग, शिशु रोग विशेषज्ञ एवं समाज में जागरूकता बढ़ाकर एवं प्रीमेच्योर शिशुओं में समय-समय पर आंख के पर्दे की जांच करवाकर अंधता को रोका जा सकता है। इन नवजात शिशुओं में आर.ओ.पी. के द्वारा होने वाली अंधता को रोका जा सकता है।
ROP एक चौथाई प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता का मुख्य कारण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है एवं उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. के कारण नेत्र ज्योति हमेशा के लिए खो देते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत जैसे विकासशील देश में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्यूरिटी एक चौथाई प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता का मुख्य कारण है।
भारत में 2 करोड़ 60 लाख बच्चे प्रत्येक वर्ष जन्म लेते है, इनमें से 20 लाख बच्चों का वजन 2 किग्रा. से कम होता है। यह बच्चे जागरूकता के अभाव में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी नामक रोग से पीड़ित होकर आँखों की रोशनी खो सकते है। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय 2 किग्रा. से कम है उन 50 प्रतिशत बच्चों में आर.ओ.पी. नामक गंभीर नेत्र रोग होने के संभावना रहती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है। उपचार के अभाव में इन बच्चों की रोशनी हमेशा के लिए समाप्त हो सकती है।
जीवन भर अंधता का दंश
32 सप्ताह से पूर्व जन्में बच्चों में रेटिना पूर्ण तरह से विकसित न होने के कारण रेटिना में रक्त के नये स्रोत उत्पन्न होते है, जो कि कमजोर होते है और रक्त स्राव करते है। इस रक्तस्राव के कारण रेटिना में निशान एवं खिंचाव बनता है। आर.ओ.पी. से पीड़ित बच्चों में आँखों में दृष्टि दोष (मायोपिया), नेत्रों का तिरछापन, सुस्त आँख, आँख का रक्तस्राव, मोतियाबिन्द, ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेन्ट (पर्दे का उखड़ना) आदि समस्यायें हो सकती है। एडवांस आरओपी से पीडित बच्चों को जीवन भर अंधता का दंश या अभिशाप झेलना पड़ता है।