रामायण में काकभुशुण्डि कौन थे, जानिए उनके बारे में

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1997

नई दिल्ली। काकभुशुण्डि रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। शास्त्रों में काकभुशुण्डि परमज्ञानी और रामभक्त बतलाया गया है। श्रीराम और रावण के युद्ध में जब रावण पुत्र मेघनाद ने श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था तब नारद मुनि के कहने पर गरुड़जी ने श्रीराम को नाागपाश के बंधन से मुक्त करवाया था।

श्रीराम के इस तरह नागपाश में बंध जाने से गरुड़जी को उनके अवतारी होने पर संदेह हो गया था। तब उनका संदेह दूर करने के लिए नारदजी ने उनको ब्रह्मा जी के पास भेजा। ब्रह्मा जी ने उनको महादेव के पास भेज दिया। महादेव ने गरुड़ के संदेह को दूर करने के लिए उनको काकभुशुण्डि जी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डि ने श्रीराम का चरित्र गरुड़जी के सुनाकर उनका संदेह दूर किया।

उज्जैन आकर रहने लगे थे काकभुशुण्डि
गरुड़ के सन्देह मिट जाने के बाद काकभुशुण्डि ने गरुड़ को स्वयं की कथा सुनाई, जो इस प्रकार है। कलयुग में काकभुशुण्डि का पहला जन्म अयोध्या में एक शूद्र के घर में हुआ था। काकभुशुण्डि जन्म से परम शिवभक्त थे, लेकिन शिवभक्ति के अभिमान में वह अन्य देवताओं की निन्दा करते थे। एक बार अयोध्या में भयानक अकाल पड़ा। वह अयोध्या छोड़कर उज्जैन में निवास करने लगे।

उज्जैन में एक ब्राह्मण की सेवा करते हुए उसके साथ रहने लगे। ब्राह्मण भी शिवभक्त थे, लेकिन कभी श्रीहरी की निंदा नहीं करते थे। ब्राह्मण ने शिवभक्त शूद्र को शिवमंत्र दिया। शिवमंत्र पाकर उसका अभिमान और बढ़ गया। वह भगवान विष्णु की ओर ज्यादा निंदा करने लगा। इससे दुखी होकर ब्राह्मण गुरु ने उसको श्रीराम की भक्ति का उपदेश देना प्रारंभ किया।

महादेव ने दिया था श्राप
घमंड मे चूर शूद्र ने एक बार अपने गुरु का ही अपमान कर दिया। इससे महादेव क्रोधित हो गए और उन्होंने उसको श्राप दे दिया और कहा कि तूने अपने गुरु का अपमान किया है इसलिए तू सर्प योनी में जन्म लेगा। इसके बाद तुझे 1000 बार अनेक योनियों में जन्म लेना पड़ेगा, लेकिन उसके गुरु दयालु और क्षमा करने वाले थे इसलिए उन्होंने अपने शिष्य के लिए भोलेनाथ से क्षमा की प्रार्थना की। कैलाशपति ने कहा कि हे ब्राह्मण! इसको अपने पाप का प्रायश्चित्त तो करना होगा लेकिन एक हजार जन्म लेने पर भी जो दुख सहन करना होता है वह इसको नहीं होगा और इसका ज्ञान भी अक्षुण्ण बना रहेगा। साथ ही मेरी कृपा से इसको श्रीराम के चरणों के प्रति भक्ति भी मिलेगी।

लोमश ऋषि ने दिया था श्राप
इसके बाद उस शूद्र ने विन्ध्याचल में जाकर सर्प योनि में जन्म लिया। इस तरह उसने अनेक जन्म लिए, लेकिन किसी भी जन्म में उसको किसी तरह का कोई कष्ट नहीं हुआ और वह एक के बाद दूसरा जन्म लेता रहा और उसका प्रत्येक जन्म की यादों के साथ उसका ज्ञान भी बना रहा। शिव कृपा से उसके अंदर श्रीराम की भक्ति भी उत्पन्न हो गई। अंतिम शरीर उसको ब्राह्मण का मिला।

ब्रह्मणत्व मिलने पर वह ज्ञानप्राप्ति के लिये वह लोमश ऋषि के पास गया। लोमश ऋषि जब उसको ज्ञान देते थे तब वह बेकार तर्क-वितर्क करता था। इससे क्रोधित होकर लोमश ऋषि ने उसको कौआ बनने का श्राप दे दिया। वह तुंरंत कौआ बनकर उड़ गया। शाप देने के बाद ऋषि को पश्चाताप हुआ और उन्होंने उस कौए को वापस बुला कर राममन्त्र दिया और साथ में इच्छा मृत्यु का वरदान भी दिया। राममन्त्र मिलने के कारण उसको उस कौए के शरीर से भी प्रेम हो गया और बाद मे वह काकभुशुण्डि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।