- एक करोड़ रुपये से अधिक के 5 लाख सौदे हुए 10 साल में
- हर साल होते हैं करीब 45-50 हजार सौदे मुंबई में
- विभाग ने मांगी खरीदारों-विक्रेताओं की पूरी जानकारी
मुंबई। अघोषित आय के मामलों को निपटाने के बाद आय कर विभाग ने अब अपना ध्यान बेनामी संपत्तियों की पहचान पर केंद्रित कर दिया है। बेनामी संपत्तियां काला धन खपाने का बहुत बड़ा जरिया हैं। परंपरागत रूप से कारोबारी, नेता, नौकरशाह और यहां तक कि अंडरवल्र्ड भी अपनी काली कमाई को खपाने के लिए यह रास्ता अपनाते रहे हैं।
मुंबई आय कर विभाग ने अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी सब रजिस्ट्रारों और तहसीलदारों को पिछले 10 साल में पंजीकृत एक करोड़ रुपये या उससे अधिक मूल्य की संपत्तियों की जानकारी देने को कहा है।
विभाग ने बेनामी लेनदेन रोकथाम कानून, 1988 की धारा 21 (1) और पिछले साल 25 अक्टूबर की सीबीडीटी अधिसूचना के तहत उसे मिले अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अप्रैल 2007 से इस साल जून के दौरान हुए संपत्ति के सौदों की जानकारी मांगी है। बेनामी लेनदेन रोकथाम कानून में पिछले साल व्यापक संशोधन किए गए थे।
मुंबई में कुल 25 पंजीकरण कार्यालय हैं जिनमें से 5 शहर में और 20 उपनगरीय इलाकों में हैं। अनुमानों के मुताबिक मुंबई में हर साल एक करोड़ रुपये से अधिक मूल्य संपत्ति के 45,000 से 50,000 सौदे होते हैं। एक करोड़ रुपये से अधिक के वास्तविक सौदों की संख्या बहुत अधिक होने का अनुमान है।
लेकिन अधिकांश सौदे रेडी रेकनर वेल्यू पर होते हैं। रेडी रेकनर रेट को स्टांप शुल्क और आय कर उद्देश्यों के लिए बाजार मूल्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक मुंबई में पिछले एक दशक में कम से कम 5 लाख ऐसी संपत्तियां का लेनदेन हुआ है जिनका मूल्य एक करोड़ रुपये से ज्यादा है। धु्रवा एडवाइजर्स एलएलपी के मुख्य कार्याधिकारी दिनेश कनाबार ने कहा, ‘इसमें कोई दोराय नहीं है कि काले धन का ज्यादातर इस्तेमाल रियल एस्टेट में हुआ है।
इसका एक अच्छा खासा हिस्सा बेनामी संपत्ति में लगा है। पिछले कुछ समय से कर अधिकारी संपत्ति के लेनदेन की जानकारी जुटाने का प्रयास कर रहे हैं और अब यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि इनमें काले धन का इस्तेमाल तो नहीं हुआ है। यह सही कदम है।’
विभाग ने सब रजिस्ट्रारों से सभी तरह के पंजीकरण की जानकारी मांगी है। इनमें डेवलपमेंट एग्रीमेंट, किरायेदारी हस्तांतरण, बिक्री प्रमाणपत्र, फ्लैट/दफ्तर/व्यावसायिक परिसरों की बिक्री, विलय-अलग होना, संपत्ति का हस्तांतरण, तोहफे, एक करोड़ रुपये से अधिक के लीज एग्रीमेंट, संपत्ति गिरवी रखने, पावर ऑफ अटॉर्नी, संपत्तियों का विभाजन, रिलीज डीड, लीज और वर्क कांट्रेक्ट का स्थानांतरण आदि शामिल हैं।
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