जीएसटी : छोटे कारोबारियों पर पंजीकरण का दबाव

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नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत गैर-पंजीकृत कारोबारियों से सामान खरीदने पर कर चुकाने की जिम्मेदारी पंजीकृत इकाइयों की है। लेकिन बड़ी कंपनियों को यह व्यवस्था रास नहीं आ रही है और वे गैर-पंजीकृत कारोबारियों पर जीएसटी पंजीकरण के लिए दबाव डाल रही हैं। इससे सालाना कारोबार 20 लाख रुपये से कम होने के बावजूद पंजीकरण नहीं कराने के नियम का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

जीएसटी के तहत 20 लाख रुपये तक सालाना कारोबार वाली इकाई के पंजीकरण की जरूरत नहीं है। मगर पंजीकरण की स्थिति में कारोबार के इस सीमा से कम रहने के बावजूद कर देना पड़ सकता है। जीएसटी के मौजूदा प्रावधान के तहत अगर पंजीकृत इकाइयां वस्तु एवं सेवाएं गैर-पंजीकृत कारोबारियों से खरीदती हैं तो उन्हें सरकार को कर भुगतान करना होगा। इसके बाद वे इस भुगतान पर क्रेडिट की मांग करेंगी। इसे रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म कहते हैं क्योंकि आम तौर पर सामान्य विक्रेता को सरकार को कर भुगतान करना होता है।

हालांकि रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म की यह व्यवस्था मझोली कंपनियों के लिए कारगर होगी। डेलॉयट के एम एस मणि कहा कि गैर-पंजीकृत इकाइयों से कारोबार करने पर मझोली कंपनियों को कर देने में परेशानी नहीं होनी चाहिए। अगर वे गैर-पंजीकृत कारोबारियों को पंजीयन कराने के लिए कहती हैं तो इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने के लिए उन्हें इन कारोबारियों के कर भुगतान करने तक इंतजार करना होगा। कुछ कारोबारी तो कर भुगतान करने में चूक भी कर सकते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि गैर-पंजीकृत कारोबारियों को पंजीकरण के लिए कहने में बड़ी कंपनियों को आर्थिक लाभ है। पीडब्ल्यूसी में इनडायरेक्ट टैक्स लीडर प्रतीक जैन कहते हैं, ‘गैर-पंजीकृत कारोबारियों के मामले में सरकार ने नियमों के अनुपालन की जिम्मेदारी खरीदार पर डाली है, इसलिए लोग गैर-पंजीकृत कारोबारियों के साथ कारोबार करना नहीं चाहते हैं।’

जैन कहते हैं कि इसकी वजह यह है कि सबसे पहले तो नियमों के अनुपालन की जिम्मेदारी है, जो लागत के लिहाज से प्रभावी नहीं है। इसका मतलब हुआ कि अगर वेंडर पंजीकृत नहीं है तो वह क्रेडिट का लाभ आगे नहीं बढ़ा सकता है। वह कहते हैं,’वेंडर अपनी वस्तु या सामानों पर जितने इनपुट कर का भुगतान करता है वह भी लेनदेन के खर्च में शामिल हो जाता है। लिहाजा इससे गैर-पंजीकृत वेंडरों से खरीदारी को बढ़ावा नहीं मिलेगा।’

जीएसटी में रिवर्स कॉस्ट मैकेनिज्म के तहत आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं की एक सूची तैयार की गई है। मूल्य वर्धित कर और सेवा कर की पुरानी कर प्रणाली की सूची के मुकाबले यह अधिक व्यापक है। वैट में रिवर्स कॉस्ट कुछ राज्यों जैसें पंजाब और हरियाणा में क्रय कर के मामले में चलन में था। सेवा में भी कुछ चीजों पर यह लागू होता था। हालांकि अब गैर-पंजीकृत वेंडरों से वस्तु एवं सेवाएं खरीदने वाली किसी भी पंजीकृत इकाई को सरकार को कर देना होगा। 

मणि कहते हैं कि जहां तक ऑडिट का सवाल है तो जीएसटी मेंरिवर्स कॉस्ट मैकेनिज्म सेवाओं के अनुरूप ही है। सेवा कर में अधिकारी गैरी-पंजीकृत इकाइयों पर नियंत्रण रखने के लिए पंजीकृत इकाइयों से इनके बारे में सूचनाएं लेते थे। यह प्रणाली भी अब जीएसटी में होगी।पहले पुरानी कर प्रणाली में रिवर्स कॉस्ट मैकेनिज्म पूर्ण एवं आंशिक थी, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। पहले परिवहन एजेंसी जैसी सेवाओं में पूर्ण रिवर्स चार्ज और 40 प्रतिशत या 50 प्रतिशत आंशिक रिवर्स चार्ज हुआ करते थे। अब सरकार ने आंशिक रिवर्स चार्ज समाप्त कर दिया है और गैर-पंजीकृत वेंडरों से खरीदी गई सभी वस्तु एवं सेवाओं के लिए 100 प्रतिशत कर दिया है।

मणि कहते हैं,’पहले ज्यादातर सेवा 100 प्रतिशत के नीचे थीं और कुछ ही 50 प्रतिशत दायरे के नीचे थीं। अगर सरकार 50 प्रतिशत का प्रावधान जारी रखती है तो उन्हें दूसरे पक्ष से भी कर संग्रहित करना होगा। 100 प्रतिशत मामले में रिवर्स चार्ज वसूलना आसान है। यानी पूरा संग्रह एक व्यक्ति यानी प्राप्तकर्ता से होता है। सरकार ने प्रशासनिक सुविधाओं के लिए ऐसा किया है, जो हरेक के लिए आसान है।’

पूर्ण रिर्वस कॉस्ट में सरकार के लिए कर संग्रह कम होगा और जो व्यक्ति रिवर्स कॉस्ट का भुगतान कर रहा है, उनके लिए यह आसान होगा। रिवर्स कॉस्ट प्रणाली में वह पूरी रकम का भुगतान करेंगे और उन्हें पूरा क्रेडिट मिल जाएगा। जैन कहते हैं, ‘आप जब भी कोई वस्तु खरीदते हैं या किसी सेवा का लाभ लेते हैं उस स्थिति में जब तक इनका स्रोत गैर-पंजीकृत वेंडर हैं उन्हें पूरे मूल्य पर कर देना होगा। लिहाजा अब आंशिक शुल्क की आवश्यकता नहीं है। जीएसट में यह एक बुनियादी बदलाव आया है।’