कोटा। साहब सरकार सरकारी केंद्रों पर लहसुन नहीं खरीद रही है। यहां 2 रुपए से लेकर 10 रुपए किलो तक लहसुन बेचना पड़ रहा है। आज भी 3.25 रुपए किलो में लहसुन बेचा है। जबकि इस पर 10 से 11 रुपए किलो का खर्च आ रहा है। यहां लाकर भाड़ा और आढ़त भी भारी पड़ रही है।
ऐसे में किसान मरेगा नहीं तो क्या करेगा। यह दर्द था किसानों का, जो मंगलवार को भामाशाहमंडी पहुंचे पूर्व मंत्री शांति धारीवाल के सामने किसानों ने सुनाया। धारीवाल भामाशाहमंडी के खुले यार्ड में बिक रहे लहसुन के यहां पहुंचे। वहां सारौला के किसान उदालाल ने लहसुन दिखाते हुए कहा कि यह 3.25 रुपए किलो बिका है। सरकारी कांटों पर खरीदी नहीं की जा रही है। वहां से नापास करके लहसुन भेजा जा रहा है। एक महीने में रजिस्ट्रेशन कराने वाले किसानों का नंबर नहीं आ रहा है।
ऐसे में किसानों को मजबूरन खुली मंडी में लहसुन बेचना पड़ रहा है। जबकि किसानों को 10 से लेकर 11 रुपए का खर्च आ रहा है। जो कांटे पर 32.57 रुपए किलो में लहसुन बिक रहा है, वह यहां खुले में 8 और 9 रुपए किलो बिक रहा है। किसान हर तरफ से पिस रहा है। मंडी एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी ने भी धारीवाल से कहा कि प्रोसेसिंग यूनिट लगाने से ही हल निकलेगा।
सरकार ने किसानों के साथ छलावा किया : धारीवाल ने कहा है कि सरकार बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत 32 रुपए किलो में लहसुन खरीद कर स्थानीय मंडी में ही 8 से 10 रुपए किलो बेच रही है। इससे किसान मेहनत की फसल को औने-पौने पौने दामों में बेचने पर मजबूर हो रहा है।
सरकार किसानों का पूरा लहसुन खरीदे और 25 एमएम की बंदिश से किसानों को मुक्ति दे। सरकार ने प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की बात कही थी, लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया। बाजार हस्तक्षेप योजना में भी किसानों का जरा सा माल खरीद कर छलावा किया है। किसानों की हालात काफी चिंताजनक है।