Mystery of Life & death: लाज़ारस सिंड्रोम और जीवन-मृत्यु का रहस्य

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-डॉ. सुरेश पांडेय-
नेत्र चिकित्सक, लेखक और ब्लॉगर कोटा
The mystery of life and death: जीवन और मृत्यु के बीच की सीमायें अक्सर स्पष्ट और अपरिवर्तनीय मानी जाती हैं, लेकिन लाज़ारस सिंड्रोम के दुर्लभ और रहस्यमय मामले इस धारणा को चुनौती देते हैं। यह चिकित्सा विज्ञान का एक ऐसा अध्याय है, जो हर बार चौंका देने वाले सवाल खड़े करता है। किसी व्यक्ति को मृत घोषित करने के बाद उसका अचानक जीवित हो उठना, एक चमत्कार के समान प्रतीत होता है। यह दुर्लभ स्थिति वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और आम जनता के लिए उत्सुकता और रहस्य का विषय बनी हुई है।

क्या है लाज़ारस सिंड्रोम?
लाज़ारस सिंड्रोम चिकित्सा विज्ञान में “ऑटोमैटिक पोस्ट-रेससिटेशन सिंड्रोम” के नाम से जाना जाता है। यह स्थिति तब होती है जब किसी व्यक्ति को चिकित्सकीय रूप से मृत घोषित कर दिया जाता है, लेकिन कुछ समय बाद उसके शरीर के शारीरिक तंत्र, जैसे हृदय और श्वसन प्रणाली, स्वतः सक्रिय हो जाते हैं। इसका नाम बाइबिल की उस कथा से प्रेरित है, जिसमें यीशु ने अपने मित्र लाज़ारस को मृत घोषित किए जाने के चार दिन बाद जीवित कर दिया था।

झुंझुनू की घटना
21 नवंबर 2024 को, राजस्थान के झुंझुनू जिले में एक 25 वर्षीय मूक-बधिर युवक को चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया था। शारीरिक क्रियाओं की पूर्ण अनुपस्थिति के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गई थी। लेकिन, एक अविश्वसनीय घटना घटी। चिता पर रखे जाने के बाद युवक की नब्ज चलने लगी और उसने साँस लेना शुरू कर दिया। यह घटना न केवल परिवार के लिए, बल्कि चिकित्सा जगत के लिए भी एक गहरा सदमा और आश्चर्य का विषय बन गई। इस घटना ने मृत्यु की पुष्टि करने के तरीकों और चिकित्सा प्रोटोकॉल पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

अन्य उदाहरण
झुंझुनू की घटना अकेली नहीं है। इस वर्ष के शुरुआत में बिहार के बेगूसराय में रामवती देवी नामक एक महिला को साँस की गंभीर समस्या के कारण मृत घोषित कर दिया गया था। अंतिम संस्कार की तैयारी के दौरान शव को घर से बाहर ले जाते समय वह अचानक जीवित हो उठीं। इसके अलावा, महाराष्ट्र के बारामती (2021), रूस (2011), अमेरिका (2007), और ब्रिटेन (2008) में भी इसी प्रकार की घटनायें दर्ज की गई हैं। इन मामलों में मृत्यु घोषित किए जाने के बाद, व्यक्तियों में अचानक जीवन के संकेत दिखाई दिए। इन घटनाओं ने चिकित्सा विशेषज्ञों को मृत्यु की पुष्टि करने के लिए और अधिक सटीक और विश्वसनीय तरीकों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया है

लाज़ारस सिंड्रोम का तंत्र
इस दुर्लभ स्थिति का कारण अब भी पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह शरीर की रक्त संचरण प्रणाली और शारीरिक तंत्र के अचानक सक्रिय होने का परिणाम हो सकता है।

वैज्ञानिक स्पष्टीकरण और अनसुलझे प्रश्न
लाज़ारस सिंड्रोम के पीछे का सटीक वैज्ञानिक कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सी.पी.आर. (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) या शरीर को झटके लगने से रक्त प्रवाह फिर से शुरू हो सकता है, जिससे अस्थायी रूप से रुकी हुई शारीरिक क्रियाएं फिर से शुरू हो जाती हैं। हालांकि, यह सिर्फ़ एक संभावित व्याख्या है और इस असाधारण घटना के पीछे के तंत्र को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। यह प्रश्न भी उठता है कि क्या मृत्यु केवल हृदय और श्वसन क्रियाओं के रुकने से परिभाषित होती है या मस्तिष्क की गतिविधियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

सीपीआर का प्रभाव
हृदय और श्वसन प्रणाली की क्रियाएं रुकने के बाद भी सीपीआर से शरीर में कुछ हद तक ऑक्सीजन प्रवाह बना रहता है।

झटकों का प्रभाव
शव को स्थानांतरित करने से शारीरिक तंत्र अचानक सक्रिय हो सकता है।

दवाओं का अवशिष्ट प्रभाव
कई दवाइयाँ, जिनका प्रभाव शरीर पर रहता है, कभी-कभी पुनर्जीवन में भूमिका निभा सकती हैं।

मृत्यु की परिभाषा पर पुनर्विचार
लाज़ारस सिंड्रोम की घटनाएं यह साबित करती हैं कि मृत्यु की पारंपरिक परिभाषा हृदय गति और श्वसन का रुकना अपर्याप्त हो सकती है। मस्तिष्क की गतिविधियों और अन्य जैविक संकेतों को ध्यान में रखने की भी आवश्यकता है।

इन घटनाओं ने जीवन और मृत्यु के बीच की धुंधली रेखाओं को उजागर किया है। वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ इस स्थिति को बेहतर ढंग से समझने और मृत्यु की पुष्टि के मानकों में सुधार के लिए शोध कर रहे हैं।

निष्कर्ष
लाज़ारस सिंड्रोम जीवन और मृत्यु के बीच की सीमाओं को चुनौती देता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन का असली स्वरूप क्या है और मृत्यु को समझने के हमारे प्रयास कितने अधूरे हैं। यह विज्ञान और समाज दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है, जो चिकित्सा के क्षेत्र में नई खोजों और सोच की दिशा में प्रेरित करता है।