पंडित विजयशंकर मेहता ने तीसरे दिन किया अरण्य काण्ड का वर्णन
कोटा। Shriram Katha: राष्ट्रीय मेला दशहरा – 2024 के अंतर्गत श्रीराम रंगमंच पर चल रही श्रीराम कथा में तीसरे दिन व्यासपीठ से पं. विजयशंकर मेहता ने अरण्य कांड का भावपूर्ण वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि जीवन में क्रोध सबसे बड़ा दुर्गुण है। काम, क्रोध, लोभ से सदैव बचना चाहिए। अपने घर में कभी किसी को कठोर वचन नहीं कहना चाहिए। सीता जी ने देवर लक्ष्मण को कठोर शब्द बोले और उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी।
पहले घर में बड़े -बूढ़े गुस्सा करते थे, लेकिन आजकल छोटे-छोटे बच्चे भी बहुत गुस्सा करने लगे हैं। पंडित मेहता ने कहा कि क्रोध करने से भक्ति क्षीण हो जाती है और विवेक चला जाता है। हमें क्रोध का मालिक बनना चाहिए, गुलाम नहीं।
उन्होंने कहा कि जीवन में मर्यादा की कोई ना कोई लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। चरित्र, संस्कार और आचरण की इस लक्ष्मण रेखा को लांघने पर दुर्गुण रूपी रावण घेर लेंगे। यह रावण आप पर आक्रमण करेंगे, आपका अपहरण कर लेंगे।
चुनौतियों से निराश नहीं होना
पंडित मेहता ने स्टूडेंट्स को संदेश देते हुए कहा कि जीवन में बाधाएं और चुनौतियां आती हैं, लेकिन कभी निराश नहीं होना चाहिए। भगवान राम पर भी संकट आया, लेकिन वह निराश नहीं हुए। जीवन में दुख परेशानी आए तो कभी टूट मत जाना। भगवान पर कभी संदेह मत करना, भगवान की कभी परीक्षा मत लेना और यदि कभी गलती हो भी जाए तो क्षमा भी भगवान से ही मांगना। उन्होंने कहा कि घर में गाय के कंडे रखना चाहिए। इससे नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। इस दौरान “हंसते-हंसते जाइए और जरा मुस्कुराइए… अच्युतम केशवम.. रामचंद्र भज..” सरीखे भजनों के प्रस्तुतियां दी गई।
नवधा भक्ति का वर्णन किया
शबरी के प्रसंग का वर्णन करते हुए पंडित विजयशंकर मेहता ने कहा कि भगवान ने नौ प्रकार की भक्ति बताई है। इसके लिए उन्होंने शबरी को चुना। उन्होंने बताया कि संतों के साथ सत्संग, कथा रति, गुरु सेवा, कपट को छोड़कर भगवान का कीर्तन, ईश्वर में दृढ़ विश्वास के साथ मंत्र का जाप, निरंतर भक्ति, सारे संसार को एक ही रूप से देखना, जो मिला है उसी में संतोष करना और सब कुछ भगवान के भरोसे ही छोड़ देना.. यह नवधा भक्ति के रूप है।
बताए रावण रूपी दुर्गुण
पंडित विजय शंकर मेहता ने रावण रूपी दुर्गुण बताते हुए कहा कि नौ लोगों से कभी नहीं उलझना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिसके हाथ में शास्त्र हो, जो रहस्य को जानता हो, मूर्ख व्यक्ति, समर्थ स्वामी, धनवान, वैद्य, भाट और रसोईए से कभी शत्रुता नहीं लेनी चाहिए।