कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में चातुर्मास के अवसर पर बुधवार को आदित्य सागर मुनिराज ने नीति प्रवचन में कहा कि असली धन केवल भौतिक संपत्ति तक सीमित नहीं होता है, बल्कि संतोष, मन की शांति, वैराग्य, संयम आध्यात्मिक धन है।
यह आध्यात्मिक संपत्तियां व्यक्ति को पूर्ण और धनी भले ही महसूस कराती हों, किन्तु वह बाहरी तौर पर गरीब दिखाई देता है। जब लोग पैसे कमाने में लगे होते हैं, तो वे अपने आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को भुला देते हैं। धन के साथ अक्सर अहंकार और सामाजिक प्रदर्शन की भावना जुड़ जाती है।
क्योंकि व्यक्ति अपनी वास्तविकता और आध्यात्मिकता से दूर हो जाता है। इसलिए पैसे के साथ आने वाली भौतिक सुख-सुविधाओं और अहंकार से बचना चाहिए। अपनी आंतरिक शांति और संतोष को बनाए रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पैसे में अभिमान नहीं होता, बल्कि व्यक्ति के स्वभाव में होता है। अक्सर लोग बाहरी धन की लालसा में अपने आंतरिक धन जैसे संतोष, वैराग्य, और संयम को भूल जाते हैं। जब हम आंतरिक धन को भूल जाते हैं, तो हम अपनी आंतरिक शांति और संतोष को खो देते हैं।
आदित्य सागर ने कहा कि हमें भौतिक धन के पीछे भागने के बजाय, अपने आंतरिक धन की सुरक्षा और वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जीवन में संतोष और संयम बनाए रखना आवश्यक है, ताकि हम वास्तविक खुशी और शांति प्राप्त कर सकें।
इस अवसर पर सकल समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता, कार्याध्यक्ष जे के जैन, मंत्री विनोद जैन टोरडी, चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, आरकेपुरम मंदिर समिति से अंकित जैन, अनुज जैन, पदम जैन सहित कई लोग उपस्थित रहे।