कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में चातुर्मास पर अध्यात्म विशुद्ध ज्ञान पावन वर्षायोग में श्रमण श्रतुसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज ने संगत के महत्व पर अपने प्रवचन देते हुए कहा कि अच्छी संगत का नतीजा अच्छा और बुरी संगत का बुरा होता है। संगत रखने में सदैव सावधानी बनाए रखें। व्यक्ति जिस तरह की संगत में रहता है, उसी के अनुसार उसका व्यवहार और जीवनशैली बनती है।
उन्होंने युवाओं को चेतावनी देते हुए कहा कि वे अपने साथियों के चयन में सावधान रहें, खासकर शिक्षा के दौरान। कई छात्र पढ़ाई के बजाय अन्य गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। खराब आदतें व्यक्ति के चरित्र को नुकसान पहुंचाती हैं। अच्छी संगत से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है और उसका व्यक्तित्व निखरता है। जैन धर्म के सिद्धांतों, जैसे सम्यक् दर्शन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इनको अपनाने से आत्मा को शांति मिलती है।
उन्होंने कहा कि कि आध्यात्मिक संगति से व्यक्ति का आंतरिक और बाह्य विकास होता है। पत्थर की प्रकृति जड़ है, परन्तु वह मूर्तिकार की संगति में सुंदरता पा जाता है। ऐसे अच्छी संगत का लाभ अवश्य मिलता है।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, आरकेपुरम मंदिर समिति से अंकित जैन, अनुज जैन पदम जैन, लोकेश बरमुंडा, चंद्रेश जैन, प्रकाश जैन, तारा चंद बड़ला सहित कई लोग उपस्थित रहे।