कोटा। पर्युषण पर्व के तहत चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी पर आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर में सोमवार को आदित्य सागर मुनिराज ने तत्त्वार्थसूत्र रहस्य में आकिंचन्य धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि जो छोड़ दिया है, उसके राग को छोड़ना ही अकिंचन धर्म है। जब आप त्याग करें तो उसे मन से भी बाहर निकाल दें और भूल जाएं क्योंकि अंत में सब शून्य होने वाला है। आप क्या लेकर आए और क्या लेकर जायेंगे? इस संसार में पैदा होने पर दूसरे से नाम मिला, शादी में किसी की बेटी मिली, भोजन के लिए किसी के खेत से अनाज मिला और जब मरोगे तो दूसरा अग्नि देगा। संसार में आपका कुछ नहीं है। आप जितना जल्दी यह सत्य समझेंगे, उतना ही अच्छा होगा।
उन्होंने कहा कि आदमी के दुःख का कारण ‘पर’ शब्द, द्रव्य (वस्तु) और व्यक्ति है। मनुष्य दूसरों की संपत्ति, शब्दों व व्यक्ति को लेकर दुखी रहता है। यदि आपको कोई कुछ बोल दे तो उसे ‘पर’ शब्द मानकर भूल जाएं। वह उसकी मानसिक योग्यता का दर्पण है। आप विचार शून्य रहें और अकिंचन बनें।
उन्होंने कहा कि पहले यंत्रों से काम होता था,अब षड्यंत्रों से काम होते हैं। यह संसार का सत्य है कि आपका कोई नहीं है। यदि किसी पद व प्रतिष्ठा पर आप हैं तो उसके जाते ही लोगों का व्यवहार परिवर्तित हो जाएगा। ऐसे में जो चीज बाद में बदलने वाली है, उसे आप पहले ही स्वीकार कर लें। क्योकि अंततः सब शून्य होना वाला है।
उन्होंने कहा कि आपको व्यक्ति से नहीं, उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होना चाहिए। मनुष्य में क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष सहित 14 परिग्रह होते हैं। गुरु को किसी चीज की जरूरत नहीं है। जो सब कुछ छोड़कर आया है, उसे क्या चाहिए? वह तो आकिंचन्य है। गुरु के पास वस्त्र नहीं, क्योंकि वासना का वास नहीं है, तो गुरु निर्वस्त्र है। उन्होंने कहा कि 7 साल तक के बच्चे निर्वस्त्र घूमते रहते हैं, क्योंकि वे वासना से परे होते हैं।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेंद्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बड़ला, पारस कासलीवाल, राजकुमार पाटनी, जैनेंद्र जज साहब, विनोद शशिबाला, विपुल सिंघल परिवार (सारसोप वाले) सहित कई लोग उपस्थित रहे।