अधिक बोलने से कीमत कम और कम बोलने से कीमत बढ़ती है: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में सोमवार को आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर बोलते हुए कहा कि मनुष्य चाह उत्कृष्टता की रखता है। परन्तु पुरूषार्थ वैसा नहीं करता है।

उत्कृष्टता के लिए मर्यादित जीवन जीना होता है। मनुष्य को बोलने से अधिक सुनना चाहिए और व इसके विपरीत जीवन जीता है। उसे सुनाने में अधिक आनन्द आता है। जब आप ज्यादा बोलते हैं तो आपकी कीमत भी कम होती है।

यदि आपको कीमत बढ़ानी है, तो बोलना कम कर दें। कम बोलने वाले व्यक्ति को सुना भी अधिक जाता है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक प्रबंधन यह कहता है कि कम बोलें परन्तु काम का बोलें, नहीं बन पा रहा है तो फिर न बालें।

आध्यात्मिक प्रबंधन कहता है कि मौन में शब्द हों शब्दों में मौन हो। उन्होंने कहा कि मनुष्य 2.5 वर्ष की आयु में बोलना सीख जाता है। परन्तु कहां पर क्या बोलना है, यह मरते दम तक नहीं सीख पाता है। हमें जिस शब्द का जहां श्रेष्ठ प्रयोजन हो वहां करना चाहिए, वरना मौन रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि …खामोशी बेहतर नहीं बेहतरीन है, शब्दों से लोग रूठ जाते हैं । उन्होंने कहा कि मौन रहने के कई फायदे हैं परन्तु मौन साधना कठिन साधना है। उन्होंने ज्यादा बोलने वालों का उदाहरण देते हुए कहा कि जो आभूषण अधिक आवाज करते हैं वह पैरो की शोभा बढाते हैं और कम बोलने वाले सिर का ताज बनते हैं।

यदि आप शांत रहना प्रारंभ कर देते हो तो आपकी वैल्यू बढ़ने लगती है। शब्दो से तो समस्या उत्पन्न होती है और मौन से समाधान। हमें प्रतिक्रिया देने से पहले धैर्य से काम लेना चाहिए। जो वस्तु मार्केट में अधिक होती है उसकी कीमत कम हो जाती है और जब आप अधिक बोलते है यह बात आपके ऊपर भी लागू होती है।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, भुवनेश कासलीवाल, सुगन चंद कोटिया, ऋषभ गोधा सहित कई शहरो के श्रावक उपस्थित रहे।