नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2025-26 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.5% की दर से बढ़ सकती है। EY Economy Watch की ताज़ा रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सरकार मानव संसाधन विकास पर ध्यान देती है और साथ ही वित्तीय अनुशासन बनाए रखती है, तो देश की दीर्घकालिक विकास संभावनाएं और मजबूत हो सकती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत को विकसित राष्ट्र यानी ‘विकसित भारत’ की दिशा में आगे बढ़ना है, तो वित्तीय नीतियों को फिर से संतुलित करने की जरूरत है। EY का मानना है कि अगर सरकार मानव पूंजी (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र) में निवेश को प्राथमिकता देते हुए वित्तीय अनुशासन बनाए रखे, तो इससे भारत की लंबी अवधि की विकास संभावनाएं काफी मजबूत हो सकती हैं।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा पिछले महीने जारी संशोधित आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 (FY23) से 2024-25 (FY25) तक की असली GDP ग्रोथ रेट अब क्रमशः 7.6%, 9.2% और 6.5% रहने का अनुमान है।
FY25 के लिए तिमाही दरों की बात करें तो तीसरी तिमाही में GDP ग्रोथ 6.2% रही है। ऐसे में पूरे साल का 6.5% लक्ष्य हासिल करने के लिए चौथी तिमाही में 7.6% की दर से ग्रोथ जरूरी होगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, “चौथी तिमाही में 7.6% की ग्रोथ पाने के लिए निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure) में करीब 9.9% की वृद्धि की जरूरत है। इतनी तेज़ खपत ग्रोथ हाल के वर्षों में नहीं देखी गई है।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इसका एक विकल्प निवेश खर्च बढ़ाना है, जिसमें सरकार की पूंजीगत व्यय वृद्धि (Capital Expenditure) अहम भूमिका निभा सकती है।
सरकार का फिस्कल डेफिसिट (राजकोषीय घाटा) संशोधित अनुमानों के मुताबिक आगे चलकर बढ़ सकता है, अगर अनुदान की अतिरिक्त मांगें आती हैं। हालांकि, देश की नाममात्र जीडीपी (Nominal GDP) का ऊंचा स्तर इन अतिरिक्त खर्चों को कुछ हद तक संभालने में मदद कर सकता है, क्योंकि तब फिस्कल डेफिसिट का अनुपात जीडीपी के मुकाबले थोड़ा बेहतर नजर आएगा।
EY इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को आने वाले 20 सालों में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों में सरकारी खर्च को धीरे-धीरे बढ़ाना होगा, ताकि यह उच्च आय वाले देशों के स्तर के करीब पहुंच सके।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती आबादी और बदलते आर्थिक ढांचे को देखते हुए, देश में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में ज्यादा निवेश करना जरूरी है। इससे लंबी अवधि में विकास को बनाए रखने और मानव संसाधन की गुणवत्ता बेहतर करने में मदद मिलेगी।
विश्लेषण के मुताबिक, सरकार को शिक्षा पर अपना खर्च FY2048 तक बढ़ाकर जीडीपी का 6.5 फीसदी करना पड़ सकता है, जो फिलहाल 4.6 फीसदी है। वहीं, स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी खर्च 2021 के 1.1 फीसदी से बढ़ाकर 2048 तक 3.8 फीसदी करने की जरूरत हो सकती है, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता सुधारी जा सके।
EY India की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्यों में आमदनी कम है और युवाओं की आबादी ज्यादा है, वहां शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरूरी सेवाओं के लिए अतिरिक्त फंड की जरूरत होगी। इसके लिए केंद्र सरकार को समानता आधारित ट्रांसफर (equalization transfers) के ज़रिए इन राज्यों की मदद करनी चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि राजकोषीय सुधार (fiscal restructuring) को धीरे-धीरे लागू करने से विकास पर असर डाले बिना इन लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। EY का मानना है कि अगर भारत अपने राजस्व-से-GDP अनुपात को 21% से बढ़ाकर 29% तक ले जाता है, तो सरकार के पास स्वास्थ्य, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाने के लिए जरूरी संसाधन आ सकते हैं।
EY India के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डीके श्रीवास्तव ने कहा, “भारत की जनसंख्या में बदलाव के चलते कामकाजी उम्र वाले लोगों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। अगर इन्हें सही तरीके से रोजगार मिल पाया, तो इससे विकास, रोज़गार, बचत और निवेश का अच्छा चक्र शुरू हो सकता है। इसे हासिल करने के लिए सरकार को राजस्व-से-GDP अनुपात को बढ़ाना होगा और हेल्थ, एजुकेशन व इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च में धीरे-धीरे इजाफा करना होगा।”
वाई (EY) इकॉनमी वॉच रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘इक्वलाइजेशन ट्रांसफर’ यानी केंद्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता से क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, इससे उन राज्यों को बेहतर फंडिंग मिल सकती है जिनकी राजस्व जुटाने की क्षमता कम है, जिससे वे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्रों में निवेश बढ़ा सकते हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर सरकार एक संतुलित वित्तीय नीति अपनाए जो मानव संसाधन के विकास को बढ़ावा दे और साथ ही वित्तीय अनुशासन भी बनाए रखे, तो यह भारत की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं को काफी मजबूत कर सकती है।