कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से मंगलवार को जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर अपने नीति प्रवचन में आदित्य सागर महाराज ने कहा मन को हमें काबू में करना है, हमें मन के काबू नहीं होना है। हमारे मन, वचन व काया का उपयोग ही हमारी प्रवृति बनाता है।
उन्होंने कहा कि मानव इंद्रियों का उपभोग नहीं इनका उपयोग सीखें। मनुष्य को मन को वश में करने के लिए पहले अपने स्थूल शरीर को वश में करना होगा और शरीर को वश में करने का साधन तपस्या है। तपस्या का उद्देश्य दिखावा नहीं साधना होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक शरीर साथ दे रहा है, तब तक साधना में जुट जाएं। क्या पता आगे हम तपस्या व साधना के योग्य न रहें।
उन्होंने कहा कि हम त्याग करना सीखें, जितना आप त्याग करेंगे, उतना ही आप आपकी तपस्या बढेगी। बिना तप व त्याग से कुछ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि तपस्या करने से पुण्य बढता है। जब धन आए तो दान करें और जब मन मिले तो ध्यान करें। भगवान की सच्चे मन से माला फेरना भी तपस्या के समान है।
इस अवसर पर सकल जैन समाज के सरंक्षक राजमल पाटोदी, रिद्धि—सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।