नई दिल्ली। Cotton Exports: बांग्लादेश की मिलों में कॉटन (कपास) की बढ़ती मांग की वजह से भारत के कॉटन निर्यात में वृद्धि का अनुमान है। सितंबर में समाप्त होने वाले 2023-24 सीजन के लिए भारत के कॉटन का निर्यात में बांग्लादेश के मिलों की बढ़ती मांग के कारण दो तिहाई अधिक वृद्धि होने का अनुमान है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) को उम्मीद है कि शिपमेंट लगभग 26 लाख गांठ (प्रत्येक गांठ 170 किलोग्राम) तक पहुंच जाएगा जो पिछले सीजन में 15.5 लाख गांठ से 67.7 प्रतिशत अधिक है।
सीएआई के अध्यक्ष अतुल गणात्रा ने बताया कि बांग्लादेश मिलें जो मुश्किल से अपना काम चला रही हैं, अब वे भारतीय कॉटन खरीद रही हैं। क्योकि ब्राजील और अमेरिका के उनके आयात शिपमेंट में देरी हो रही है।
भारत से लगभग हर महीने 1-1.5 लाख गांठ बांग्लादेश को निर्यात किया जा रहा है। सड़क मार्ग के जरिए बांग्लादेश को 5 दिनों में कॉटन मिल जाता है। इससे भारत के कॉटन निर्यात में वृद्धि हो रही है।
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सीएआई ने अपने प्रेसिंग अनुमान में 2023-24 सीजन के 317.70 लाख गांठ की वृद्धि की है, यह फरवरी में 309 लाख गांठ थी। यह वृद्धि मुख्य रूप से मध्य भारत से आई है, जहां हाल ही में किसानों ने अपने पुराने स्टॉक को लोड करने के लिए तैयार हुए हैं। हालांकि चालू सीजन के लिए प्रेसिंग पिछले साल की तुलना में 318.9 लाख गांठ कम है। गणात्रा ने प्रोसेसिंग आंकड़ों में आई वृद्धि को बाजारों में आने वाली कैरी फॉरवर्ड स्टॉक को माना है। मई के अंत तक 296.53 लाख प्रेसिंग की जा चुकी है।
प्राकृतिक फाइबर का आयात 16.4 लाख गांठ होने का अनुमान है। इसमें से 5.5 लाख गांठ देश में मई के अंत तक आ चुका है। शुरुआती स्टॉक, आयात और प्रेसिंग के अनुमानों को मिलाकर कुल आपूर्ति 363 लाख गांठ होने का अनुमान है जो पिछले सीजन में 355.4 लाख गांठ से अधिक है।
सीएआई ने कॉटन मांग 317 लाख गांठ (311 लाख गांठ ) रहने का अनुमान लगाया है। गैर एमएसएमई सेक्टर में मांग 201 लाख गांठ (280 लाख गांठ ) रहने का अनुमान है, जबकि एमएसएमई सेक्टर में यह मांग 100 लाख गांठ (15 लाख गांठ ) से अधिक रहने का अनुमान है।
गैर वस्त्र सेक्टर की खपत 16 लाख गांठ पर स्थिर देखी गई है। गणात्रा ने बताया कि खपत के आंकड़ों में बदलाव सीओसीपीसी (कपास उत्पादन और खपत पर समिति) द्वारा तय की गई नई श्रेणियों में खपत के आंकड़ों को फिर से सामूहिकृत करने के कारण है।
सीओसीपीसी देश में कॉटन की स्थिति पर लगातार नजर रखती है और समीक्षा करती है तथा कॉटन के उत्पादन और खपत से संबंधित मामलों पर सरकार को उचित सलाह देती है। सीएआई के अनुसार कताई मिलों की औसत क्षमता उपयोग लगभग 90 प्रतिशत होने का अनुमान है। इसमें उत्तर भारत और मध्य भारत में मिले 100 प्रतिशत की क्षमता पर और दक्षिण भारत में 80 प्रतिशत क्षमता पर चल रही हैं।