-कृष्ण बलदेव हाडा –
Kota Coaching: राजस्थान की कोचिंग सिटी कहे जाने वाले कोटा में कोचिंग साम्राज्य में कोचिंग संस्थानों को छोड़कर अन्य सहयोगी कार्य क्षेत्र यथा कोचिंग छात्रों के रहने के लिए बनाए गए होस्टल, रिहायशी घरों को लाखों रुपए खर्च कर छोटे-छोटे कमरों वाले पेईंग गैस्ट में बदलने वाले, रेस्तरां, होटल और साथ ही साथ कारोबार कर रहे फ़ास्ट फ़ूड, चाय-नाश्तों के हथठेले लगाने वाले बहुत ही छोटे मगर मोटी दमड़ी कमा रहे फ़ुटकर कारोबारी वगैरह इस इस साल गंभीर संकट में हैं।
आने वाले दो-चार सालों में यह संकट टलने वाला है, इसके आसार नजर नहीं आते। इन सारे कारोबारियों पर यह संकट आया है। कोटा के कोचिंग संस्थानों की वजह से पहले राजस्थान में कोटा ऐसा शहर हुआ करता था, जहां पूरी विशेषज्ञता के साथ आईआईटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल जैसे तकनीकी संस्थानों में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए विशेषज्ञ शिक्षक अध्ययन करवाते थे और फ़ीस देते हुए भी प्रवेश एंट्रेंस टेस्ट के जरिए होता था।
इस कारण नतीजे भी सुखद मिलते थे, लेकिन जल्दी ही उस कोचिंग संस्थान ने इस व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया, जो आज सिरमोर बना हुआ है। अब एंट्रेंस टेस्ट गुजरे जमाने की बात हो गई। लालचियों ने मोटी फीस लेकर सबके लिए द्वार खोल दिए और तुर्रा यह कि अब लाखों छात्रों में से चंद छात्रों को ही दाखिला दिलाने के बावजूद मीडिया मध्यस्थतों के जरिए कपोल कल्पित आंकड़े पेशकर खबरों-विग्यापनों के जरिए वाहवाही लूट कर अगले साल ओर अधिक संख्या में कोचिंग छात्रों के आने की संभावना पक्की कर ली जाती है।
यही सब कुछ अब तक सफलतापूर्वक चलता आ रहा था। नया दौर तब आया जब कोटा के कथित नामी कोचिंग संस्थानों ने लालच की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए कोटा के इतर अन्य शहरों में अपने कोचिंग संस्थान खोल दिए, जिनकी संख्या लगातार बढ़ती चली गई। ऐसे में कोटा में कोचिंग छात्रों की भीड़ तो छटनी ही थी, जो छट गई। और अब संकट में है होस्टल, रिहायशी घरों को लाखों रुपए खर्च कर छोटे-छोटे कमरों वाले पेईंग गैस्ट में बदलने वाले, रेस्तरां, होटल और साथ ही साथ कारोबार कर रहे फ़ास्ट फ़ूड, चाय-नाश्तों के हथठेले लगाने वाले।
इनमें भी सबसे अधिक दुखी हैं वे लीज होल्डर, जिन्होंने मोटी दमड़ी देकर होस्टल लीज पर ले रखे हैं और अब जब अपेक्षा से कम कोचिंग छात्र आ रहे हैं तो लीज होल्डरों को मूल दमड़ी भी आती दिखाई नहीं दे रही, तो सिर पीटने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। प्रशासन से गुहार लगा चुके लेकिन इस मामले में प्रशासन भी पंगु है।
लीज होल्डर्स का कहना है कि मोटी रकम देकर हॉस्टल तो ले लिए, लेकिन इस बार बच्चों की संख्या कम होने से होस्टल खाली पडे हैं और 25 से 30 प्रतिशत तक ही बच्चे होस्टल में रह रहे हैं । ऐसे में लीज होल्डर को परेशानी आ रही है कि उनका पूरा हॉस्टल नहीं भरा, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है । साथ ही मानसिक तनाव भी हो रहा है।
लीज होल्डर्स चाहते हैं कि प्रशासन उनके व हॉस्टल मालिक के मध्य समझौता कराए कि कम रकम ली जाये लेकिन मालिक तैयार नहीं है। लीज होल्डर्स ने बताया कि हर वर्ष बच्चे अधिक आते थे, जिस कारण होस्टल भर जाते थे, लेकिन इस बार बच्चा कम आने से हॉस्टल खाली पडे हैं। कहीं 25 तो कहीं 30 प्रतिशत तक ही बच्चे रुके हुए हैं। ऐसे में जब लीज होल्डर को नुकसान होगा तो वे धंधे से पलायन कर जाएंगे और बच्चों को अन्य जगह शिफ्ट करना पडेगा।
इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो कोटा में एक और समस्या गहरा जाएगी जो लीज होल्डर के साथ प्रशासन के लिए भी मुसीबत बन जाएगी। अधिकांश लीज होल्डर हॉस्टल छोडने को तैयार बैठे हैं। यदि ऐसा होता है तो कोटा में अफरा तफरी का माहौल होगा। अर्थ व्यवस्था बिगडने की संभावना बनी रहेगी, हमारे साथ हजारों की संख्या में दूसरे व्यवसाय से जुडे लोग भी परेशान हो रहे हैं।