नई दिल्ली। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने नियम बनाया था कि किसी भी थर्ड पार्टी पेमेंट वॉलेट की UPI ट्रांजेक्शन में 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी नहीं होगी। अगर किसी भी पेमेंट वॉलेट की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से अधिक होती है, तो उसे घटाने का इंतजाम किया जाएगा।
यह नियम पहले दिसंबर 2022 से लागू होने वाला था, लेकिन बाद में Google Pay और Walmart के PhonePe जैसे थर्ड-पार्टी ऐप प्रोवाइडर (TPAP) को दो साल की मोहलत दे दी, जो इस साल के आखिर यानी दिसंबर 2024 तक खत्म होने वाली है। मतलब कि जिन पेमेंट ऐप की डिजिटल ट्रांजेक्शन में हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से अधिक है, उन्हें 1 जनवरी 2025 तक इसे घटाने का इंतजाम कर लेना होगा।
गूगल पे और फोनपे जैसे दो ही थर्ड पार्टी पेमेंट ऐप की फिलहाल UPI-बेस्ड ट्रांजेक्शन में 85 फीसदी हिस्सेदारी है। वहीं, पेटीएम इस सेगमेंट का सबसे चर्चित ऐप रहा है, फिर भी उसकी हिस्सेदारी काफी कम है। ये ऐप भी इंतजार कर रहे हैं कि डिजिटल ट्रांजेक्शन में हिस्सेदारी घटाने के बारे में NPCI से किसी तरह की गाइडलाइंस आती है या नहीं। NPCI ही यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) चलाता है, जिसका इस्तेमाल खरीदारी के वक्त रियल टाइम यानी हाथोंहाथ डिजिटल पेमेंट के लिए किया जाता है।
सूत्रों के हवाले से बताया कि NPCI जोखिम कम करने के लिए 30 प्रतिशत यूपीआई मार्केट सीलिंग को लागू करने का तरीका बताया जाएगा। इसका एक उपाय यह हो सकता है कि 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी वाले ऐप को नए ग्राहक जोड़ने से मना कर दिया जाए। हालांकि, यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा, ताकि यूजर्स को किसी तरह की परेशानी ना हो।
अभी डेडलाइन खत्म होने में कुछ महीने बचे हैं। ऐसे में उम्मीद है कि NPCI आने वाले समय में इस पर और क्लैरिटी देगा, जिससे बिना किसी अड़चन के यह नियम लागू हो जाएगा। एक सीनियर बैंकर का कहना है, ‘जब दो ऐप (Google Pay और Phone Pe) का ट्रांजेक्शन पर इतनी अधिक रहेगी, तो इससे जोखिम बढ़ जाता है।
अगर इनके साथ कोई दिक्कत होती है, तो पूरा पेमेंट सिस्टम हिल जाएगा। इससे यूजर्स को बड़ी दिक्कतों का सामना करना भी पड़ सकता है।’ यही वजह है कि NPCI डिजिटल ट्रांजेक्शन में इनकी हिस्सेदारी घटाने का इंतजाम कर रहा है।
प्रतिस्पर्धा कानूनों में विशेषज्ञता वाले वरिष्ठ वकील संजीव शर्मा का कहना है कि इस तरह की स्थिति में प्रतिस्पर्धा की गुंजाइश काफी कम हो जाती है, जिससे यूजर्स को ज्यादा कीमत पर चुकानी पड़ सकती है।
उन्होंने कहा कि दिग्गज कंपनी मार्केट शेयर हथियाने के लिए भारी-भरकम निवेश करती हैं। जब मार्केट पर उनकी मोनोपॉली हो जाती है, तो अपने निवेश पर बड़ा रिटर्न हासिल करने के लिए ये अपनी सेवाओं का दाम बढ़ा देते हैं। इससे इनोवेशन की गुंजाइश भी कम हो जाती है और छोटी कंपनियों को फलने-फूलने का मौका भी नहीं मिलता।