-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। POP Pratimayen: शहर में तमाम प्रतिबंधों के बावजूद धार्मिक आयोजनों के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से प्रतिमाओं के बनाने और उन्हें बेचने का सिलसिला जारी है। कोटा में छावनी स्थित बंगाली कॉलोनी इन मूर्तियों के निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र बनी हुई है, जहां बड़े पैमाने पर प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हुई प्रतिमाओं का निर्माण होता है और उन्हें भी बेचा भी जाता है।
हालांकि जिला प्रशासन की ओर से ऐसी प्रतिमाओं के निर्माण और उनके विक्रय पर प्रतिबंध लगाते हुए कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी जा चुकी है, लेकिन इसके बावजूद न तो प्रतिमाओं का निर्माण का काम रुका है और न ही इसके निर्माण को रोकने की दृष्टि से कहीं पर कोई सख्ती की झलक दिखाई दी है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी के मौके पर गणेश चतुर्थी से गणपति की स्थापना से पहले बड़ी संख्या में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हुई गजानंद की मूर्तियां बनाई गई, जिन्हें बाद में श्रद्धालुओं को विक्रित भी किया गया। अब यह सिलसिला आने वाले नवरात्र महोत्सव की दृष्टि से जारी है।
श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के साथ नवरात्रि महोत्सव की शुरुआत होगी और घर-घर में ही नहीं बल्कि सार्वजनिक स्थानों पर भी दुर्गा माता की प्रतिमाओं की स्थापना होगी, जिसके लिए बड़े पैमाने पर प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से मूर्तियां बनाई जा रही है, जबकि प्रशासन सहित स्वयंसेवी संगठन,पर्यावरणविद् लगातार लोगों से प्लास्टर ऑफ पेरिस की जगह मिट्टी से बनी मूर्तियों की स्थापना की अपील करते रहे हैं, लेकिन ऐसी अपीलें कारगर साबित होती नजर नहीं आ रही है।
अनंत चतुर्दशी महोत्सव के अवसर पर बड़ी संख्या में प्रतिबंध के बावजूद प्लास्टर ऑफ पेरिस से भगवान गणेश की छोटी से लेकर विराट प्रतिमाएं बनाई जाती है, जिन्हें इन महोत्सव के अवसर पर प्राकृतिक जल स्रोतों और अन्य जल स्रोतों में प्रवाहित किया गया।
प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी यह मूर्तियां और इन मूर्तियों के बनाने के बाद उनकी सजावट में इस्तेमाल किए गए रंगों में घातक रसायन होने के कारण वह प्राकृतिक जल स्रोतों और अन्य जल स्रोतों के जीवो और वनस्पतियों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
बड़ी संख्या में मछलियां मर भी जाती है जिसके बाद इन रसायनों सहित मरी हुई मछलियों के कारण प्राकृतिक जल स्त्रोतों का पानी दूषित हो जाता है। इसे रोकने के लिए ही केंद्र से लेकर राज्य सरकार और स्थानीय निकाय प्रशासन तक समय-समय पर औपचारिक गाइड लाइन जारी करते रहे हैं जिसे गंभीरता से लागू किए जाने की आवश्यकता है।
प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी इन मूर्तियों के बदले में प्रशासन की ओर से सार्वजनिक एवं पारिवारिक स्तर पर आयोजन करने वाले लोगों को यह अकसर सलाह दी जाती है कि वह या तो मिट्टी से बनी प्रतिमाएं खरीदे या स्वयं ही उन्हें तैयार कर उनका पूजन करें और विधि-विधान संपन्न होने के बाद उन्हें अपने घरों में ही गमलों में विसर्जित कर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अपना व्यक्तिगत योगदान दें।
प्लास्टर ऑफ पेरिस, सीमेंट और प्लास्टिक से बनी मूर्तियों के विसर्जन से न केवल पर्यावरणीय क्षति होती है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी गम्भीर परिणाम होते हैं। ऐसी मूर्तियों को सजाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले पेन्ट में पारा, जिंक आक्साईड, क्रोमियम और सीसा जैसे हानिकारक पदार्थ होते हैं।
वे नदियों झीलों और स्थानीय तालाबों पर महत्वपूर्ण तनाव पैदा करते हैं, पानी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं, पानी के प्राकृतिक प्रभाव को अवरूद्ध करते हैं, त्वचा रोगों और कैंसर के सम्भावित कारण होते हैं। इनके परिणामस्वरूप मिट्टी और भूमि भी प्रभावित होती है।
प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए प्लास्टर ऑफ पेरिस के बजाय चिकनी मिट्टी, कागज एवं प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करने, हानिकारक सामग्रियों के उपयोग को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। मूर्ति विसर्जन के लिए केन्द्रीय नियंत्रण प्रदूषण बोर्ड द्वारा दिशा निर्देश जारी किये गये हैं।
दिशा निर्देशों के मुख्य पहलुओं में मूर्ति निर्माण के लिए प्राकृतिक सामग्रियों और पारम्परिक मिट्टी का उपयोग, मूर्तियों की पेटिंग को हतोत्साहित करना, पानी में घुलनशील और गैर विषैले प्राकृतिक रंगो को बढ़ावा देना शामिल है।