आईटी छापे से बीबीसी की नहीं पीएम मोदी की साख खतरे में

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-कृष्ण बलदेव हाडा
नई दिल्ली में कनॉट प्लेस स्थित ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) के साउथ एशिया मुख्यालय पर आज इनकम टैक्स के छापे डाले जाने के बाद एक बार फिर केंद्र सरकार और उसके तीनों प्रमुख जांच एजेंसी की साख पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो आज अपने कोटा में अल्प प्रवास के दौरान यहां तक कहा कि इन छापों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न केवल देश की बल्कि केंद्र सरकार की बदनामी होगी। सरकार बताए कि आखिर यह छापे क्यों मार रही हैं ?

यह छापे आज उस समय मारे गये जब हाल ही में बीबीसी ने गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गोधरा कांड के बाद पूरे राज्य में भीषण सांप्रदायिक दंगों के समय तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उस समय के प्रशासनिक तंत्र की विफलताओं के बारे में एक डॉक्यूमेंट्री के दो एपीसोड का प्रसारण किया गया है, जिसमे दिखाया गया है कि किस तरह से गोधरा कांड के बाद लोगों का कत्ले-आम किया गया।

राजनीतिक और प्रशासनिक शह पर लोगों को बेरहमी से मारा गया। इस डॉक्यूमेंट्री को लेकर भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े अन्य संघटनों ने देश में कई जगह बवाल भी खड़ा किया और इस डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाने की मांग की। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी से मिलती-जुलती विचारधारा रखने वाले एक हिंदू संगठन ने इस डॉक्यूमेंट्री पर रोक की मांग की अर्जी सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई लेकिन हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर मांग को ठुकरा दिया।

अब न्यायिक मोर्चे पर भी मात खाने के बाद केंद्र सरकार ने अपनी मातहत तीन प्रमुख एजेंसियों- इनकम टैक्स, प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो में से एक इनकम टैक्स (आईटी) को आगे कर बीबीसी के दिल्ली स्थित मुख्यालय व मुम्बई कार्यालय पर आज छापा डलवाया है। हालांकि कहा यह गया है कि अंतरराष्ट्रीय टैक्स गड़बड़ी की आशंका की जांच को लेकर यह छापे मारे गए हैं।

लेकिन बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के प्रसारित होने और उस पर रोक लगाने की सभी कोशिश में विफल रहने के बाद केंद्र सरकार ने एक खास समय को छापों के लिए चुना है जिससे केंद्र सरकार खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होंगे। यह छापे अपनी स्वतंत्रता के लिये प्रतिबद्ध मीडिया के प्रति असहिष्णुता की उनकी नीतियों को जगजाहिर करने के लिये पर्याप्त है।

क्योंकि हाल ही में पूरे देश ने देखा कि किस तरह से केंद्र सरकार खासकर उसके मुखिया नरेंद्र मोदी की विभिन्न मोर्चों पर विफल रहने के कारण उस पर अपनी बात बेबाकी से रखने वाले एक पत्रकार को चुप करवा पाने में विफल रहने के बाद इसका एक साथी-सहयोगी उद्योगपति पत्रकार को तो नहीं खरीद पाया, अलबत्ता उसने वह पूरा चैनल ही खरीद डाला जिससे वह पत्रकार जुड़ा हुआ था।

इन छापों के बाद भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता गौरव भाटिया ने बीबीसी की विश्वसनीयता पर ही सवाल करते हुए खड़े करते हुए इसे सबसे भ्रष्टऔर बकवास ब्रॉडकास्टिंग संगठन बताया है। अपनी इस बात पर शायद गौरव भाटिया को खुद भी ज्यादा विश्वास नहीं होगा क्योंकि और किसी को तो नहीं लेकिन कम से कम भारत की जनता में बीबीसी की विश्वसनीयता के प्रति कितना विश्वास है,यह जगजाहिर है और उसे किसी गौरव भाटिया के सर्टिफ़िकेट की आवश्यकता नहीं है।

लोग आज भी उस बात को सौ टका खरा मानते हैं जिसे बीबीसी प्रसारित करता है। वैसे वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी और इसके पहले जनसंघ रहा यह राजनीतिक संगठन वर्ष 1927 में एक चार्टर के जरिये स्थापित बीबीसी के प्रति अपनी रुचि-अरुचि, विचारधारा के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है।

1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी किसी मसले पर मतभेद के बाद जब श्रीमती गांधी ने बीबीसी को निशाना बनाया था तो इसी जनसंघ के लोगों ने उसकी लेकर कड़ी आलोचना की थी कि स्वतंत्र पत्रकारिता का गला घोंटा जा रहा है,इंदिरा गांधी तानाशाह का रूप में व्यवहार कर रही है अब नए राजनीतिक परिवेश में भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने आया यही जनसंघ बीबीसी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा और अंतरराष्ट्रीय टैक्सों में कथित गड़बड़ी के नाम पर बीबीसी के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों छापे मारे गए हैं।