-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान के कोटा में आयोजित तीन दिवसीय कोटा महोत्सव निश्चित रूप से अपनी अनूठी छाप छोड़ गया है। इस महोत्सव के आयोजन में एक ही मंच के जरिए न केवल आम लोगों को हाडोती की बल्कि देश के अन्य हिस्सों की लोक कला संस्कृति से आमना-सामना करवाया।
क्योंकि इसमें शेखावाटी के चंग की थाप थी तो वहीं हाडोती के सहरियों के लोक नृत्य के थिरकन भी। साथ मिला एडवेंचर, वॉटर स्पोर्ट्स, नेचर वॉक, फ्लावर शो जैसी गतिविधियां का जिनके जरिए हजारों लोगों का वन-वन्यजीव-प्रकृति से मिलान करवाया गया तो परकोटे के भीतरी हिस्से में हुये हेरिटेज वॉक के जरिए पुरातात्विक वैभव से लोग जुड़े। खेलकूद गतिविधियों के जरिए शारीरिक वर्जिश की जरूरत का भी इस महोत्सव के जरिए अहसास करवाया गया।
कोटा के वर्तमान जिला कलक्टर ओपी बुनकर की सोच और पहल पर पहली बार आयोजित कोटा महोत्सव के जरिए हजारों लोगों को शहर के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न अंदाज के साथ आयोजित सांस्कृतिक वैभव और कलात्मक गतिविधियों से भरपूर तीन दिवसीय आयोजन के जरिये कई हजार लोगों एक-दूसरे से जुड़े।
इस कार्यक्रम की एक खास बात यह रही कि राजनीति एवं राजनीतिज्ञों के दखल को आमतौर पर इस समूचे से दूर रखा जिसके कारण लगभग सभी आयोजित कार्यक्रम समयबद्ध तरीके से बिना किसी वैचारिक-भावनात्मक बटवारे के पूरे उत्साह के साथ सफलतापूर्वक आयोजित हो सके।
हालांकि कोटा में वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रकोप के वर्ष 2020 से पहले पिछले कई दशकों से प्रशासन के साथ-साथ हाडोती की लोक कला, संस्कृति, पुरातत्व में अभिरुचि रखने वाले लोगों के सामूहिक प्रयासों से हाडोती उत्सव का आयोजन होता रहा है। निश्चित रूप से उस पारंपरिक आयोजन में हर साल हजारों-हजार लोगों की भागीदारी रहती रही है।
हाडोती उत्सव में लोग खासतौर से शहरी पृष्ठभूमि वाले लोग और युवा वर्ग को हाडोती अंचल की विभिन्न लोक कलाओं सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक वैभव से रूबरू होने का सालाना मौका मिलता रहा है।
हाड़ोती उत्सव की भांति इस कोटा महोत्सव ने भी कुछ मायनों में नई ऊंचाइयों को छुआ है। क्योंकि यह लोगों को हाडोती की लोक कला, संस्कृति, पुरातात्विक वैभव के साथ-साथ यहां की प्रकृति, वन-वन्यजीव और पर्यटन से जोड़ने में सफल रहा है।
इस समय आयोजन की सबसे बड़ी और विशेषता यह भी रही है कि लोग स्वत: स्फ़ूर्त इस आयोजन से जुड़ते गये और भविष्य में ऐसे ही आयोजनों की नियमितता बनाए रखने का संदेश दिया। जन-जन के उत्साह ने इसे जन-जन के महोत्सव में तब्दील कर एक सकारात्मक संदेश दिया, जिसके स्तरीय और सुव्यवस्थित कार्यक्रमों से लोगों की अधिकतम भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना संभव हो सका। यह आयोजन सामूहिक प्रयासों के साथ आपसी समन्वय से सफल आयोजन और प्रस्तुतीकरण का अनूठा अनुकरणनीय उदाहरण बन गया।
दादा-पोते की दौड़ से जहां उम्र के फासले को पाटने की सफलतापूर्वक कोशिश की गई। वहीं कोटा शहर के बीचों-बीच स्थित ऐतिहासिक किशोर सागर तालाब की पाल पर तीन दिन तक लगातार आयोजित फ्लावर शो के जरिए लोग प्रकृति से रूबरू हुए हैं। इस आयोजन में प्रतिदिन सबसे अधिक हजारों लोगों की भागीदारी देखी गई।
वाटर स्पोर्ट्स और बैलून शो के जरिए खेल गतिविधियों से जुड़े तो कोटा शहर के भीतरी हिस्से में आयोजित हेरिटेज वॉक के माध्यम से हाडोती अंचल के सांस्कृतिक वैभव, पुरातात्विक महत्व को अनूठे अन्दाज में देखने का मौका मिला।
सबसे लंबी मूछ, साफा बांधने जैसी प्रतियोगिताओं ने राजस्थान की आन-बान-शान से अवगत कराया, वहीं रस्साकशी जैसी स्पर्धाओं ने शारीरिक कसरत के महत्व को प्रतिपादित किया। फ़ैशन-शो के जरिए लोग राजस्थानी से लेकर आधुनिक वेशभूषा तक को लोग एक ही मंच से देखने में सफल रहे, जिसमें राजस्थानी संस्कृति की पृष्ठभूमि पर संगीत की धुनों के बीच पारंपरिक परिधानों की भी सफलतापूर्वक आधुनिक तौर-तरीके से प्रस्तुति दी गई थी ।
‘फ़ोर-के’ के लिए मशहूर कोटा के इन ‘फ़ोर-के’ यानी कोटा कचोरी,-कोटा स्टोन, कोटा-डोरिया साड़ी,कोटा-कोचिंग से एक ही महोत्सव के जरिए साक्षात होने का सुअवसर मिला। इस आयोजन में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ने विविध कार्यक्रमों में हिस्सेदारी कर दर्शकों के रूप में अपनी उपस्थिति के माध्यम से भरपूर मजा उठाया।
क्योंकि यहां कला-संस्कृति, पुरातात्विक वैभव, साहसिक गतिविधियों, डॉग शो, फ्लावर शो के साथ फूड फेस्टिवल के जरिए मनपसंद पारंपरिक भोजन सहित मिठाइयां, पिज्जा, बर्गर जैसे पाश्चात्य खाद्य पदार्थों के साथ दक्षिण भारतीय व्यंजन इडली-सांभर भी मौजूद थे।