-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। खुले बाजार में बिक्री के लिए लाई जाने वाले कृषि उपजों के भाव गिरने से आशंकित किसान और उनके प्रतिनिधि संगठन इस पक्ष में है कि सरकार की ओर से घोषित समर्थन मूल्य पर सरकारी कांटो पर खरीद के लिए पंजीकरण का काम साल भर जारी रखकर उपजों की खरीद की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम मिल सके।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद की व्यवस्था से जुड़े विभिन्न पक्षों से बातचीत के बाद यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि मौजूदा व्यवस्था में रबी और खरीफ के दोनों ही कृषि सत्रों में आवश्यकता के अनुसार केंद्र एवं राज्य सरकार विभिन्न कृषि जिंसों की खरीद के लिए सरकारी कांटो पर समर्थन मूल्य से उपजों की खरीद की घोषणा करती है।
यह समर्थन मूल्य किसानों की अपेक्षाओं पर तो खरे नहीं होते लेकिन बाजार में यदा-कदा गिरते भाव की स्थिति में उन्हें संबल जरूर प्रदान करते हैं। मगर उपज के खरीद के लिए पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) की व्यवस्था त्रुटिपूर्ण होने के कारण किसानों को इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है।
जानकारों का कहना है कि रबी और खरीफ के कृषि सत्र में सरकार समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए पंजीयन का काम शुरू करती है और एक निर्धारित अवधि के बाद पंजीयन का काम बंद कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए जैसे अभी खरीफ़ कृषि सत्र की उपज सोयाबीन, मूंगफली, उड़द, मूंग की खरीद के लिए कोटा संभाग समेत समूचे राज्य में 31 अक्टूबर तक पंजीयन किया गया, जिसे अब बंद कर दिया गया है।
कोटा ही नहीं बल्कि सभी जगह अव्वल तो नाम मात्र के किसानों ने अपने पंजीयन करवाए हैं और जिन्होंने करवाए हैं, उनके भी सरकारी कांटो पर अपनी उपज को बेचने के लिए नहीं पहुंचने के कारण कांटे सूने पड़े रहे। बारां जिले की एक ताजा मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी कांटों पर एक भी किसान अपनी उपज बेचने नहीं पहुंचा।
वजह साफ है और वह यह है कि जब किसानों को समर्थन मूल्य से कहीं अधिक भाव मंडियों में ही मिल रहे हैं, तो वह इन कांटों पर बेचने की लंबी सरकारी सरकारी प्रक्रिया में क्यों उलझे? आने वाले दिनों में इस सारी प्रक्रिया का दुष्प्रभाव यह उभर कर सामने आने वाला है कि अभी तो आढ़तियों से किसानों को उनकी उपज का अच्छा भाव मिल रहा है, लेकिन जल्दी ही यह भाव गिर कर समर्थन मूल्य से भी नीचे पहुंच जाना तय है।
ऐसे में किसानों के समक्ष यह आसन्न संकट होगा क्योंकि खुले बाजार में बेचने से उन्हें घाटा है। चूंकि इन किसानों ने सरकारी खरीद केंद्रों पर पंजीयन नहीं करवाया। इसलिए सरकारी कांटों पर भी अब वह नहीं बेच सकते। ऐसे में आढ़तियों-व्यापारियों के हाथों लुटने के अलावा किसानों के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता।
यह सारी व्यवस्था निजी क्षेत्र को लाभ पहुंचाने की कोशिश करती नजर आती है। इसीलिए कृषि क्षेत्र के जानकार यह आरोप भी लगा रहे हैं कि वर्तमान में समर्थन मूल्य पर किसानों से उनकी उपज की खरीद की यह सारी नौटंकी भविष्य में समर्थन मूल्य पर खरीद की समुचित प्रणाली को ही ध्वस्त कर देने की साजिश का एक अहम हिस्सा हो सकती है। ताकि आने वाले समय में किसानों से सरकारी स्तर पर खरीद के लिए समर्थन मूल्य घोषित कर उस पर खरीद सुनिश्चित करने की मांग ही नहीं उठे।
इस बारे में पूछे जाने पर हाड़ौती किसान यूनियन के महामंत्री दशरथ कुमार शर्मा ने बताया कि निश्चित रूप से सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद महज एक छलावा है। जब किसानों को पहले ही खुले बाजार में अपनी उपज का अच्छा भाव मिल रहा है तब उससे कमतर खरीद दाम के साथ समर्थन मूल्य घोषित होता है और उसके लिए पंजीयन किया जाता है। तब किसान पंजीयन नहीं करवाता, लेकिन बाद में जब बाजार में भाव घटकर ओना-पौना रह जाता है तो पंजीयन बंद हो चुका होता है।
ऐसे में गैर-पंजीकृत किसानों से उपज खरीदी नहीं जाती। इसलिए पंजीयन की प्रक्रिया जरूरी दस्तावेजों के साथ सदैव जारी रखी जानी चाहिए। ताकि जब आढ़तिये-व्यापारी भाव घटाकर किसानों का शोषण शुरू करें, तो सरकारी कांटों पर किसान अपनी उपज बेच सकते हैं। लेकिन लगता नहीं है कि सरकार आढ़तियों-व्यापारियों के हितों के आगे किसानों के हित-लाभ को तरजीह देगी।