-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। संभाग में रबी की फसल के लिए जमीनी स्तर पर यूरिया-डीएपी खाद की आवश्यकता नहीं होने के बावजूद इन दिनों उर्वरकों को लेकर मारामारी शुरू हो गई है। कई किसानों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद यह तथ्य सामने आया है कि अभी रबी फसलों की बुवाई का काम शुरुआती चरण में ही है। इसके बावजूद किसानों की मांग के कारण बाजार में उर्वरक की किल्लत हो गई है।
इसकी बड़ी वजह जरूरत के समय उर्वरकों की उपलब्धता के बारे में राजनेताओं के वायदों के प्रति किसानों में अविश्वास की भावना बताई जाती है। किसान राजनेताओं से नहीं बल्कि उर्वरकों की उपलब्धता को लेकर प्रशासन से ठोस आश्वासन चाहता है।
हालांकि राज्य सरकार की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि रबी फसलों के लिए किसानों को यूरिया-डीएपी की कमी नहीं आने दी जाएगी। किसानों को रबी की फसल के लिए उनकी जरूरत के मुताबिक उर्वरक उपलब्ध करवाया जाएगा। पिछले अक्टूबर माह में ही राज्य सरकार ने किसानों को 1.67 लाख मैट्रिक टन यूरिया और 1.09 लाख मैट्रिक टन डीएपी उपलब्ध करवाया है, जबकि राज्य में अभी 1.31 लाख मैट्रिक टन यूरिया और 56 हजार मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध है।
इसके विपरीत किसानों की शिकायत है कि उन्हें डीलरों-मार्केटिंग सोसायटी से पर्याप्त मात्रा में यूरिया और डीएपी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। हालांकि वास्तविक स्थिति यह है कि किसानों को अभी रबी की फसल के लिए यूरिया-डीएपी की उतनी जरूरत है ही नहीं, जितनी उसे हासिल करने के लिए आपाधापी की जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह राजनेताओं की कोरी बयानबाजी और उनके वायदों के प्रति अविश्वास की भावना ही है।
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इस बारे में बूंदी जिले के केशोरायपाटन क्षेत्र के भिया गांव के जागरूक किसान जगदीश कुमार ने बताया कि कोटा और बूंदी जिले के नहरी क्षेत्र में किसानों के लिए चंबल की दांई और बांई मुख्य नहर से पानी छोड़ा जा चुका है, लेकिन अभी किसानों को यूरिया की आवश्यकता नहीं है। अभी तो सरसों की बुवाई का काम ही चल रहा है और उसके कुछ दिन और चलने रहने की उम्मीद है। उसके बाद गन्ने की बुवाई होगी और सिंचित क्षेत्र में तो जहां-जहां खरीफ़ के कृषि सत्र में धान की खेती की गई है, उस रकबे में आमतौर पर गेहूं की पैदावार की जाती है। उसकी बुआई-पिलाई में भी अभी देर है। इसलिए यूरिया-डीएपी की आवश्यकता नहीं है।
किसानों का जनप्रतिनिधियों से भरोसा उठा
ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वोदयी विचारधारा के प्रचार-प्रसार से जुड़े राष्ट्रीय युवा संगठन के प्रदेश संयोजक जगदीश कुमार का कहना है कि दरअसल जरूरत नहीं होने के बावजूद बाजार में यूरिया-डीएपी की मांग की बड़ी वजह सरकार और राजनेताओं के प्रति अविश्वास की भावना है। किसानों के मन में यह बात अच्छे से बैठ गई है कि अपने निहित स्वार्थों के चलते राजनेता यूरिया-डीएपी के उपलब्ध करवाने के वायदे कर लेते हैं, जो बाद में झूठे साबित होते हैं। क्योंकि जब जरूरत होती है तो किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल पाता है।
पुलिस की लाठियों के सिवा कुछ नहीं
घंटों कतार में खड़े रहना पड़ता है और कई बार तो तब भी पुलिस की लाठियों के अलावा कुछ हासिल नहीं होता। जगदीश कुमार ने कहा कि किसान राजनेताओं से नहीं बल्कि उपखंड अधिकारी, उपखंड मजिस्ट्रेट से लेकर कलक्टर स्तर तक के प्रशासनिक अधिकारियों से स्पष्ट आश्वासन चाहता है कि जरूरत होने पर उसे उसकी आवश्यकता के अनुरूप उर्वरक मिल जाएगा। जनप्रतिनिधियों के वायदों से तो उसका भरोसा कब का उठ चुका है।
कालाबाज़ारी के लिए जमाखोरी
जरूरत नहीं होने के बावजूद यूरिया-डीएपी की मांग के बारे में बूंदी जिले के तालेड़ा क्षेत्र के बरूंधन गांव के जागरूक किसान राम प्रसाद सैनी ने बताया कि असल में यह मांग स्थानीय किसानों की नहीं है बल्कि जमाखोर कालाबाजारियों की है जो कुछ अनुज्ञाधारी वितरकों से सांठगांठ करके यूरिया-डीएपी खरीद रहे हैं, जिसे जरूरत के समय मांग बढ़ने पर किसानों को मोटे मुनाफे पर बेचा जा सके।
प्रशासन कालाबाज़ारी रोके
सिंचित-असिंचित क्षेत्र के स्थानीय किसानों को यूरिया की तो अभी वैसे भी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि सिंचाई के लिए पहली बार धनिया, गेहूं, सरसों, लहसुन आदि की फसल में पानी छोड़ने के उपरांत ही यूरिया की आवश्यकता होगी। अभी तो खेत तैयार करने का काम चल रहा है। जब बिजाई का काम शुरू होगा तब डाई अमोनिया फास्फेट (डीएपी) की आवश्यकता होगी, ताकि बीजों के साथ उसका छिड़काव किया जा सके। प्रशासन और कृषि विभाग के लिए अभी तो इस कालाबाजारी को रोके जाने की आवश्यकता है।