नई दिल्ली। देश के 15वें राष्ट्रपति के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराकर जीत हासिल कर ली है। अब तय है वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के बाद द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला होंगी जो राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी। द्रौपदी मुर्मू 5,77,777 वोट पाकर राष्ट्रपति का चुनाव जीत गईं हैं। जबकि यशवंत सिन्हा को 2,61,062 वोट ही मिले हैं।
एनडीए के संख्याबल को देखते हुए उनकी जीत पहले से तय मानी जा रही थी, आज औपचारिक ऐलान भी हो गया। उन्हेंं बधाई मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है। सबसे पहले यशवंत सिन्हा ने उन्हें जीत की बधाई दी। इसके बाद पीएम मोदी भी मुर्मू से मिलने उनके आवास पहुंचे और उन्हेंं बधाई दी।
देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली शांत, शालीन और थोड़ा सख्त स्वभाव वाली द्रौपदी का सफर मुश्किलों भरा रहा है। संथाल समुदाय से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था। उनके पिता और दादा प्रधान रहे। बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले की होने के कारण मुर्मू ने गरीबी और दूसरी समस्याओं से जुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया।
शायद कम लोगों को पता होगा कि देश की नई राष्ट्रपति ने राजनीति में आने से पहले अपने करियर की शुरुआत एक क्लर्क के तौर पर की थी। उन्होंने 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया। 1994 से 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में भी कार्य किया। बाद में राज्य की मंत्री बनीं।
द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। इसी साल रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ। साल 2000 में बीजू जनता दल और भाजपा की गठबंधन सरकार के समय वह मंत्री बनीं।
उन्होंने परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभाला। 2007 में मुर्मू को ओडिशा विधानसभा की ओर से साल के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।