अर्थ पुरूषार्थ से कमाएं, परन्तु लोभी न बनें: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चातुर्मास के तहत मंगलवार को जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में अध्यात्म विशुद्ध ज्ञान पावन वर्षायोग में आदित्य सागर जी मुनिराज ने कहा कि मनुष्य में गुण व दोष दोनो विद्यमान होते हैं। हमें उन्हें पहचान कर, गुणों को बढाना व दोषों को दूर करना है। परन्तु मनुष्य उसका विपरीत ही करते हैं और अपनी मंजिल से दूर हो जाते हैं ।

गुरुदेव कहते हैं कि नीतिकारों के अनुसार मनुष्य में यदि कोध व लोभ मौजूद है तो उसे किसी अन्य दोष की जरूरत ही नहीं है। यह दोष उसका विनाश करने के लिए काफी है। हमें क्रोध व लोभ का त्याग करना है। मनुष्य को व्यापार में लाभ कमाना चाहिए। अपने पुरुषार्थ से धन अर्जित करना चाहिए। धन का संग्रह हो उसे दान, दक्षिणा और धर्म में खर्च करें।

क्रोध लेकर आता है और मनुष्य का पतन प्रारंभ होता है। इसलिए आसक्ति व लोभ से दूर रहे। मोक्ष के मार्ग में आना है तो जो मिल जाए उसका आनंद लें, जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। कर्म की प्रकृति के अनुसार ही यश व र्कीति फैलती है। हमें उतना ही फैलाना चाहिए जितना आप समेट सकें। हमे यश की चिंता नहीं करनी चाहिए। यश तो साधना से फैलता है।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, पारस बज, पारस कासलीवाल, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खरोड़, राजमल पाटोदी, निर्मल अजमेरा,पदम बडला सहित कई लोग उपस्थित रहे। इस मौके पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ।