कोटा विकास प्राधिकरण विधेयक काला बिल: भरत सिंह

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KDA बिल के विरोध में संभागीय आयुक्त को ज्ञापन देते भरत सिंह।
आखिरी मौजूदा सरकार को कोटा विकास प्राधिकरण (केडीए) के गठन का विधेयक पारित करने की जल्दबाजी क्या थी, जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यह लगातार दावा कर रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद भी राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार बनेगी तो अगली सरकार बनने का इंतजार क्यों नहीं किया गया?

कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। Kota Development Authority Bill: राजस्थान में कोटा जिले की सांगोद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व में कैबिनेट मंत्री रहे भरत सिंह कुंदनपुर ने राज्य विधानसभा में पारित कोटा विकास प्राधिकरण के गठन के विधेयक को काला बिल करार देते हुए प्राधिकरण नहीं बनाने की मांग का राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन दिया।

श्री भरत सिंह की अगुवाई में बुधवार को एक प्रतिनिधिमंडल ने कोटा की संभागीय आयुक्त को राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन सौंपा जिसमें कोटा विकास प्राधिकरण के गठन के विधेयक को काला बिल करार देते हुए कहा गया है कि यह प्राधिकरण विकास का नहीं बल्कि कोटा के विनाश का कारण बनने वाला है क्योंकि यह भी विधेयक जनप्रतिनिधियों, कोटा और बूंदी जिले के लोगों के आकांक्षाओं के विपरीत भू माफियाओं के दबाव में तैयार किया गया है।

श्री सिंह ने तो यहां तक कहा कि इस विधेयक का प्रारूप ही भू माफियाओं का बनाया हुआ लगता है क्योंकि कोटा विकास प्राधिकरण के गठन के बाद सिर्फ और सिर्फ भू माफियाओं को ही लाभ होने वाला है। प्राधिकरण के गठन से उनकी आर्थिक उन्नति होगी जबकि किसानों का शोषण होगा।

श्री सिंह ने कहा हालांकि कोटा विकास प्राधिकरण का प्रावधान बजट घोषणा में किया गया था. लेकिन इस प्राधिकरण के गठन का विधेयक का प्रारूप तैयार करने से पहले राज्य सरकार ने इसे प्राधिकरण के गठन के बाद प्रभावित होने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों जैसे संबंधित क्षेत्र के विधायक, कोटा और बूंदी जिलों के जिला प्रमुखों, प्रधानों, सरपंचों से राय लेने तक जरूरी नहीं समझा है और 24 जुलाई को राज्य विधानसभा में हंगामे के बीच बिना किसी चर्चा के इस विधेयक को पारित कर दिया गया।

ज्ञापन में कहा गया है कि प्रस्तावित कोटा विकास प्राधिकरण में कोटा और बूंदी जिले जिलों के 286 गांवों को शामिल किया गया है, जिनमें बूंदी जिले की तालेड़ा और केशवरायपाटन पंचायत समिति के गांव भी शामिल हैं। जहां इस विकास प्राधिकरण के गठन का विरोध हो रहा है। जनता इसके विरोध में हैं।

श्री भरत सिंह ने कहा कि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र सांगोद के 10 गांवों को कोटा विकास प्राधिकरण में शामिल करने का प्रावधान किया गया है, लेकिन वे उस क्षेत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं। उनसे किसी ने राय तक पूछने जरूरी नहीं समझा। उन्होंने कहा कि इस प्राधिकरण के खिलाफ ग्रामीण जनता है और इसका गठन होने से रोकने के लिए हर संभव तरीके से विरोध किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि श्री सिंह पूर्व में भी यह कह चुके हैं कि और आखिर कोटा विकास प्राधिकरण के गठन के इस विधेयक को सदन के इसी सत्र में बिना किसी बहस के पारित करवाने की ऐसी जल्दी क्या थी।

जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकार के अपार सफलतापूर्वक योजनाओं को लागू करने का दावा करते हुए यह लगातार आशा जता रहे हैं कि प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार रिपीट होगी।

जब मुख्यमंत्री स्वयं ही इस बात के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में फिर से कांग्रेस की सरकार बनेगी तो जल्दबाजी में कोटा विकास प्राधिकरण के गठन का विधेयक पारित करवाने के बजाय अगली विधानसभा के सत्र में इस विधेयक पर जनप्रतिनिधियों से व्यापक रूप में चर्चा की जानी चाहिए थी। उसके बाद में यह फैसला होता कि कोटा विकास प्राधिकरण का गठन होना चाहिए अथवा नहीं।

श्री भरत सिंह के बुधवार को कोटा संभागीय आयुक्त को ज्ञापन देने के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को देखते हुए पुलिस एवं जिला प्रशासन ने पूरे संभागीय आयुक्त कार्यालय के आसपास के क्षेत्र को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया। प्रशासन को आशंका थी कि श्री भरत सिंह भारी भीड़ के साथ प्रदर्शन करने पहुंच सकते हैं। हालांकि श्री सिंह ने पहले ही संभागीय आयुक्त को पत्र भेजकर यह आग्रह किया था कि वे एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उन्हें ज्ञापन देने के लिए आएंगे।