एजुकेशन फैक्ट्रियों में हो रही वृद्धि पर सीजेआई एनवी रमण ने जताई चिंता

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विजयवाड़ा। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण (CJI Justice N V Ramana) ने इस बात पर अफसोस जताया कि उच्च शिक्षा के संस्थान ‘शिक्षा के कारखानों’ में बदलते जा रहे हैं। उन्होंने चिंता जताई कि ‘एजुकेशन फैक्ट्रियों’ (education factories) में हो रही वृद्धि समय के कारण संस्थान समय के साथ अपनी सामाजिक प्रासंगिकता खो रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश शनिवार को आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय (एएनयू) से डॉक्टर ऑफ लेटर्स की मानद उपाधि प्राप्त करने के बाद दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण ने शिक्षा का एक ऐसा मॉडल विकसित करने पर जोर दिया जो छात्रों को वास्तविक जीवन की चुनौतियों का सामना करना सिखाए। उन्होंने कहा कि इतिहास, मानवीय मुद्दों और भाषाओं की उपेक्षा हुई है। हमें नहीं मालूम किसे दोषी ठहराया जाए, लेकिन यह शिक्षा प्रणाली में बदलाव का समय है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा सामाजिक एकजुटता बनाने और व्यक्तियों को समाज के सार्थक सदस्यों के रूप में बनाने में भी सक्षम होनी चाहिए। सीजेआई जस्टिस रमण ने आगे कहा कि युवाओं को जागरूक और परिवर्तन लाने वाला होना चाहिए, उन्हें विकास के सतत मॉडल के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस चेतना को अपने-अपने क्षेत्रों में अग्रणी रहते हुए हमारे समुदाय और पर्यावरण की जरूरतों को स्वीकार करना चाहिए।

व्यावसायिक पाठ्यक्रम औपनिवेशिक काल जैसे ही: प्रधान न्यायाधीश ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि देश में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का ध्यान एक आज्ञाकारी वर्क फोर्स को तैयार करने पर बना रहा, जैसा कि औपनिवेशिक काल में था। उन्होंने कहा कि यह कठोर वास्तविकता है कि छात्रों के पेशेवर विश्वविद्यालयों में दाखिले के बाद भी, क्लास रूम टीचिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, भले ही उससे परे दुनिया में क्या कुछ हो रहा है, उन्हें कोई सरोकार नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा पैकेज वाली नौकरी हासिल करना, रह गया है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मानविकी, प्राकृतिक विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र और भाषाओं जैसे महत्वपूर्ण विषयों की उपेक्षा हुई है। मुझे मालूम नहीं कि किसे दोषी ठहराया जाए। यह शिक्षा प्रणाली में बदलाव का समय है। शिक्षा के कारखानों की बढ़ोतरी से डिग्रियों और मानव संसाधनों का अवमूल्यन हो रहा है। संस्थानों को सामाजिक संबंधों और जागरूक नागरिकता के मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए। ऐतिहासिक मूल्यों को भविष्य की दृष्टि के साथ मिलाना चाहिए, ताकि युवा दिमाग को सही टूल्स और विजन से लैस किया जा सके।

अन्याय बर्दाश्त न करें: सीजेआई ने कहा विश्वविद्यालयों और शोधार्थियों को देश और समाज के प्रभावी मुद्दों का समाधान खोजना चाहिए। सरकार को अनुसंधान और नवाचार के लिए जरूरी वित्तीय सहयोग देना चाहिए। उन्होंने छात्रों को जीवंतता और आदर्शवाद से भरे लोकतंत्र का निर्माण का आह्वान किया, जहां विविध विचारों और संस्कृति का सम्मान किया जाए। उन्होंने छात्रों से अपील की कि मन में भ्रष्ट विचारों को न आने दें। अन्याय बर्दाश्त न करें। अपने से परे सोचें और बलिदान देने के लिए तैयार रहें।

न्यायपालिका पर भरोसे में कमी : देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण ने कहा कि न्यायपालिका पर भरोसे में कमी लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। अगर लोगों का न्यायपालिका से भरोसा उठ गया तो लोकतंत्र का अस्तित्व ही दांव पर लग जाएगा। ऐसे में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि लोगों का न्यायपालिका में भरोसा कायम रहे।

न्यायपालिका में भरोसा मजबूत हो: विजयवाड़ा कोर्ट परिसर के उद्घाटन के बाद उन्होंने कहा कि लोगों का न्यायपालिका में भरोसा मजबूत हो, इसके लिए उन्होंने सुनिश्चित किया कि समाज के सभी वर्गों खासकर महिलाओं और पिछड़े वर्गों को न्यायपालिका में उचित प्रतिनिधित्व मिले। उन्होंने कहा, मैंने सीजेआई के रूप में अपने डेढ़ साल के कार्यकाल के दौरान न्यायाधीशों के खाली पदों को भरने पर जोर दिया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के 12 न्यायाधीशों और विभिन्न राज्यों को हाईकोर्ट के 15 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई। इस अलावा, हाईकोर्ट के 250 से ज्यादा न्यायाधीशों की भी नियुक्ति की गई।