Thursday, May 2, 2024
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मर्दानी 2 के बाद विशाल जेठवा अब दिखेंगे ‘सलाम वेंकी’ के हैरान करने वाले किरदार में

मुंबई। अभिनेता विशाल जेठवा अब अपनी दूसरी फिल्म ‘सलाम वेंकी’ के साथ दर्शकों के सामने आने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार उनकी भूमिका रानी मुखर्जी अभिनीत ‘मर्दानी 2’ फिल्म के खलनायक से बिलकुल अलग होगी। जेठवा ‘सलाम वेंकी’ में एक चर्चित शख्सीयत वेंकटेश की भूमिका निभाने जा रहे हैं। वेंकटेश की कहानी स्वास्थ्य जगत की चर्चित कहानी रही है। इस कहानी को परदे पर उतारने की जिम्मेदारी बतौर निर्देशक रेवती ने उठाई है।

जेठवा फिल्म ‘सलाम वेंकी’ में वेंकटेश बने है, जो कि एक डिजनरेटिव बीमारी ‘डचेने मस्कुलर डिस्ट्रोफी’ से ठीक होने वाला एक मरीज है और अपने बचने की संभावनाओं पर डॉक्टरों की भविष्यवाणी का सामना कर रहा है। ये एक ऐसा मामला है जिसने चिकित्सकीय जगत के दिग्गजों को भी हैरान कर दिया कि कैसे एक मनुष्य सिर्फ सार्थक विचारों (पॉजिटिव थिंकिंग) और अपने हौसले से चिकित्सकों की भविष्यवाणी को भी झुठला सकता है। फिल्म में अंगदान के बारे में भी कई सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई है।

फिल्म ‘सलाम वेंकी’ के बारे में जेठवा कहते हैं, ‘यह सुनकर मैं काफी रोमांचित था कि मुझे काजोल मैडम के साथ काम करने का मौका मिल सकता है। जब मैं फिल्म के नरेशन के लिए गया तो हमें कहानी सुनाते सुनाते फिल्म की पूरी टीम भावुक हो गई। लेखक की तो आंखों में आंसू देखकर मैं दंग रह गया। मैं अपनी मां के काफी करीब हूँ। जब मुझे पता चला कि यह असंभव चुनौतियों का सामना कर रहे मां-बेटे की कहानी है तो मैं इसके लिए तुरंत राजी हो गया। यह भूमिका मुझे अपनी शख्सियत का एक दूसरा पहलू सामने लाने का मौका दे रही है।”

काजोल के साथ फिल्म ‘सलाम वेंकी’ में काम करने का मौका मिलने के सवाल पर विशाल कहते हैं, ‘मैं उन भाग्यशाली कलाकारों में से हूं जिन्हें रानी मुखर्जी मैम और काजोल मैम दोनों के साथ काम करने का मौका मिला है। ये दोनों ही आज के जमाने की सिनेमा लीजेंड हैं। मैं इसे अपनी अच्छी किस्मत ही मानता हूं और इतनी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के सामने एक्टिंग में अपने हुनर को दिखाने का मुझे मौका मिला।’

आठ पार्षद हुये बागी, भाजपा से तोड़ा नाता, मेवाड़ा को बनाया नेता प्रतिपक्ष

प्रतिपक्ष नेता को लेकर कोटा नगर निगम उत्तर के आयुक्त को ज्ञापन सौंपते पार्षद।

कोटा नगर निगम उत्तर आयुक्त से की असम्बद्ध घोषित करने की मांग

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
Leader Of Opposition Controversy: कोटा नगर निगम उत्तर में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति के मसले ने आज उस समय और विकट मोड़ ले लिया जब आठ पार्षदों ने कोटा नगर निगम प्रशासन को हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन देकर भारतीय जनता पार्टी से अपनी संबद्धता समाप्त कर दी और नंद किशोर मेवाड़ा को बहुमत से नेता प्रतिपक्ष बनाते हुये निगम प्रशासन से उन्हें मान्यता देने की मांग करते हुये इस पर शीघ्र निर्णय करने को कहा।

भारतीय जनता पार्टी के कोटा नगर निगम उत्तर 14 में से 8 पार्षदों और भाजपा के समान विचारधारा रखने वाले चार निर्दलीय पार्षदों सहित कुल 12 पार्षदों ने आज लिखित में हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन कोटा नगर निगम उत्तर के आयुक्त को देकर कहा है कि उन्होंने अब संयुक्त रूप से अलग से भारतीय जनता पार्टी कोटा नगर निगम उत्तर के नाम से पार्षद दल का गठन कर दिया है। इन सभी पार्षदों ने सर्वसम्मति से नंदकिशोर मेवाड़ा को अपनी ओर से नेता प्रतिपक्ष घोषित किया है।

चूंकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत नेता प्रतिपक्ष के लिए कुल संख्या में कम से कम 10 प्रतिशत पार्षदों का समर्थन होना आवश्यक है, जो नवगठित भारतीय जनता पार्टी कोटा नगर निगम उत्तर की ओर से घोषित किए गए नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर मेवाड़ा को हासिल है। इसलिए उन्हें ही नगर निगम प्रशासन नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता दें।

हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने लव शर्मा को अपनी ओर से नेता प्रतिपक्ष घोषित किया है, लेकिन अब अधिकारिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी के आठ पार्षदों के अपना समर्थन वापस लेकर चार निर्दलीय पार्षदों के साथ कुल 12 सदस्यीय पार्षद दल का अलग से गठन कर लिया है। इसलिए बहुमत हमारे साथ है और हमारी ओर से बनाए गए नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर मेवाड़ा को ही प्रशासन अपनी मान्यता प्रदान करे।

कोटा नगर निगम उत्तर में भारतीय जनता पार्टी से अपनी संबद्धता समाप्त करने की घोषणा के साथ अपना हस्ताक्षर युक्त पत्र निगम आयुक्त को सौंपने वाले पार्षदों में भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित आठ पार्षद और चार निर्दलीय शामिल हैं, जिनके नाम नंदकिशोर मेवाड़ा, रवि मीणा, नवल सिंह, पूनम केवट, मेघा गुर्जर, बलविंद्र सिंह, राम गोपाल लोधा, कुसुम सैनी, पूजा सुमन, संदीप नायक, बीरबल लोधा, राकेश सुमन पुटरा हैं। इस पत्र पर इन सभी के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं।

पत्र में कहा गया है कि-” निगम प्रशासन ने भारतीय जनता पार्टी के जिस पार्षद को नेता प्रतिपक्ष मानकर सुविधाएं प्रदान की है, वह तत्काल वापस ली जाए, क्योंकि अब बहुमत उनके साथ नही है और हम 12 पार्षदों की ओर से घोषित किए गए नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर मेवाड़ा को बहुमत होने के कारण नेता प्रतिपक्ष की मान्यता प्रदान करते हुए इस पद की गरिमा के अनुरूप सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाये।”

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों शहर भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष सहित कुछ भाजपा नेताओं की उपस्थिति में कोटा नगर निगम दक्षिण में विवेक राजवंशी और नगर निगम उत्तर में लव शर्मा ने नेता प्रतिपक्ष का पदभार ग्रहण किया था, लेकिन लव शर्मा के पदभार ग्रहण के समय कोटा नगर निगम उत्तर में से निर्वाचित भारतीय जनता पार्टी के पार्षद नदारद थे। लेकिन कांग्रेस के दोनों नगर निगम महापौर मंजू मेहरा और राजीव अग्रवाल सहित कांग्रेस के कई पार्षद जरूर वहां मौजूद थे जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी के दोनों पार्षदों को नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए खुलकर बधाइयां दी थी।

इसी बात को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नाराज पार्षदों के खेमे ने यह आरोप लगाया था कि कोटा नगर निगम उत्तर में भाजपा के घोषित नेता प्रतिपक्ष को लेकर भाजपा से कहीं ज्यादा खुशी कांग्रेस के पार्षदों में है। क्योंकि वे पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभा चुके है।

देवनारायण आवासीय पशुपालन योजना फ्लॉप करने की कुछ पशुपालकों की कोशिश

कोटा में इंसान अंदर,आवारा जानवर सड़क पर।

मवेशी अब भी कोटा की सड़कों पर, कलेक्टर का धरपकड़ का फरमान

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
हिंदी की लोकप्रिय कहावत कि ‘घर में नहीं दाने-अम्मा-चली भुनाने’ जिला प्रशासन की ओर से शहर की सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिये शुरू किए गए अभियान के संदर्भ में सटीक बैठती है।

वजह यह है कि कोटा के जिला कलक्टर ओपी बुनकरजो कोटा नगर विकास न्यास के अध्यक्ष भी है, ने बुधवार को एक बैठक आहूत करके कोटा शहर को आवारा मवेशियों से मुक्ति दिलवाने के लिये कई करोड़ रुपये खर्च कर अस्तित्व में लाई गई देवनारायण आवासीय पशुपालन योजना के क्रियान्वयन की समीक्षा की।

इस बैठक में दोनों स्वायत्तशायी निकायों यथा कोटा नगर निगम और कोटा नगर विकास न्यास के अधिकारियों को यह सख्त हिदायत दी कि गुरुवार से अनिश्चितकाल के लिए कोटा शहर की सड़कों पर विचरण करने वाले मवेशियों की धरपकड़ के लिए अभियान चलाया जाये।

इन दोनों निकायों ने जिला कलक्टर के दिशा-निर्देश के अनुरूप सड़कों पर छुट्टे घूम कर लोगों के लिए परेशानियों का सबब बनने वाले इन आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिए आज से अभियान भी शुरू किया। लेकिन, यह यक्ष प्रश्न अभी भी सामने खड़ा हुआ है कि यदि इन दोनों एजेंसियों के कर्मचारियों ने आवारा मवेशियों की घेराबंदी कर उन्हें पकड़ा तो उन्हें रखा कहां जाएगा।

क्योंकि कोटा में वर्तमान में नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में केवल बंदा धर्मपुरा में एक गौशाला और किशोरपुरा में एक कायन हाऊस है, जहां ऐसे पकड़े गए मवेशियों को रखा जाना संभव है। स्थिति यह है कि इन दोनों ही स्थानों पर पहले से ही इतने मवेशी हैं जो वास्तव में इनकी रहन क्षमता से भी कहीं कुछ ज्यादा ही है।

इसके अलावा पिछले दिनों मवेशियों में फैले लम्पी रोग से संक्रमित पाए गये मवेशियों-गायों को इलाज के लिए कोटा में किशोरपुरा की गौशाला में रखा गया था और वहां इलाज भी करवाया। इसके बाद स्वस्थ हुई गाय अभी भी इसी गौशाला में है लेकिन वे बीमारी से उबार कर भी अभी काफी कमजोर है।

इस संदर्भ में कोटा नगर निगम (दक्षिण) की गौशाला समिति के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह जीतू ने बताया कि प्रशासन ने आज से कोटा शहर में आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिए अभियान शुरू करने का फैसला किया है, लेकिन यह फैसला किस आधार पर किया है, यह समझ के बाहर है। क्योंकि पूरे शहर में जब नगर निगम के पास केवल बंधा धर्मपुरा और किशोरपुरा की ही दो गौशाला हैं। दोनों ही में पहले से उसकी क्षमता के अनुरूप मवेशियों के रखे जाने से भरी हुई है।

बंदा धर्मपुरा में करीब दो हजार, तो किशोरपुरा में लगभग दो सौ मवेशियों को रखा जा सकता है। दोनों ही स्थानों पर पहले ही इतनी तादाद में मवेशी हैं। अब सवाल यह है कि यदि अभियान के तहत मवेशियों को धरपकड़ के बाद रखने के लिए इन गौशालाओं में लाया गया तो उन्हें खपाया कहां जाएगा?

जितेंद्र सिंह जीतू ने इस बात पर खेद प्रकट करते हुये कहा कि प्रशासन निर्णय तो पहले करता है और विचार बाद में करता है। प्रशासन को आवारा मवेशियों की धरपकड़ करने से पहले यहां की गौशालाओं की क्षमताओं और वहां पहले से रखे गए मवेशियों की संख्या के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए था। उसके बाद ही यह फ़ैसला करना चाहिये था। ऐसी स्थिति में भी कोटा शहर की सड़कों से पकड़ कर पशुओं को लाया गया तो उन्हें रखा कहां जाएगा और कैसे रखा जाएगा?

गौशाला

जितेंद्र सिंह जीतू ने बताया कि करीब एक पखवाड़े पहले भी यह मसला उठा था कि शहर में सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा मवेशियों को पकड़ा जाए। लेकिन उस समय भी उन्होंने कोटा नगर निगम (दक्षिण) के आयुक्त के समक्ष यह मुद्दा रखा था। मवेशियों को पकड़ा गया तो उन्हें रखा कहां जाएगा। क्योंकि जब नगर निगम की दोनों गौशालाओं में उनकी क्षमता से अधिक मवेशी पहले ही लाकर रखे हुये हैं, तो यह तय है कि अतिरिक्त मवेशी लाये गये तो उनमें आपस में संघर्ष होगा। नतीजन मवेशियों के घायल होने और मरने का आंकड़ा बढ़ेगा।

किसी भी गाय या अन्य गौवंश को रखने के लिए कम से कम तीन फीट की जगह की आवश्यकता होती है, ताकि वह चारा चर सके और अपने आसपास घूम सके,हिल-डुल सके। अब दोनों गौशालाओं में उनकी क्षमताओं के अनुरूप मवेशी पहले से है तो ऐसी स्थिति में और मवेशियों को लाकर यहां रखा गया तो उनके आपसी संघर्ष में घायल होकर जान गवाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

यह है समाधान
जितेंद्र सिंह जीतू ने सुझाव दिया कि बंदा धर्मपुरा में मुख्य गौशाला के पास कोटा नगर निगम की 25 बीघा जमीन है, जिसमें एक छोटी स्वानशाला भी बनी हुई है। उनका कहना है कि इस स्थान के चारों और कम से कम चार फीट ऊंची चारदीवारी बनाकर बाड़े में तब्दील करके यहां कोटा शहर से पकड़े गए मवेशियों को रखा जा सकता है।

उचित निर्णय करना चाहिए
नगर निगम प्रशासन को इस बारे में विचार करके उचित निर्णय करना चाहिए। क्योंकि एक बार ऊंची चारदीवारी खींचने के बाद यहां पर कम से कम तीन हजार अतिरिक्त मवेशियों को रखे जाने की व्यवस्था की जा सकती है। यहां मवेशी रखे जाने से पहले चारदीवारी बनाया जाना आवश्यक है ताकि मवेशी सुरक्षित रह सकें ।

सेंसेक्स 97 अंक गिरकर 61,884 पर और निफ़्टी 18,400 से नीचे

मुंबई। वैश्विक बाजारों में कमजोरी के बीच बृहस्पतिवार को शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट आई। इस दौरान 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 211.76 अंक गिरकर 61,768.96 पर था। दूसरी ओर व्यापक एनएसई निफ्टी 57.95 अंक गिरकर 18,351.70 पर आ गया। फ़िलहाल मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स 96.95 अंक गिरकर 61,883.77 पर और निफ़्टी 29.95 अंक फिसल कर 18,379.70 पर कारोबार कर रहा है।

सेंसेक्स में टाइटन, टेक महिंद्रा, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, टाटा स्टील, कोटक महिंद्रा बैंक, महिंद्रा एंड महिंद्रा और मारुति गिरने वाले प्रमुख शेयरों में शामिल थे। दूसरी ओर, लार्सन एंड टूब्रो, एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, पॉवर ग्रिड और हिंदुस्तान यूनिलीवर में तेजी हुई।

अन्य एशियाई बाजारों में सियोल, तोक्यो, शंघाई और हांगकांग के बाजार नुकसान में कारोबार कर रहे थे। अमेरिकी बाजार भी बुधवार को गिरावट के साथ बंद हुए। पिछले सत्र में, तीस शेयरों पर आधारित सेंसेक्स 107.73 अंक यानी 0.17 प्रतिशत की बढ़त के साथ 61,980.72 अंक पर बंद हुआ था, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी मामूली 6.25 अंक यानी 0.03 प्रतिशत की तेजी के साथ 18,409.65 अंक पर बंद हुआ था।

इसबीच अंतरराष्ट्रीय तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड एक फीसदी की गिरावट के साथ 91.90 डॉलर प्रति बैरल पर था। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बुधवार को शुद्ध रूप से 386.06 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

विश्वभर में बच्चों में होने वाली दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी

वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे (World Prematurity Day) पर विशेष

डॉ. सुरेश पाण्डेय-
नेत्र सर्जन एवं मेडिकल पुस्तकों के लेखक

रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (Retinopathy Of Prematurity) प्री मेच्योर बच्चों (Pre Mature Children)के आंख के पर्दे की गंभीर व्याधि है एवम् विश्वभर में बच्चों में होने वाली अंधता/दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है।

मॉडरेट टू लेट प्री टर्म: उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. (ROP) के कारण नेत्र ज्योति हमेशा के लिए खो देते हैं। सामान्य प्रेगनेंसी में 40 सप्ताह के बाद शिशु जन्म होता है एवं 37 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को प्री टर्म बर्थ या प्री मेच्योर बेबी कहा जाता है। जिन बच्चों का जन्म 28 सप्ताह में होता है उन्हें एक्सट्रेमेली प्री टर्म, 28 से 32 सप्ताह के मध्य जन्मे शिशुओं को वेरी प्री टर्म, 32 से 37 सप्ताह के बीच जन्में शिशुओं को मॉडरेट टू लेट प्री टर्म कहा जाता है।

लर्निंग डिसएबिलिटी: प्रीमेच्योर शिशुओं में जन्म के 2-4 सप्ताह के अंदर आंख के पर्दे (रेटीना) की विस्तृत जांच नेत्र (रेटीना) विशेषज्ञ से करवाकर रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी द्वारा होने वाली अंधता को रोका जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष लगभग 1.5 करोड़ बच्चे प्री मैच्योर/प्री टर्म (37 सप्ताह से पहले) जन्म लेते हैं। लगभग दस लाख प्री टर्म बच्चों की डैथ जन्म के बाद मेडिकल जटिलताओं के कारण हो जाती है। जो बच्चे बचते हैं उनमें से अनेक अंधेपन, सुनने की क्षमता को अभाव अथवा लर्निंग डिसएबिलिटी से पीड़ित होकर जीवन भर प्री टर्म जन्म का दंश झेलते हैं।

इस बीमारी के बारे में और अधिक समझने के लिए यह वीडियो देखिए –

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समूचे विश्व में 17 नवम्बर को विश्व प्रीमेच्योरिटी डे मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य प्रीमेच्योर बच्चों में होने वाली जटिलताओं के प्रति जनसाधारण में जागरूकता बढ़ानी है। विश्वभर में प्रत्येक दिन 3 लाख 60 हजार बच्चे जन्म लेते हैं, जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत बच्चे प्रीमेच्योर होते हैं।

इनडायरेक्ट ऑफ्थलमाॅस्कोपी टेस्ट: डायबिटिज, हाइपरटेंशन, स्मोकिंग, मोटापा से ग्रस्त महिलाओं को प्रीमेच्योर संतान होने की संभावना अधिक होती है। आर.ओ.पी. द्वारा होने वाली अंधता से बचने के लिए बच्चे के जन्म के 2-4 सप्ताह के अंदर पर्दे (रेटिना) के विशेषज्ञ नेत्र चिकित्सक द्वारा पर्दे की इनडायरेक्ट ऑफ्थलमाॅस्कोपी (Indirect Ophthalmoscopy) नामक सम्पूर्ण जाँच करवाने से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

रेटिनल स्क्रीनिंग: नौ माह से पहले जन्म लेने वाले नन्हे शिशुओं को रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी(आर.ओ.पी.) नामक गंभीर नेत्र रोग होने का खतरा बढ़ा हेै। उपचार के अभाव में एडवांस आर.ओ.पी जीवन पर्यन्त अंधता का कारण बन सकता है। समय से पहले जन्में प्री मेच्योर शिशुओं जन्म के तुरंत बाद यह बीमारी नहीं होती है। यह रोग जन्म के कुछ दिनों बाद प्रकट होता है एवं उपचार के अभाव में जन्म के 1-2 माह के अन्दर ही लाइलाज होने के साथ ही बच्चे के जीवन पर्यन्त अंधता का कारण बनती है। समय पर रेटिनल स्क्रीनिंग (आंख के पर्दे की विस्तार से जांच) द्वारा रोका जा सकता है।

पर्दे की विस्तृत जांच: सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा की नेत्र सर्जन डॉ विदुषी शर्मा के अनुसार जिन बच्चों का जन्म 37 सप्ताह से पहले हुआ है, उन्हें जन्म के दो से तीन सप्ताह में पर्दे की विस्तृत जांच करना आवश्यक है। जिन बच्चों का जन्म 30 सप्ताह से पहले हुआ है अथवा जिनका वजन 1200 ग्राम से कम है उन्हें जन्म के पन्द्रह से बीस दिनों के बीच आंख के पर्दे की विस्तृत जांच नेत्र (रेटीना) विशेषज्ञ द्वारा करवाना आवश्यक है।

आर.ओ.पी. स्क्रीनिंग: रेटिनल स्क्रीनिंग एवं आर.ओ.पी. होने पर आँख के पर्दे का लेज़र, क्रायोथैरेपी, एन्टी-वेजेएफ इंजेक्शन एवं आंख के पर्दे की शल्य चिकित्सा द्वारा इस बीमारी के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस संबंध में आर.ओ.पी. स्क्रीनिंग, शिशु रोग विशेषज्ञ एवं समाज में जागरूकता बढ़ाकर एवं प्रीमेच्योर शिशुओं में समय-समय पर आंख के पर्दे की जांच करवाकर अंधता को रोका जा सकता है। इन नवजात शिशुओं में आर.ओ.पी. के द्वारा होने वाली अंधता को रोका जा सकता है।

भारत में प्री टर्म बच्चों का जन्म: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष 35 लाख प्री टर्म बच्चों का जन्म होता है। यह संख्या विश्व में सबसे अधिक है।* इसके बाद चीन (11 लाख) , नाईजीरिया (7.7 लाख), पाकिस्तान (7.4 लाख), इंडोनेशिया (6.7 लाख) आदि देश हैं। आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है एवं उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. के कारण नेत्र ज्योति हमेशा के लिए खो देते हैं।

प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत जैसे विकासशील देश में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्यूरिटी एक चौथाई प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता का मुख्य कारण है। भारत में 2 करोड़ 60 लाख बच्चे प्रत्येक वर्ष जन्म लेते है, इनमें से 35 लाख प्री टर्म होते हैं एवं 20 लाख बच्चों का वजन 2 किग्रा. से कम होता है। यह बच्चे जागरूकता के अभाव में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी नामक रोग से पीड़ित होकर आँखों की रोशनी खो सकते हैं। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय 2 किग्रा. से कम है उन 50 प्रतिशत बच्चों में आर.ओ.पी. नामक गंभीर नेत्र रोग होने के संभावना रहती है।

रेटिना में रक्त के नये स्रोत: 32 सप्ताह से पूर्व जन्में प्री मेच्योर बच्चों में रेटिना पूर्ण तरह से विकसित न होने के कारण रेटिना में रक्त के नये स्रोत उत्पन्न होते हैं, जो कि कमजोर होते है और रक्त स्राव करते है। इस रक्तस्राव के कारण रेटिना में निशान एवं खिंचाव बनता है। आर.ओ.पी. से पीड़ित बच्चों में आँखों में दृष्टि दोष (मायोपिया), नेत्रों का तिरछापन, सुस्त आँख, आँख का रक्तस्राव, मोतियाबिन्द, ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेन्ट (पर्दे का उखड़ना) आदि समस्या हो सकती है।

अंधता रोकना संभव: देश में छोटे बच्चों की चिकित्सा सुविधाओं एवं नियोनेटल केयर के बढ़ते अब प्री मैच्योर बच्चों की जान बचा पाना अब सम्भव हो रहा है। समाज में जागरुकता बढ़ाकर, शिशु रोग विशषज्ञों एवम् नेत्र विशेषज्ञों के साझा प्रयासों से रेटिनोपथी ऑफ़ प्री मेच्योरीटी से होने वाली अंधता को रोका जा सकता है।

विदेशी बाजारों के कमजोर रुख से खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट

नयी दिल्ली। विदेशी बाजारों में गिरावट और मांग कमजोर होने के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बुधवार को लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट रही। मलेशिया एक्सचेंज में 2.5 प्रतिशत की गिरावट रही, जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में 2.75 प्रतिशत की गिरावट है। विदेशों में इस गिरावट का असर स्थानीय तेल-तिलहन कीमतों पर दिखा और स्थानीय दाम भी घट गये।

खाद्य तेल कीमतों में अनिश्चित उतार-चढ़ाव और विदेशों की मनमानी से निजात खुद का तिलहन उत्पादन बढ़ाकर ही मिल सकता है जिसके लिए सरकार को किसानों को प्रोत्साहन एवं लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कर तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी, तेल उद्योग और किसानों को फायदा होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 7,375-7,425 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली – 6,685-6,745 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,300 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,475-2,735 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 15,000 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,280-2,410 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,340-2,465 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 14,600 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 14,350 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 13,050 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,650 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,900 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,400 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,350 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना – 5,675-5,775 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज 5,485-5,535 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

क्यूआर कोड से लैस होगा एलपीजी सिलेंडर; लगेगी गैस चोरी पर लगाम, जानिए कैसे

नई दिल्ली। एलपीजी सिलेंडर से गैस चोरी रोकने के लिए सरकार उसका आधार कार्ड (Aadhaar Card) बनवा रही है। आप चौंक तो नहीं गए? केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने यही कहा कि गैस सिलेंडरों का आधार बनेगा।

यह असली आधार कार्ड नहीं है क्योंकि यह तो इंसानों का बनता है। लेकिन है कुछ-कुछ आधार कार्ड जैसा ही। दरअसल, सरकार सभी गैस सिलेंडरों को क्यूआर कोड (QR Code) से लैस कर रही है। इससे उस गैस सिलेंडर की ट्रैकिंग आसान हो जाएगी। बस, इसी से गैस चोर पकड़े जाएंगे।

World LPG Week 2022 के अवसर पर हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि सभी घरेलू गैस सिलेंडरों पर क्यूआर कोड लगाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट को शुरू कर दिया गया है। तीन महीने के अंदर सभी गैस सिलेंडरों पर क्यूआर कोड लग जाएगा। उन्होंने बताया कि पुराने गैस सिलेंडरों पर क्यूआर कोड का मेटल स्टीकर वेल्ड किया जाएगा। नए गैस सिलेंडर पर पहले से ही क्यूआर कोड डला होगा।

कैसे रुकेगी गैस की चोरी
इंडियन ऑयल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि क्यूआर कोड से गैस सिलेंडर के लैस होने पर इसकी ट्रेकिंग आसान हो जाएगी। अभी जिस सिलेंडर में कम गैस की शिकायत मिलती है, उसे साबित करना मुश्किल हो जाता है कि इस डीलर के यहां से निकला है। यदि पता चल भी गया कि उस डीलर से निकला तो यह नहीं बता सकते कि उस सिलेंडर को किस डिलीवरीमैन ने डिलीवर किया। लेकिन यदि सिलेंडर पर क्यूआर कोड लग जाएगा तो सब कुछ एक झटके में पता चल जाएगा। फिर चोर को पकड़ना बेहद आसान हो जाएगा। जब चोर को पकड़े जाने का डर होता तो वह अपने आप चोरी रोक देगा।

क्यूआर कोड के फायदे
आईओसी के अधिकारी ने बताया कि क्यूआर कोड के और भी फायदे हैं। इससे यह पता चलेगा कि किस सिलेंडर में कितने बार रिफिलिंग की गई है। एक सिलेंडर को वापस रिफिलिंग सेंटर आने में कितने दिन लगता है। यदि कोई घरेलू गैस सिलेंडर का कामर्शियल उपयोग करते हुए पकड़ा जाएगा तो यह पता करना आसान हो जाएगा कि उसकी डिलीवरी किस डीलर से हुई है।

क्यूआर कोड की शुरूआत हो चुकी
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस समय देश भर में करीब 30 करोड़ घरेलू एलपीजी के कंज्यूमर हैं। इनमें से अकेले आईओसी के करीब 15 करोड़ कंज्यूमर हैं। 30 करोड़ कंज्यूमरों में से करीब आधे के पास डबल सिलेंडर हैं। इस तरह से करीब 70 करोड़ घरेलू गैस सिलेंडर देश भर में हैं। इनमें तीन महीने में क्यूआर कोड लगा देने का लक्ष्य तय किया गया है। इसकी शुरूआत हो चुकी है।

अजय माकन ने प्रदेश कांग्रेस से किनारा क्यों किया, जानिए इसके पीछे की हकीकत

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। आखिरकार राजस्थान में कांग्रेस की सियासी मसलों पर बागी नेता रहे सचिन पायलट की वकालत करने के मामले को लेकर प्रदेश प्रभारी रहे अजय माकन को हार माननी ही पड़ी। उन्होंने अब प्रदेश प्रभारी के नेतृत्व से पूरी तरह से मुक्त होकर यह जिम्मेदारी अन्य किसी सौंपने का आग्रह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे से किया है।

उल्लेखनीय है कि पहली बार जब राजस्थान मे तत्कालीन उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में राज्य के कुछ चुनिंदा कांग्रेस विधायकों ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करके भारतीय जनता पार्टी के शासित हरियाणा राज्य के एक रिसोर्ट में शरण ली थी।

तब प्रदेश में कांग्रेस के प्रभारी अविनाश चन्द्र पांड़ेय थे और बाद में जब राष्ट्रीय नेतृत्व के दखल पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमे के बीच सुलह की बातचीत चली तो सचिन पायलट समर्थकों ने प्रदेश प्रभारी पर मुख्यमंत्री का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। जिसके आधार पर पार्टी ने अविनाश चन्द्र पांड़ेय को प्रदेश प्रभारी पद से हटा दिया था और उनके स्थान पर दिल्ली के नेता अजय माकन को राजस्थान का प्रभार सौंपा था।

इस बार जब मुख्यमंत्री के पद की खींचतान के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमों के मध्य विवाद की स्थिति बनी तो पहली बार अशोक गहलोत खेमे ने आक्रामक रवैया अपनाया। पार्टी नेतृत्व की पहल पर दोनों खेमों के बीच सुलह के लिए आलाकमान ने पार्टी के पर्यवेक्षक मलिकार्जुन खड़गे को अजय माकन के साथ जयपुर भेजा तो उन्होंने एक होटल में कांग्रेस के विधायक दल की बैठक आहूत की। ताकि वहां विधायकों से विचार-विमर्श करके यह तय किया जा सके कि प्रदेश में पार्टी की सत्ता की बागडोर किसके हाथों में सौंपी जानी चाहिए।

तब राजस्थान सरकार के कद्दावर मंत्री कोटा (उत्तर) से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक शांति धारीवाल की अगुवाई में उनके आवास पर प्रदेश के बहुसंख्यक कांग्रेस विधायकों की एक समानांतर बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री के रूप में सर्वमान्य नेता माना था।

बैठक में पार्टी से खुलकर बगावत कर चुके सचिन पायलट के नेतृत्व को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करने की चेतावनी दी थी। साथ ही यह भी आरोप लगाया था कि इस पूरे प्रकरण में प्रदेश में पार्टी के प्रभारी के रूप में अजय माकन की भूमिका संदिग्ध है। वह बागी नेता सचिन पायलट के समर्थन में हैं। वह उनका गैर जरूरी पक्ष ले रहे हैं जो गलत है। यह पार्टी के अंदरूनी मामलों में पार्टी लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।

अजय माकन को किया खारिज
एक तरह है कांग्रेस के बहुमत के विधायकों ने अजय माकन को प्रदेश प्रभारी के रूप में खारिज कर दिया था और उसी का नतीजा यह निकला कि जब मलिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए तो पार्टी के अन्य प्रभारियों और पदाधिकारियों सहित अजय माकन ने भी राजस्थान के कांग्रेस के प्रभारी पद से अपना इस्तीफा दे दिया था लेकिन यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि बाद में जब मलिकार्जुन खड़गे जब पार्टी का पनर्गठन करेंगे तब अजय माकन को राजस्थान में तो नहीं लेकिन कहीं और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती।

गहलोत आलाकमान की मजबूरी
अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि पार्टी नेतृत्व अगले विधानसभा चुनाव तक राजस्थान में मुख्यमंत्री के पद पर अशोक गहलोत को ही देखना चाहता है जो अभी गुजरात में पार्टी के प्रभारी के रूप में विधानसभा चुनाव में बहुत ही अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं तो अजय माकन ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस से ही किनारा कर लेना उचित समझा। क्योंकि अब यह उन्हें स्पष्ट रूप से लगने लगा है कि वे राजस्थान की राजनीति में प्रदेश कांग्रेस के विधायकों और नेताओं के लिए अप्रासंगिक और अस्वीकार्य बन चुके हैं और अब जबकि यह भी स्पष्ट हो चुका है कि उन तीनों वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं, जिनमें कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी सहयोगी धर्मेंद्र सिंह राठौड़ और मंत्री महेश जोशी के खिलाफ पार्टी कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करने जा रही है।

पार्टी नेतृत्व की खिलाफत नहीं
यह तीनों पहले की पार्टी की ओर से दिए गए नोटिस पर अपना पक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं और यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व की कोई खिलाफत नहीं की बल्कि अजय माकन ने सचिन पायलट के पक्ष में पक्षपाती रवैया अपनाकर पार्टी में दरार डालने की कोशिश की।

गहलोत और समर्थकों को राहत
इस सब की पृष्ठभूमि में अजय माकन ने राजस्थान प्रदेश प्रभारी पद से किनारा कर लेना ही उचित समझा है और समझा जाता है कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष जब भी पार्टी में फेरबदल करेंगे तब किसी ओर चेहरे को प्रदेश प्रभारी के रूप में जिम्मेदारी मिल सकती है। अजय माकन के प्रदेश प्रभारी पद छोड़े जाने से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके समर्थकों ने राहत महसूस की।

रेलयात्री ले सकेंगे क्षेत्रीय व्यंजनों का आनंद, डायबिटीज मरीजों का रखा जाएगा ख्याल

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
रेल यात्री अब अपनी यात्राओं के दौरान विभिन्न राज्यों से गुजरते समय वहां के क्षेत्रीय पसंदीदा भोजन का आनंद उठा सकेंगे। भारतीय रेलवे प्रशासन ने यात्री रेलगाड़ियों में खान पान सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए रेल मंत्रालय ने IRCTC को खाने के मेन्यू (food menu) में जरूरी बदलाव करने की छूट देने का निर्णय लिया है। ताकि क्षेत्रीय व्यंजनों को यात्रियों के विभिन्न समूहों की पसंद के अनुसार जैसे मधुमेह भोजन, शिशु आहार, बाजरा आधारित स्थानीय उत्पादों को खाद्य पदार्थों में शामिल किया जा सके।

पश्चिमी-मध्य रेलवे के कोटा मंडल के अधिकारिक सूत्रों ने आज बताया कि तदनुसार सक्षम प्राधिकारी यात्रियों के लिये उनकी पसंद के भोजन का अनुमोदन कर सकेंगे। सूत्रों ने बताया कि अब जिन प्रीपेड ट्रेनों में केटरिंग शुल्क यात्री किराए में शामिल है उनके लिए मेन्यू का निर्धारण आईआरसीटीसी द्वारा पहले से अधिसूचित टैरिफ के भीतर किया जाएगा।

इसके अलावा प्रीपेड ट्रेनों में भोजन के अलग-अलग व्यंजनों और एमआरपी पर ब्रांडेड खाद्य पदार्थों की बिक्री की भी अनुमति होगी। भोजन के ऐसे अलग-अलग व्यंजनों का मेन्यू और टैरिफ आईआरसीटीसी द्वारा तय किया जाएगा।

सूत्रों के अनुसार, अन्य मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के यात्रियों के लिए मानक भोजन जैसे बजट श्रेणी के खाद्य पदार्थों का मेन्यू पहले से अधिसूचित टैरिफ के भीतर आईआरसीटीसी द्वारा तय किया जाएगा। जनता भोजन के मेन्यू और टैरिफ में कोई बदलाव नहीं होगा।

मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में भोजन के अलग-अलग व्यंजनों और एमआरपी पर ब्रांडेड खाद्य पदार्थों की बिक्री की अनुमति होगी। भोजन के ऐसे अलग-अलग व्यंजनों का मेन्यू और टैरिफ आईआरसीटीसी द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

सूत्रों ने बताया कि मेन्यू तय करते समय आईआरसीटीसी यह सुनिश्चित करेगा कि भोजन और सेवा की गुणवत्ता मानकों में उन्नयन को बनाए रखा गया है। यात्रियों की शिकायतों से बचने के लिए मात्रा और गुणवत्ता में कटौती, स्तरहीन ब्रांडों के उपयोग आदि से सम्बंधित बार-बार और अनुचित बदलाव नहीं होने के लिए जरूरी सुरक्षा उपाय किये गए हैं।

यह भी कहा गया है कि मेन्यू को टैरिफ के अनुरूप होना चाहिए। मेन्यू को यात्रियों की जानकारी के लिए पूर्व में अधिसूचित किया जाना चाहिए तथा इसे पेश किये जाने से पहले इसके बारे में रेलवे को परामर्श दी जानी चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार धीरज ‘तेज’ ने कोचिंग स्टूडेंट के लिए देर रात की एसडीपी डोनेट

अब तक 89 बार ब्लड डोनेशन कर चुके

कोटा। वरिष्ठ पत्रकार धीरज गुप्ता ‘तेज’ ने मंगलवार की रात को एक कोचिंग स्टूडेंट की जान बचाने के लिए तीसरी बार एसडीपी डोनेट की। वे अब तक 89 बार ब्लड डोनेशन कर चुके हैं।

टीम जीवनदाता के संयोजक व लायंस क्लब के जोन चेयरमैन भुवनेश गुप्ता ने बताया कि नवादा बिहार से कोटा में नीट की तैयारी कर रहे कोचिंग स्टूडेंट गौरव (15) की हालात लगातार बिगडती जा रही थी। प्लेटलेट गिरकर मात्र 9 हजार रह गई थी। घर परिवार का कोई सदस्य भी यहां नहीं था।

केवल कोचिंग का एक दोस्त और मकान मालिक शैलेन्द्र मेडतवाल ने जिम्मेदारी निभाते हुए उनसे सम्पर्क किया। गुप्ता ने बताया कि वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी धीरज गुप्ता ‘तेज’ को कॉल किया तो वह अपना ब्लड सेंटर पहुंचे और तीसरी बार एसडीपी की। उन्होंने अब तक 89 बार ब्लड डोनेशन और 6 बार प्लाज्मा डोनेशन किया।

उन्होंने बताया कि धीरज गुप्ता के भाई पंकज गुप्ता और परिवार के सदस्य भी रक्तदान के क्षेत्र में महत्ती भूमिका निभाते हैं। धीरज गुप्ता भी शहर के सबसे अधिक डोनेशन करने वाली हस्तियों में शुमार हैं। धीरज गुप्ता ने कहा कि जीवन में किसी के काम आ आएं तो मन में ईश्वरीय उर्जा का संचार होता है। व्यक्ति को जीवन में दूसरों के काम आना ही चाहिए।