देवनारायण आवासीय पशुपालन योजना फ्लॉप करने की कुछ पशुपालकों की कोशिश

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कोटा में इंसान अंदर,आवारा जानवर सड़क पर।

मवेशी अब भी कोटा की सड़कों पर, कलेक्टर का धरपकड़ का फरमान

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
हिंदी की लोकप्रिय कहावत कि ‘घर में नहीं दाने-अम्मा-चली भुनाने’ जिला प्रशासन की ओर से शहर की सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिये शुरू किए गए अभियान के संदर्भ में सटीक बैठती है।

वजह यह है कि कोटा के जिला कलक्टर ओपी बुनकरजो कोटा नगर विकास न्यास के अध्यक्ष भी है, ने बुधवार को एक बैठक आहूत करके कोटा शहर को आवारा मवेशियों से मुक्ति दिलवाने के लिये कई करोड़ रुपये खर्च कर अस्तित्व में लाई गई देवनारायण आवासीय पशुपालन योजना के क्रियान्वयन की समीक्षा की।

इस बैठक में दोनों स्वायत्तशायी निकायों यथा कोटा नगर निगम और कोटा नगर विकास न्यास के अधिकारियों को यह सख्त हिदायत दी कि गुरुवार से अनिश्चितकाल के लिए कोटा शहर की सड़कों पर विचरण करने वाले मवेशियों की धरपकड़ के लिए अभियान चलाया जाये।

इन दोनों निकायों ने जिला कलक्टर के दिशा-निर्देश के अनुरूप सड़कों पर छुट्टे घूम कर लोगों के लिए परेशानियों का सबब बनने वाले इन आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिए आज से अभियान भी शुरू किया। लेकिन, यह यक्ष प्रश्न अभी भी सामने खड़ा हुआ है कि यदि इन दोनों एजेंसियों के कर्मचारियों ने आवारा मवेशियों की घेराबंदी कर उन्हें पकड़ा तो उन्हें रखा कहां जाएगा।

क्योंकि कोटा में वर्तमान में नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में केवल बंदा धर्मपुरा में एक गौशाला और किशोरपुरा में एक कायन हाऊस है, जहां ऐसे पकड़े गए मवेशियों को रखा जाना संभव है। स्थिति यह है कि इन दोनों ही स्थानों पर पहले से ही इतने मवेशी हैं जो वास्तव में इनकी रहन क्षमता से भी कहीं कुछ ज्यादा ही है।

इसके अलावा पिछले दिनों मवेशियों में फैले लम्पी रोग से संक्रमित पाए गये मवेशियों-गायों को इलाज के लिए कोटा में किशोरपुरा की गौशाला में रखा गया था और वहां इलाज भी करवाया। इसके बाद स्वस्थ हुई गाय अभी भी इसी गौशाला में है लेकिन वे बीमारी से उबार कर भी अभी काफी कमजोर है।

इस संदर्भ में कोटा नगर निगम (दक्षिण) की गौशाला समिति के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह जीतू ने बताया कि प्रशासन ने आज से कोटा शहर में आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिए अभियान शुरू करने का फैसला किया है, लेकिन यह फैसला किस आधार पर किया है, यह समझ के बाहर है। क्योंकि पूरे शहर में जब नगर निगम के पास केवल बंधा धर्मपुरा और किशोरपुरा की ही दो गौशाला हैं। दोनों ही में पहले से उसकी क्षमता के अनुरूप मवेशियों के रखे जाने से भरी हुई है।

बंदा धर्मपुरा में करीब दो हजार, तो किशोरपुरा में लगभग दो सौ मवेशियों को रखा जा सकता है। दोनों ही स्थानों पर पहले ही इतनी तादाद में मवेशी हैं। अब सवाल यह है कि यदि अभियान के तहत मवेशियों को धरपकड़ के बाद रखने के लिए इन गौशालाओं में लाया गया तो उन्हें खपाया कहां जाएगा?

जितेंद्र सिंह जीतू ने इस बात पर खेद प्रकट करते हुये कहा कि प्रशासन निर्णय तो पहले करता है और विचार बाद में करता है। प्रशासन को आवारा मवेशियों की धरपकड़ करने से पहले यहां की गौशालाओं की क्षमताओं और वहां पहले से रखे गए मवेशियों की संख्या के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए था। उसके बाद ही यह फ़ैसला करना चाहिये था। ऐसी स्थिति में भी कोटा शहर की सड़कों से पकड़ कर पशुओं को लाया गया तो उन्हें रखा कहां जाएगा और कैसे रखा जाएगा?

गौशाला

जितेंद्र सिंह जीतू ने बताया कि करीब एक पखवाड़े पहले भी यह मसला उठा था कि शहर में सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा मवेशियों को पकड़ा जाए। लेकिन उस समय भी उन्होंने कोटा नगर निगम (दक्षिण) के आयुक्त के समक्ष यह मुद्दा रखा था। मवेशियों को पकड़ा गया तो उन्हें रखा कहां जाएगा। क्योंकि जब नगर निगम की दोनों गौशालाओं में उनकी क्षमता से अधिक मवेशी पहले ही लाकर रखे हुये हैं, तो यह तय है कि अतिरिक्त मवेशी लाये गये तो उनमें आपस में संघर्ष होगा। नतीजन मवेशियों के घायल होने और मरने का आंकड़ा बढ़ेगा।

किसी भी गाय या अन्य गौवंश को रखने के लिए कम से कम तीन फीट की जगह की आवश्यकता होती है, ताकि वह चारा चर सके और अपने आसपास घूम सके,हिल-डुल सके। अब दोनों गौशालाओं में उनकी क्षमताओं के अनुरूप मवेशी पहले से है तो ऐसी स्थिति में और मवेशियों को लाकर यहां रखा गया तो उनके आपसी संघर्ष में घायल होकर जान गवाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

यह है समाधान
जितेंद्र सिंह जीतू ने सुझाव दिया कि बंदा धर्मपुरा में मुख्य गौशाला के पास कोटा नगर निगम की 25 बीघा जमीन है, जिसमें एक छोटी स्वानशाला भी बनी हुई है। उनका कहना है कि इस स्थान के चारों और कम से कम चार फीट ऊंची चारदीवारी बनाकर बाड़े में तब्दील करके यहां कोटा शहर से पकड़े गए मवेशियों को रखा जा सकता है।

उचित निर्णय करना चाहिए
नगर निगम प्रशासन को इस बारे में विचार करके उचित निर्णय करना चाहिए। क्योंकि एक बार ऊंची चारदीवारी खींचने के बाद यहां पर कम से कम तीन हजार अतिरिक्त मवेशियों को रखे जाने की व्यवस्था की जा सकती है। यहां मवेशी रखे जाने से पहले चारदीवारी बनाया जाना आवश्यक है ताकि मवेशी सुरक्षित रह सकें ।