सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति, SC का बड़ा फैसला

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है।

चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि धर्म के नाम पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है। फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं, ऐसे में एक अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं। यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पांच जजों की बेंच यह फैसला सुना रही है। आपको बता दें कि शीर्ष कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है।

यह दलितों से छुआछूत की तरह’
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन ठीक उसी तरह है, जैसे दलितों के साथ छुआछूत का मामला। कोर्ट सलाहकार ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार हैं, उसमें अपवित्रता भी शामिल हैं। अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वे मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है।

हाई कोर्ट ने बैन को कहा था सही
गौरतलब है कि संविधान में छुआछूत के खिलाफ सबको प्रोटेक्शन मिला हुआ है। धर्म, जाति, समुदाय और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। आपको बता दें कि केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश के बैन को सही ठहराया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं।

सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनियाभर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं, वहां कोई बैन नहीं है, लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी कारण तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है, यह किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है।

जस्टिस नरीमन का सवाल?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने पूछा था कि इसका तार्किक आधार क्या है? आपके तर्क का तब क्या होगा अगर लड़की का 9 साल की उम्र में ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या जो ऊपरी सीमा है उसके बाद किसी को मासिक धर्म हो जाए? इस दौरान सिंघवी ने कहा कि यह परंपरा है और उसी के तहत एक उम्र का मानक तय हुआ है।