भारत में एक-तिहाई दिल के मरीजों को हार्ट सर्जरी की जरूरत नहीं

0
817

नई दिल्ली। मरीज जिनकी हार्ट आर्टरी सिकुड़ जाती है लेकिन अगर उनमें हमेशा और बहुत ज्यादा तेज सीने में दर्द की शिकायत न हो तो ऐसे मरीजों को इन्वेसिव थेरपी यानी आक्रामक इलाज की जरूरत नहीं होती। ऐसे मरीज सिर्फ साधारण मेडिकल थेरपी से भी स्वस्थ हो सकते हैं। ISCHEMIA ट्रायल नाम की एक मेजर स्टडी जिसमें 5 हजार हार्ट पेशंट्स को शामिल किया गया था में इस बात की पुष्टि हुई है। अमेरिकन हार्ट असोसिएशन की वार्षिक मीटिंग में इस स्टडी के नतीजों को रिलीज किया गया।

भारत में हर साल करीब साढ़े 4 लाख मरीजों की ऐंजियोप्लास्टी होती है और बड़ी संख्या में मरीज ब्लॉक्ड आर्टरी के इलाज के लिए बाइपास सर्जरी भी करवाते हैं। दिल्ली स्थित एम्स के प्रफेसर ऑफ कार्डियोलॉजी डॉ अंबुज रॉय कहते हैं, हर साल होने वाली ऐंजियोप्लास्टी और हार्ट सर्जरी में से एक तिहाई मरीज ऐसे होते हैं जिनमें बहुत ज्यादा गंभीर लक्षण नहीं दिखते, उनका Ischemic Heart Disease(IHD) स्टेबल होता है।

ISCHEMIA Trial से पता चलता है कि ऐसे मरीजों को सर्जरी की जरूरत नहीं होती और वे मेडिकल थेरपी से ही बेहतर कर लेते हैं। IHD वैसे हार्ट प्रॉब्लम है जिसमें हार्ट आर्टरी यानी दिल की धमनी संकुचित हो जाती है जिससे आखिरकार हार्ट अटैक होता है।

5,179 मरीजों को स्टडी में किया गया शामिल
ISCHEMIA Trial जिसकी शुरुआत जुलाई 2012 में हुई थी में दुनियाभर के टॉप मेडिकल इंस्टिट्यूट्स के अनुसंधानकर्ताओं को शामिल किया गया था और उन्होंने स्टेबल IHD वाले 5 हजार 179 मरीजों को इस स्टडी के लिए चुना। इन मरीजों को कभी हार्ट अटैक नहीं हुआ था और इनके लेफ्ट मेन कोरोनरी आर्टरी में भी किसी तरह का कोई ब्लॉकेज नहीं था। ज्यादातर मरीजों में संकुचित आर्टरीज की समस्या थी जिसके बारे में एक्सर्साइज स्ट्रेस टेस्ट के दौरान पता चला।