निचली अदालतों को सुप्रीम कोर्ट की सलाह, केस की सुनवाई लंबी नहीं चले

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों से पूछताछ में हो रही देरी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि निचली अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गवाहों से पूछताछ करने में देरी न हो। कोर्ट ने कहा कि गवाहों से पूछताछ में देरी होने के कारण गवाहों को गवाही देने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि निचली अदालत को किसी भी पक्ष के लंबी रणनीति को रोकना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में चित्तूर जिले के मेयर की हत्या करने वाले व्यक्तियों को भागने में मदद करने वाले एक आरोपी व्यक्ति को जमानत देते समय यह बात कही।

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हत्यारों को भागने में मदद करने वाला व्यक्ति पिछले सात साल से जेल में कैद है और अभियोजन पक्ष के गवाहों से अभी पूछताछ करना बाकी है। बेंच ने कहा, ‘हमें इस बारे में जान कर आश्चर्य हो रहा है कि इस घटनाक्रम के सात साल बीत जाने के बाद भी अभियोजन पक्ष के गवाहों से पूछताछ नहीं किया गया और इस मामले में अभी ट्रायल शुरू होना भी बाकी है।

यह किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। गवाहों से पूछताछ में देरी होने के कारण समस्या उत्पन्न होता है। ‘ बेंच ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष का यह काम है कि वह अपने गवाहों की मौजूदगी सुनिश्चित कराए।

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को आदेश दिया कि ट्रायल कोर्ट के द्वारा सुनाए गए फैसला आदेश जारी होने की अवधी से एक साल के अंदर ही उपलब्ध हो। कोर्ट ने कहा कि हम अरोप पत्र में अपीलकर्ता की भूमिका और जेल में काटे गए समय को देखते हुए अपीलकर्ता को जमानत देने का आदेश देते हैं।

हालांकि कोर्ट ने अपीलकर्ता को सभी तारीखों पर निचली अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर अपीलकर्ता किसी भी तरह से सुनवाई में देरी करता है या सबूतों में किसी भी प्रकार के छेड़छाड़ करने का प्रयास करता है तो निचली अदालत अपीलकर्ता की जमानत रद्द कर सकता है।