दूरसंचार विधेयक लोकसभा में पेश, ओटीटी सेवायें नियमन के दायरे से बाहर

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    सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के सीधे आवंटन का रास्ता भी साफ

    नई दिल्ली। लोकसभा में आज पेश दूरसंचार विधेयक में ओटीटी (over the top) सेवाओं को नियमन के दायरे से बाहर कर दिया गया। साथ ही इस विधेयक ने केंद्र सरकार के लिए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के सीधे आवंटन का रास्ता भी साफ कर दिया है। विधेयक ने भारतीय दूरसंचार नियामक की शक्तियां बरकरार रखी हैं मगर दिवालिया दूरसंचार कंपनियों से स्पेक्ट्रम वापस लेने की योजना टाल दी गई है।

    करीब 46 पृष्ठ के इस विधेयक में दूरसंचार सेवाओं को ‘दूरसंचार से जुड़ी कोई भी सेवा’ बताया गया है। विधेयक के पिछले मसौदे में ओटीटी को भी इस परिभाषा के दायरे में लाया गया था और इसमें मेसेजिंग ऐप वॉट्सऐप, वीडियो कॉलिंग सेवाएं देने वाली स्काइप, मशीन से मशीन संचार, हवाई तथा समुद्री संपर्क जैसी विशिष्ट सेवाएं भी शामिल थीं।

    इस तरह के बदलाव की मांग भारती एयरटेल और रिलायंस जियो जैसी दूरसंचार कंपनियों ने की थी और उनकी दलील थी कि ओटीटी कंपनियां लाइसेंस या स्पेक्ट्रम शुल्क चुकाए बगैर ही ऑडियो, वीडियो कॉल और मेसेजिंग सेवाएं देती हैं।

    कोई आधुनिक कानून नहीं होने के कारण ओटीटी जैसी कई नई तकनीकें कानूनी तौर पर भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के तहत मानी जाती थीं। मगर सूत्रों के मुताबिक अब सभी संदेह दूर करते हुए इनके कायदे इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय बनाएगा। ओटीटी उपयोगकर्ताओं के सत्यापन और उससे जुड़े मसले इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रस्तावित डिजिटल इंडिया विधेयक में शामिल किए जा सकते हैं।

    अधिकारियों ने पहले ही कहा था कि सरकार का लक्ष्य केवल उन संचार ऐप्स के कायदे बनाना है, जो दूरसंचार ऑपरेटरों जैसी सेवाएं देते हैं। नियम स्पष्ट नहीं होने के कारण नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम और हॉटस्टार जैसे कई ओटीटी ऐप्स ने चिंता जताई थी। जोमैटो और स्विगी जैसे ऐप्स को नियमों के दायरे में लाने की चिंता भी थी।

    इस विधेयक के मुताबिक राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सरकार किसी भी दूरसंचार सेवा या नेटवर्क को अपने नियंत्रण में ले सकती है, संभाल सकती है या रोक सकती है। यह विधेयक दूरसंचार सेवाओं और नेटवर्कों के अधिकार के लिए व्यवस्था तैयार करने के साथ ही पहली बार आसान तरीके से स्पेक्ट्रम के दोबारा वितरण की अनुमति देता है।

    कुछ सूत्रों का कहना है कि दिवालिया दूरसंचार कंपनियों से स्पेक्ट्रम वापस लेने की पहले की व्यवस्था अब हटा दी गई है क्योंकि इसके लिए ऋणशोधन एवं दिवालिया संहिता में संशोधन करना होगा।

    विधेयक में उन क्षेत्रों की सूची दी गई है जहां सरकार को सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटित करने का अधिकार है। इस तरह यह बहस खत्म हो जाएगी कि दुर्लभ संसाधन की नीलामी होनी चाहिए या सरकार द्वारा इनका आवंटन किया जाना चाहिए।

    इस तरह दूरसंचार विधेयक सरकार को सैटेलाइट स्पेक्ट्रम सीधे आवंटित करने का अधिकार देता है। इसमें टेलीपोर्ट्स, टेलीविजन चैनल, डी2एच, डिजिटल सैटेलाइट न्यूज गैदरिंग, वीसैट (वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल) और एल तथा एस बैंड में मोबाइल सैटेलाइट सेवाओं को शामिल किया गया है, जिन्हें नीलामी प्रक्रिया में शामिल किए जाने के बजाय इनका आवंटन किया जाएगा।

    यह बदलाव चर्चा का विषय बना है। जून में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की आखिरी परामर्श प्रक्रिया के दौरान ईलॉन मस्क की स्टारलिंक, एमेजॉन की प्रोजेक्ट कुइपर और टाटा समूह की नेल्को जैसी कई बड़ी तकनीकी कंपनियों ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी का विरोध किया था। भारती एयरटेल ने आवंटन पर जोर दिया था और रियालंस जियो ने नीलामी की बात कही थी।

    दूरसंचार विधेयक ने ट्राई से जुड़े वे विवादास्पद प्रावधान हटा दिए हैं, जिनकी आलोचना यह कहकर हो रही थी कि इनसे नियामक की शक्तियां कमजोर होंगी और यह सरकार के इशारे पर काम करने वाली संस्था बनकर रह जाएगी।

    पहले के मसौदों में ट्राई अधिनियम, 1997 की धारा 11 में संशोधन का प्रस्ताव था जिसके मुताबिक सरकार को स्पेक्ट्रम प्रबंधन, लाइसेंस और नई सेवाओं से संबंधित मामलों में नियामक की सिफारिशें लेनी आवश्यक थीं। इसके अलावा विधेयक में अब निजी क्षेत्र के वरिष्ठ अधिकारियों को ट्राई अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने की अनुमति भी दी गई है।

    सरकार जताना चाहती है कि वह ट्राई में अनुभवी और कुशल पेशेवरों को शामिल करेगी, जो दूरसंचार क्षेत्र के जटिल मुद्दों को समझते हैं और बेहतर निर्णय लेने में सक्षम हैं। इस विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा होनी है।