कोरोना इफ़ेक्ट/ पहली बार कोटा में श्रीमथुराधीश मंदिर के दर्शन बंद

1958

कोटा। शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्रीबड़े मथुराधीशप्रभु के दर्शन कोरोना प्रकोप के चलते बुधवार सायं से ही आगामी सूचना तक बंद कर दिए गए हैं। श्रीमथुराधीश मंदिर के 350 सालों के इतिहास में पहली बार यह आपदा के कारण दर्शन बंद किए गए हैं।

व्यवस्थापक चेतन सेठ ने बताया कि प्रथम पीठाधीश्वर श्रीविठ्ठलनाथ महाराज के आदेशानुसार श्रीबड़े मथुरेशजी टेंपल बोर्ड ने यह निर्णय लिया है। इससे पहले केवल तीन समय मंगला, राजभोग और भोग आरती के दर्शन 15 मिनट के लिए ही करने की छूट दी गई थी। उल्लेखनीय है कि मंदिर में कीर्तन आदि पूर्व में ही बंद किए जा चुके हैं।

मंदिर में प्रतिदिन मंगला आरती, ग्वाल, राजभोग, आरती, उत्थापन, शयन के दर्शन होते हैं। हालांकि शयन के दर्शन रामनवमी से बंद रहते हैं तथा कार्तिक सुदी अष्टमी में खुलने लग जाते हैं। मंदिर पर सामान्य दिनों में 2 हजार, अवकाश वाले दिनों में 3 से 4 हजार, पर्वों पर 10 से 12 हजार एवं सम्पूर्ण वर्ष में लगभग 12 से 15 लाख भक्त दर्शन करते हैं।

प्रथम पीठ युवराज गोस्वामी श्रीमिलन बावा ने भक्तों से कहा कि कोरोना महामारी के कारण से विशेष परिस्थितियों में यह निर्णय लिया गया है। अब भक्तों को घर पर ही व्यक्तिगत रूप से भगवत् भक्ति और सेवा पूजा करनी चाहिए। वहीं शासन प्रशासन का भी इस महामारी से बचने के लिए सहयोग करना चाहिए।

कोटा के मथुराधीश जी का इतिहास
श्रीमथुराधीश प्रभु की प्रतिमा को 1795 में कोटा के महाराज दुर्जनशाल के आग्रह से कोटा के पाटनपोल में पधराया था। कोटा नगर में पाटनपोल द्वार के पास प्रभु का रथ रुक गया तो तत्कालीन आचार्य गोस्वामी गोपीनाथ महाराज ने आज्ञा दी कि प्रभु की यहीं विराजने की इच्छा है। तब कोटा राज्य के दीवान द्वारकादास ने अपनी हवेली को गोस्वामी जी के सुपुर्द कर दिया था। गोस्वामी जी ने उसी हवेली में कुछ फेरबदल कराकर प्रभु को विराजमान किया। प्रभु तब से अभी तक इसी हवेली में विराजमान हैं। इससे पहले मथुराधीश प्रभु 65 वर्ष बूंदी में विराजे थे। यहाँ वल्लभ कुल सम्प्रदाय की रीत के अनुसार सेवा होती है।