Lok Sabha Election : एक बूंद स्याही की कीमत तुम क्या जानो बाबू

1245

नई दिल्ली । इस साल लोकसभा चुनावों में 90 करोड़ लोग मतदान करने जा रहे हैं। ये लोग मिलकर तय करेंगे कि देश की सत्ता किसके हाथों में जाएगी। चुनावों में स्याही की बहुत अहम भूमिका होती है। यह नीली स्याही हर मतदाता की अंगुली में लगाई जाती है। यह चुनावों में लोगों की भागीदारी का सबूत होती है।

इन चुनावों में 90 करोड़ लोगों की अंगुली पर लगाने के लिए 33 करोड़ रुपए की स्याही इस्तेमाल की जाएगी। चुनाव आयोग ने 26 लाख बोतल स्याही का ऑर्डर दिया है। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 11 अप्रैल से शुरू होगा और सात चरणों से गुजरते हुए 19 मई को पूरा हो जाएगा। 23 मई को वोटों की गिनती होगी।

एक बोतल से लगता है 350 वोटरों पर निशान
चुनाव आयोग से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक स्याही की एक बोतल 10 मिलीलीटर की होती है। इससे तकरीबन 350 वोटरों पर निशान लगता है। 2014 में 21.5 लाख बोतल स्याही ऑर्डर की गई थी। इस साल 4.5 लाख ज्यादा बोतलें मंगाई गई हैं। 2009 में 12 करोड़ रुपए की स्याही खरीदी गई थी। इसके मुकाबले इस साल तकरीबन तीन गुना अधिक कीमत पर स्याही मंगाई जा रही है। इस स्याही का निशान वोटर की अंगुली पर कम से कम 20 दिन तक रहता है।

सिर्फ इस कंपनी में बनती है यह खास स्याही
इस स्याही को बनाने का एकाधिकार मैसूर स्थित मैसूर पैंट्स और वॉर्निश लिमिटेड कंपनी को दिया गया है। कंपनी ने National Physical Laboratory of India के तैयार किए हुए एक केमिकल फॉर्मूले पर इस स्यार को तैयार किया है। यह स्याही कैसे बनाई जाती है यह एक रहस्य है। इस स्याही को पहली बार 1962 में इस्तेमाल किया गया था। तब 3.74 लाख बोतलों की कीमत 3 लाख रुपए रही थी।

2014 लोकसभा चुनावों में कंपनी ने की थी 4 करोड़ कमाई
कंपनी की आय प्रमुख तौर पर भारतीय चुनावों पर निर्भर करती है। वित्त वर्ष 2006-07 में कंपनी ने 1.8 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया था। 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में कंपनी ने 4 करोड़ रुपए की स्याही मुहैया कराई थी। कंबोडिया में 2008 में हुए आम चुनावों में कंपनी ने 1.28 करोड़ रुपए की स्याही भेजी थी।

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल
साल 2004 में हुए लोकसभा चुनावों तक मतदाता के हाथ में सिर्फ एक बिंदु का निशान बनाया जाता था। 2006 में चुनाव आयोग ने इस बिंदु को लंबी सीधी लकीर में बदल दिया। इससे ज्यादा स्याही की जरूरत पड़ने लगी। इसके साथ ही लोगों की जनसंख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश में करीब 3 लाख बोतलें इस्तेमाल की जाती है। लक्षद्वीप में महज 200 के आसपास बोतलें इस्तेमाल होती हैं।