प्रकृति के शोषण की शिक्षा का माॅडल बदला जाए- राजेंद्र सिंह

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कोटा। महामारी की छाया में विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और महामारी के समय में ऑक्सीज़न की भूमिका विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय जल बिरादरी के अध्यक्ष मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने कहा कि हमारे शिक्षण संस्थाओं को पर्यावरण के पोषण का पाठ्यक्रम नई पीढ़ी को पढ़ाना चाहिए न कि शोषण का। दुर्भाग्य से शोषण की इंजीनियरिंग ने विकास को विनाश का पर्याय बना दिया।

उन्होंने कहा कि लालची विकास के परिणाम स्वरूप ही महामारी सामने है। जो चीन के वुहान में जंगलों को समाप्त कर चमगादडों को उजाड़ दिया। आज शहरीकरण में लोगों को अपना जीवन सुरक्षित नहीं लगता तो बड़ी चिंता का विषय है। प्रकृति को भगवान मान कर उसके पोषण की शिक्षा से ही हमारा सांझा भविष्य बच सकता है। नीर, नदी और नारी को पूजनीय माना जाता तो आज के संकट से बचा जा सकता था।

विधायक एवं हाड़ौती नेचुरलिस्ट सोसायटी के अध्यक्ष भरत सिंह ने कहा कि ठोकर लगने के बाद तो सरकारों को संभलना चाहिए कि वे किस तरह का विकास कर रही हैं। इसके परिणाम नागरिक भुगत रहे हैं। हास्यास्पद है कि आज के बच्चे सीख रहे हैं कि ऑक्सीजन प्लांट लगाना विकास है। सड़कों के लिए पेड़ों को काटना सबसे बड़ा विकृत विकास का आईना है।

जल बिरादरी के प्रदेश उपाध्यक्ष बृजेश विजयवर्गीय एवं इंडियन सोसायटी फोर ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट (आईएसटीडी )की चेयरपर्सन अनिता चौहान ने संगोष्ठी की समीक्षा करते हुए बताया कि कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. डीसी जोशी ने कृषि क्षैत्र में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने की बात की और कहा कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों से कृषि पर खतरा बढ़ गया है। महामारी के दौर में खेती ने ही अर्थव्यवस्था को संभाल रखा है। हमें इसको और मजबूत करने की जरूरत है।

राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरए गुप्ता ने प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि पेड़ों और समुद्र के जल को नष्ट होने से बचाने के लिए काम करने की जरूरत है। आरटीयू एक छात्र एक पेड़ अभियान चला रहा है। नीति आयोग के सलाहकार महाराष्ट्र जल बिरादरी के अध्यक्ष विनोद बोधनकर ने कहा कि समुद्र के शैवाल और धरती के पेड़ ऑक्सीज़न का स्तर वातावरण बना कर रखते हैं । प्लास्टिक कचरे ने समुद्र के लिए कुल्हाड़ी का काम किया। गलत नीतियों ने धरती की हरियाली को समाप्त किया।

चम्बल संसद की संरक्षक साध्वी हेमा सरस्वती ने जल स्त्रोतों के प्रदूषण पर चिंता जताते हुए कहा कि बार -बार आने वाले तूफान और महामारियां हमारे लिए संभलने का अवसर है। पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली की आवश्यकता है। हमारे धर्म संस्कृति में प्रकृति के पंच महाभूतों को पूजने का भाव इसीलिए था कि हम इनको भगवान मानते हुए सम्मान करें।

लघु उद्योग काउंसिल के सचिव केबी नंदवाना, आईएसटीडीे दिल्ली के चेयरमेन मुकेश जैन, आईएसटीडी के प्रो. पीके शर्मा, इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स के कोटा सेंटर के चेयरमेन आनंद वर्दवा, इंटेक के कंवीनर निखिलेश सेठी के अलावा गायत्री परिवार के मुख्य ट्रस्टी जीडी पटेल,भारत स्काउट गाईड के पूर्व मंडल सचिव यज्ञदत्त हाड़ा, डाॅ कृष्णेंद्र सिंह, राज्य वन्यजीव मण्डल के पूर्व सदस्य राजपाल सिंह, केईएसएस के राजेंद्र जैन आदि ने विचार प्रकट किए।

आईएसटीडी की माधवी सक्सेना एवं सुजाता ताथेड़ ने अतिथियों का परिचय दिया। अनिता चौहान एवं बृजेश विजयवर्गीय ने बताया कि संगोष्ठी में शिलांग, कलकत्ता, मुंबई, चंडीगढ़, बेहरामपुर, अहमदाबाद, रांची एवं पुणे सहित कई शहरों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।