आंखों की रोशनी छीन रहा ब्लैक फंगस, जानिए क्यों

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कोटा। म्यूकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) एक बेहद दुर्लभ फफुंद (फंगल) संक्रमण है। ये म्यूकर फफूंद के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्जियों में पनपता है। यह फंगस नेत्र, साइनस, दिमाग और फेफड़ों को प्रभावित करती है और डायबिटीज के मरीजों या बेहद कमजोर इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों जैसे कैंसर या एच.आई.वी. एड्स, आर्गन ट्रांसप्लांट के मरीजों में ये जानलेवा भी हो सकती है। (देखिए वीडियो)

उपचार के अभाव में म्यूकरमायकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है। सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा के नेत्र सर्जन डाॅ. सुरेश पाण्डेय के अनुसार उन्होंने पिछले दिनों में ब्लैक फंगस से संक्रमित 3 रोगी देखे गये है, जिन्हें कोरोना वायरस से पीड़ित होकर अपना उपचार करा रहे थे। इनमें से 2 रोगी डायबिटिज से पीड़ित थे एवं तीसरी रोगी गर्भवती महिला थी। इन तीनों रोगियों की एक आँख में सूजन एवं रोशनी चली जाने की शिकायत थी।

क्यों बढ़ रहा है ब्लैक फंगस का संक्रमण
कोविड-19 एवं डायबिटिज रोगियों में इम्यूनिटी कमजोर पड़ने के कारण म्यूकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) का संक्रमण बढ़ रहा है। कोरोनाकाल खण्ड में ब्लैक फंगस के मामलें उन रोगियों में अधिक सामने आ रहे है जिनको अस्पताल में आई.सी.यू. में आक्सीजन अथवा वेंटीलेटर सपोर्ट की आवश्यकता हुई है अथवा जिनकी डायबिटिज अनियंत्रित है अथवा जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। कोविड-19 के गंभीर मरीजों को बचाने के लिए स्टेराॅइड्स का इस्तेमाल फेफड़ों में सूजन को कम किया जाता है । स्टेराॅइड्स शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अतिसक्रिय हो जाती है जिसे मेडिकल भाषा में सायटोकाइन स्टाॅर्म कहा जाता है। सायटोकाइन स्टाॅर्म के दौरान स्टेरॉइड्स शरीर को कोई नुकसान होने से रोकने में मदद करते हैं। लेकिन, स्टेराॅइड्स इम्यूनिटी को कम कर सकते हैं और डायबिटीज या बिना डायबिटीज वाले मरीजों में शुगर का स्तर बढ़ा सकतें हैं।

क्या हैं ब्लैक फंगस के लक्षण
सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेज़र सेन्टर, कोटा के नेत्र सर्जन डाॅ. विदुषी पाण्डेय एवं डाॅ. सुरेश पाण्डेय के अनुसार म्यूकरमायकोसिस से संक्रमित रोगियों में चेहरे या आंखों में एक तरफ सूजन होना, झंझनाहट होना, दर्द होना, अचानक रोशनी कम हो जाना अथवा दिखाई देना बंद हो जाना, चेहरे की त्वचा पर काले निशान पड़ना, नाक ब्लॉक होना, नाक से खून या काले रंग का द्रव्य निकलना, आदि लक्षण हो सकते हैं। ब्लैक फंगस की एडवांस अवस्था में आंख एवं गाल की सूजन अधिक बढ़ जाती है एवं पलक बंद हो जाती है एवं आंखों को ऊपर नीचे दायें-बायें घुमाने की क्षमता समाप्त हो जाती है। कुछ रोगियों में रेटिना की सूक्ष्म रक्तवाहिकाओं में रक्त प्रवाह बंद होने के कारण रोशनी स्थायी रूप से चली जाती है।

क्या है उपचार: ब्लैक फंगस का उपचार नेत्र सर्जन, ईनटी सर्जन, मेक्जिलो फेशियल सर्जन की संयुक्त टीम द्वारा किया जाता है। आरंभिक अवस्था में एंटी फंगल (एम्फोटेरेसिन-बी) दवाईयों के माध्यम से उपचार किया जाता है। जिन लोगों में ब्लैक फंगस के संक्रमण की स्थिति गंभीर हो जाती है, उनमें प्रभावित डेड फंगल टिशूज को हटाने के लिए सर्जरी की भी जरूरत पड़ सकती है। कभी-कभी ब्लैक फंगस के इंफेक्शन बढ़ने पर संक्रमित अंग जैसे आँख या जबड़ा आदि को भी निकालने की आवश्यकता पड़ सकती है।

कैसे करें बचाव?
यदि आप कोरोना पाॅजिटिव है एवं अस्पताल में आक्सीजन/वेंटीलेटर सपोर्ट पर रहे है तो अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद अगले 1 माह तक विशेष सावधानी रखें। घर पर अथवा आक्सीजन कंसन्टेªटर का उपयोग कर रहे तो हिम्र्यूिडफिकेशन के लिए फिल्टर्ड पानी का उपयोग करें, नल के पानी का उपयोग नहीं करे। कोरोना का उपचार कराकर अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी मास्क का प्रयोग हमेशा करें। डिस्चार्ज होने के बाद बागवानी, घर की साफ-सफाई आदि कार्य नहीं करे। धूल-मिट्टी से बचाव करें एवं बार-बार गंदे हाथों से चेहरे एवं आँख को ना छूऐं जिससे ब्लैक फंगस के स्पोर नाक से शरीर में प्रवेश न करें। कोरोना रोगी अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद शुगर लेवल को नियंत्रित रखें। चिकित्सकीय मार्गदर्शन के अनुसार उपचार जारी रखें। कोरोना रोगी अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी सावधान रहें, चेहरे पर अथवा आंख पर सूजन आने पर अथवा नाक बंद होने डाॅक्टर की सलाह तुरन्त लेवें। ’सावधान रहें, सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, अपना ध्यान रखें।