सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर अमल रोकने के लिए केंद्र से मांगी सहमति

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नई दिल्ली। मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रह्मण्यम के एक पीठ ने जब अटार्नी जनरल को समझाया कि कानूनों पर अमल रोकने की बात वार्ता को संभव बनाने के लिए ही की जा रही है तो वेणुगोपाल ने कहा कि उन्हें सरकार से निर्देश लेने के लिए कुछ समय चाहिए।

सुनवाई के दौरान पीठ ने कई अहम टिप्पणियां भी की। मसलन पीठ ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन का तब तक अधिकार है जब तक कि किसी की जानमाल या संपत्ति के नुकसान का खतरा न हो। इस अधिकार को संतुलित करने या इसमें कटौती करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

पीठ ने देश के किसानों की दुर्दशा की बात मानी। साथ ही संकेत दिया कि उसकी इच्छा सरकार और किसानों के बीच बातचीत को आगे बढ़ाने की है। पीठ ने यह भी कहा कि गतिरोध को दूर करने के लिए एक निष्पक्ष व स्वतंत्र समिति बनाई जाएगी। किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा पी साईनाथ जैसे विशेषज्ञ भी इसमें शामिल किए जा सकते हैं। इस दौरान किसान अपना आंदोलन जारी रख सकते हैं।

वेणुगोपाल ने कहा कि राजधानी की सीमाओं पर किसानों के जमावड़े से कोविड-19 का जोखिम बढ़ा है। उनमें से कोई भी चेहरे पर मास्क नहीं लगा रहा है। बड़ी तादाद में किसान एक साथ मिल जुलकर बैठे हैं। यहां से वे अपने गांवों को जाएंगे और वहां कोरोना संक्रमण फैलाएंगे।

बेशक आंदोलन करना उनका अधिकार है पर वे औरों के मौलिक अधिकार का हनन तो नहीं कर सकते। पीठ ने कहा, ‘अगर किसानों को इतनी ज्यादा संख्या में शहर में आने की अनुमति दी गई तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि वे हिंसा का रास्ता नहीं अपनाएंगे? न्यायालय इसकी गारंटी नहीं ले सकता। न्यायालय के पास ऐसी किसी भी हिंसा को रोकने की कोई सुविधा नहीं है। यह पुलिस और दूसरे प्राधिकारियों का काम है कि वे दूसरों के अधिकारों की रक्षा करें।’ पीठ ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार का मतलब पूरे शहर को अवरूद्ध करना नहीं हो सकता।

पंजाब सरकार ने अदालत को बताया कि केंद्र और किसानों के बीच वार्ता में मददगार की भूमिका अदा करने वाले लोगों का एक समूह बनाने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर उसे कोई एतराज नहीं है। पंजाब सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि यह सरकार और केंद्र दोनों को ही तय करना है कि समिति के सदस्य कौन होंगे।

किसानों के आंदोलन के बारे में मुख्य न्यायाधीश बोले कि दिल्ली को घेरने से यहां के लोगों के भूखों मरने की नौबत आ सकती है। उससे आपका उद्देश्य पूरा नहीं होगा। वह तो बातचीत से ही पूरा हो सकता है। केवल विरोध में बैठे रहने से कोई लाभ नहीं होगा। उन्होंने यहां तक भी कहा कि वे भी भारतीय हैं। किसानों की तकलीफ से अवगत हैं। उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने अटार्नी जनरल से यह आश्वासन भी चाहा कि आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जब तक अदालत बातचीत शुरू नहीं कराती। न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि किसान कोई भीड़ नहीं हैं।

गुरुवार को अदालत ने कोई आदेश तो पारित नहीं किया पर कहा कि आगे सुनवाई शीतकाल के अवकाश के लिए गठित अवकाशकालीन पीठ करेगा। मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल से यह सवाल भी किया कि क्या किसानोें ने सारे शहर की सड़कों को अवरूद्ध कर रखा है। वेणुगोपाल ने कहा कि वे केवल हाईवे पर धरना दे रहे हैं तो न्यायमूर्ति बोबडे बोले कि टिकरी और सिंघू बार्डर ही तो पहले से अवरूद्ध हैं। पूरी दिल्ली तो अवरूद्ध नहीं है।