अब कुतुब मीनार के अंदर भी मंदिर का दावा, कोर्ट से मांगी पूजा की अनुमति

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नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी अदालती लड़ाई लड़ी जा रही है। अब ये अदालती लड़ाई राजधानी दिल्ली की पहचान माने जाने वाले कुतुब मीनार को लेकर भी छिड़ गई है। दरअसल दिल्ली की साकेत कोर्ट में मध्यकालीन समय में बनी इस ऐतिहासिक धरोहर में पूजा-अर्चना के लिए याचिका दायर की गई है।

याचिका में कहा गया है कि कुतुबमीनार में हिंदू और जैन देवी देवताओं की फिर से स्थापना किए जाने और फिर से पूजा-पाठ किए जाने का रास्ता अदालत साफ करे। याचिकाकर्ताओं का पक्ष है कि मीनार निर्माण से पहले वहां मंदिर हुआ करता था।

इसके अलावा याचिकाकर्ता चाहते हैं कि केंद्र सरकार मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाए और इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी ट्रस्ट को दे दी जाए। मांग की गई है कि कई ऐसे हिंदू देवता हैं जिनके मंदिर वहां थे, यही नहीं जैन आस्था से जुड़े मंदिर भी थे। कोर्ट से पूरे रीति-रिवाज के साथ पूजा करने की अनुमति देने की मांग की गई है।

ऐसा दावा किया जाता है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर तोड़ कर मीनार का निर्माण कराया था। वहीं, इतिहासकारों का मानना है कि लाल कोट के अवशेषों के ऊपर मीनार का निर्माण कराया गया था।

कुतुब मीनार के बारे में संक्षिप्त जानकारी
महरौली स्थित कुतुब मीनार को वैश्विक धरोहर का दर्जा प्राप्त है। 72.5 मीटर की ऊंचाई वाली ये मीनार ईंटों की बनी हुई दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है। कुल 379 सीढ़ियों का निर्माण इसमें किया गया है। 1199 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस मीनार का निर्माण शुरू करवाया था। बाद में इल्तुतमिश ने बाकी का निर्माण कार्य पूरा किया था। 1220 में मीनार का काम पूरा हुआ था।

कुतुब कॉम्पलैक्स में कुतुब -उल-इस्लाम मस्जिद भी है जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1198 में किया था। दावा किया जाता है कि ये मस्जिद हिंदू मंदिरों के अवशेषों पर खड़ी कर बनाई गई। कॉम्प्लैक्स में लौह स्तंभ भी है जो कि चौथी शताब्दी का है। हालांकि बाद में मीनार के आस-पास तुगलक औैर लोदी वंश के बादशाहों ने भी निर्माण कार्य कराया था।