मुंबई। पूंजी बाजार नियामक (सेबी) ने फाइनलाइसिस क्रेडिट एंड गारंटी कंपनी लि. सहित 13 अन्य कंपनियों को पूंजी बाजार में कारोबार करने पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध इन कंपनियों द्वारा नकली कंसोलिडेटेड शेयर सर्टिफिकेट्स को जारी करने के कारण लगाया गया है। सेबी ने मंगलवार की देर रात 86 पेज का आदेश जारी किया है।
सेबी ने अपने सर्कुलर में कहा है कि इस आदेश के बाद इन कंपनियों के अधिकारी किसी और लिस्टेड या रजिस्टर्ड इंटरमीडियरीज में पांच साल तक के लिए न तो डाइरेक्टर हो सकते हैं और न ही किसी प्रमुख पद पर हो सकते हैं। इसके अलावा उपरोक्त कंपनियों में से चार कंपनियों ने अवैध तरीके से पैसे भी कमाए। सेबी ने इस मामले में नवंबर 2014 में जांच शुरू की थी। इसके बाद इन कंपनियों को ओरिजिनल पब्लिक शेयरधारकों को फर्जी शेयर सर्टिफिकेट जारी करने का आरोपी पाया गया। यह सर्टिफिकेट 2012 में जारी किए गए थे।
नकली सर्टिफिकेट को ओरिजिनल बनाकर बेचा जाता था
सेबी के आदेश के मुताबिक इसके बाद नकली कंसोलिडेटेड शेयर सर्टिफिकेट को बेचा गया, जिसमें खरीदार ने उससे ओरिजिनल सर्टिफिकेट बनाकर यह साबित किया कि यह शेयर सर्टिफिकेट उसे ट्रांसफर किया गया है। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं हुआ था। इन सबके आधार पर सेबी ने फाइनलाइसिस और पांच व्यक्तिगत लोगों दिलीप शाह, उनके बेटे जिगर शाह, बिपिन डिवेच्छा, शरद गाढी औऱ शाम गांधी पर पांच साल तक बाजार में कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया।
8 लोगों पर 3 साल तक का प्रतिबंध
इसके अतिरिक्त सेबी ने 8 अन्य लोगों मोहम्मद रफी, रोमा खान, मोहम्मद सलीम खान, आमिर हमजा, हकीम खान, अब्दुल हकीम खाम, अब्दुल जमीर हकीम खान, तलत वहादतअली और मोहम्मद रेहाना खान को तीन सालों के लिए बाजार से कारोबार करने पर प्रतिबंध कर दिया है। इसके अलावा सेबी ने दिलीप शाह से 3.9 करोड़ रुपए और जिगर शाह से 66.42 लाख रुपए लौटाने को भी कहा है। गांधी से 45.55 लाख रुपए और डिवेच्छा से 9.45 लाख रुपए लौटाने को कहा है।
बीएसई पर फिर से कंपनी को लिस्ट कराया गया
जांच में यह पाया गया कि शाह और गांधी के पास हालांकि सीमित शेयर ही थे। लेकिन वे लगातार पब्लिक शेयरधारकों को बिना किसी मंजूरी या जानकारी के शेयर सर्टिफिकेट बेच देते थे। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि जिन कंपनियों के पास फाइनलाइसिस के शेयर थे, उसको बेचकर पैसे ले लिए जाएं। सेबी ने अपने 86 पेज के ऑर्डर में कहा है कि शाह और गांधी दोनों विनायक सारखोट के संपर्क में थे। विनायक फाइनलाइसिस में कंपलायंसेस अधिकारी हें। वे उनसे कंपनी को बीएसई पर फिर से लिस्ट कराकर 93 प्रतिशत शेयर बेचे थे, जो पब्लिक शेयर धारकों के पास थे।
एक ही व्यक्ति बार-बार विटनेस बना
इसी तरह डिवेच्छा ने 93 प्रतिशत शेयर कंपनी के खरीदे थे। सेबी की जांच में पता चला कि दोनों ओर से ईमेल का आदान-प्रदान हुआ। साथ ही ड्राफ्ट एमओयू भी सभी कंपनियों को दिया गया जिसमें 93 प्रतिशत शेयर के लिए शाह, गांधी, सारखोट और गाढी को विक्रेता दिखाया गया। जबकि डिवेच्छा को खरीदार दिखाया गया। साथ ही ओरिजिनल शेयर सर्टिफिकेट को फर्जी तरीके से बनाकर उससे भी इन लोगों ने पैसे कमाए। शेयर ट्रांसफर डीड्स में एक ही व्यक्ति को बार बार विटनेस के रूप में पेश किया गया। इन शेयरों को बाजार मूल्य से कम पर बेचा गया था।
दो लोगों की पहले ही हो गई थी मृत्यु
सेबी ने कहा कि हालांकि एमडी सज्जाद पावने शेयर सर्टिफिकेट के नकली कारोबार में शामिल नहीं थे, लेकिन उन्होंने यह जानते हुए भी 8 कंपनियों को शेयर ट्रांसफर को मंजूरी दी कि इस संबंध में ओरिजिनल शेयरधारकों ने शिकायत दर्ज कराई है। सेबी ने पावने और सारखोट पर कोई जुर्माना या सजा नहीं सुनाई क्योंकि इन दोनों का पहले ही निधन हो चुका है।