दयाहीन मनुष्य तिरस्कार के पात्र: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा।महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर गुरुवार को माताजी के सान्निध्य में अभिषेक, पूजा प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें स्वस्ति मंगल पाठ तथा परमर्षि स्वस्ति मंगल पाठ, नवदेवता पूजन के बारे में जानकारी दी गई।

इस दौरान माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि प्राणीमात्र के प्रति दया और लक्षणा का बर्ताव रखना ही धर्मात्मा जीवों की पहचान है। धर्म की जड़ दया ही है। इसलिए जीव दया का पालन करना सर्वोच्च धर्म है। माताजी ने कहा कि दया जीवन में महानता लाती है, सम्मान दिलाती है, प्रेम और वात्सल्य का पात्र बनाती है। दयाहीन मनुष्य इस संसार में भी तिरस्कार के पात्र होते हैं और दुर्गति के साथ दुखों को प्राप्त होते हैं।

संसार में दूसरों पर दया करने वाले जीव बहुत बिरले हैं, दूसरों को सताने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। सताने की प्रवृत्ति तो पूर्व के संस्कार से स्वयं आ जाती है पर प्रेम, दया और वात्सल्य की प्रवृत्ति के लिए संतों को उपदेश देना पड़ता है। जब स्वयं की पीड़ा की तरह हमें अन्य जीवों की पीड़ा महसूस होने लगती है, तब अंतरंग में दया का भाव पैदा होता है। जैसा व्यवहार या बर्ताव हम अपने साथ चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार आप दूसरों के साथ करना सीख लो तो आप एक अच्छे इंसान बन जाएंगे।

आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी पावन वर्षायोग समिति के अध्यक्ष नवीन जैन दौराया तथा मंत्री पारस जैन लूंग्या ने बताया कि सुधासागर महाराज और आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी की प्रेरणा से महावीर नगर विस्तार योजना दिगम्बर जैन समाज के द्वारा 25 हजार रूप्ए की राशि सांगली महाराष्ट्र में बाढ राहत के लिए भेजे गए हैं।