तनाव रहित जीवन की कला सिखाता है स्वाध्याय: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर शुक्रवार को माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि ईश्वर की आराधना मन, मस्तिष्क और स्वास्थ्य के लिए हितकर होती है।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने भी माना है कि प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर किए जाने वाले सस्वर देव पूजन-भक्ति, स्तुति पाठ शरीर में कोलेस्ट्रोल व हानिकारक द्रव्यों की मात्रा में कमी करते हैं।

इन क्रियाओं के माध्यम से शरीर में कषायों को बढ़ाने वाले हानिकारक हारमोंस का स्राव बंद हो जाता है। जिससे फेफड़े, हृदय व पाचन तंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है। इसी प्रकार स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान तनाव मुक्ति के लिए उत्कृष्ट समाधान प्रस्तुत करता है तथा तनाव रहित जीवन की कला सिखाता है।

उन्होंने कहा कि जैन दर्शन सर्वज्ञता के सिद्धांत को मानता है। सर्वज्ञ पर विश्वास करने वाला कभी संकटग्रस्त नहीं हो सकता है। तत्वज्ञानी सम्यकदृष्टि रखते हैं और किसी भी घटना, परिस्थिति को लेकर आश्चर्यचकित या दुखी नहीं होते हैं। जैन दर्शन अकर्तावादी दर्शन है। व्यर्थ के तनाव-अवसाद से मनुष्य दूर रहता है।

इनके अलावा, भगवान आदिनाथ स्वामी ने चित्त की निर्मलता व एकाग्रता को बढ़ाने के लिए सस्वर पूजन, पाठ, भक्ति, स्वाध्याय, मंत्रजाप व ध्यान, योग पर भी बल दिया है। इससे पहले मंगलाचरण के साथ भजनों की प्रस्तुति दी गई।