कोटा। दिगंबर जैन मन्दिर महावीर नगर विस्तार योजना में चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि हमारे कर्म दुखों का कारण हैं और इनसे निवारण के लिए धर्म की शरण में जाना पड़ता है।
सांसारिक व्यक्ति धन और मौजमस्ती को सुख मानकर उसी का अहंकार करता रहता है। भ्रमवश परछाई को सुख मानने से उसका धर्म भी व्यर्थ चला जाता है। जिस प्रकार दर्पण में मुख नहीं होता है, लेकिन दिखता है। उसी प्रकार संसार में सुख नहीं है, लेकिन दिखता रहता है। सच्चा सुख तो मोक्ष और सिद्धालय में है।
इस अवसर पर कैलाशचन्द जैन, संजय जैन, मुकेश कुमार जिठानीवाल, हेमंत डूंगरवाल, पावन वर्षायोग समिति के अध्यक्ष नवीन जैन दोराया, महामंत्री पारस जैन, कार्याध्यक्ष पवन ठोला, अनिल जैन, अनिल चेलावत, सुनील जैन, मयूरी खटोड़, ललित लूंग्या, विनोद जैन, हुकुमचंद हरसौरा, रमेशचन्द दौराया, पारसचन्द ठग, पदमचन्द जैन समेत कईं लोग मौजूद रहे।