कोटा। ट्रेन-18 की कोटा रेल मंडल में ट्रायल के लिए रेलवे बोर्ड व आरडीएसओ ने 25 दिन का समय तय किया था। लेकिन, कोटा मंडल के परिचालन, इंजीनियरिंग सहित अन्य विभागों के अधिकारियों के तालमेल से 12 दिन में ही ट्रायल पूरी कर इतिहास रच दिया है। साथ ही रैक दिल्ली इसलिए समय से पहले दे दिया गया ताकि ट्रेन को नियमित सेवा के रूप में शुरू करने के लिए रेलवे बोर्ड को पर्याप्त समय मिल सके।
ट्रेन-18 का रैक कोटा में 26 नवंबर को पहुंच गया था। उसकी पहले तकनीकी जांच प्रक्रिया चलती रही। इस बीच कोटा रेल मंडल के अधिकारियों ने आरडीएसओ की टीम के सदस्यों व इंट्रीगल कोच फैक्ट्री के अधिकारियों से चर्चा कर ट्रॉयल की प्लानिंग की। उनसे रिक्वायरमेंट के बारे में पूछा गया।
इसके बाद कोटा-सवाईमाधोपुर व कोटा शामगढ़ रेल खंड पर ट्रॉयल के लिए पीडब्ल्यूआई, गेटमैनों व रेलवे स्टेशन मास्टरों को अलर्ट किया गया। दोनों सेक्शन में कॉशन ऑर्डर समाप्त किए गए। साथ ही ट्रैक की मरम्मत का काम पूरा करवाया। ट्रॉयल का प्रोग्राम इस तरह से तय किया गया कि निर्धारित समय से पहले ही काम पूरा कर लिया गया।
ट्रेन को दोनों सेक्शन में अलग-अलग गति से चलाया गया। ट्रेन की अधिकतम स्पीड 180 किमी प्रतिघंटे रखी गई। ट्रेन के ब्रेकिंग सिस्टम को चैक किया गया। ऑक्सीलेशन देखा गया। ट्रेन की परफॉर्मेंस टेस्ट की गई। रेडियो फ्रिक्वेंसी टेस्ट किया गया। (देखिये वीडियो)
प्वाइंट पर लगाए ताले : ट्रेन-18 को जब 130 किमी प्रतिघंटे की स्पीड से अधिक स्पीड से चलाया गया तो सेक्शन के प्वाइंट को ताला लगाया गया। इसके लिए प्वाइंट के पास ही रेलकर्मचारियों को तैनात किया गया। साथ ही जिन इलाकों में ट्रेन की चपेट में आकर मवेशी मारे जाते हैं। उन इलाकों को पहले से चिन्हित करके रेल कर्मियों को लगाया गया।
पीछे चलाई गई थी टावर वैगन : ट्रेन-18 की जिस सेक्शन में ट्रॉयल की जाती थी। उसके पीछे टावर वैगन को चलाकर ट्रैक को चैक किया जाता था। ट्रैक सभी तरह से फिट है। इस बारे में सर्टिफिकेट मिलने पर ही दूसरी ट्रेन को उस लाइन पर चलाया जाता था।