राजस्थान में कारोबारियों के लाखों रुपए सी-फार्म में अटके

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जयपुर। जीएसटी को भले ही सरकार ने लागू कर दिया है लेकिन अब भी इससे पहले की व्यवस्था के तहत प्रभावी सी-फार्म प्रणाली में प्रदेश के कारोबारियाें के लाखों रुपए अटके हुए हैं। जीएसटी-पूर्व की व्यवस्था में इसके माध्यम से प्रदेश के बाहर के सरकारी विभागों में सप्लाई करने वाले काराेबारियों को अब तक इसके तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिल सका है।

फैडरेशन आॅफ राजस्थान ट्रेड एंड इंडस्ट्री के अनुसार प्रदेश की इलेक्ट्रानिक्स, ट्रांसफोर्मर, कंसस्ट्रक्शन सेक्टर, सीमेंट और स्टोन सेक्टर से जुड़े हजारों कारोबारियों ने सी-फार्म प्रणाली के तहत अपने माल की आपूर्ति और सेवाएं प्रदान की थी लेकिन पांच साल से अधिक समय हो जाने के बाद भी अब तक संबंधित सरकारी विभागों से उन्हें इस मामले में राहत नहीं मिली है जिससे उनकी काफी बड़ी राशि अटक गई है।

चक्कर काट रहे कारोबारी : फोर्टी अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल के अनुसार सरकार को करोड़ों का कर देने वाले इन पंजीकृत करदाताओं के लिए सी फॉर्म किसी सिरदर्द से कम नहीं रह गया है। बकाया राशि के लिए ये कारोबारी राज्यों के चक्कर काट रहे हैं।

सीए और जीएसटी विशेषज्ञ केशव गुप्ता के अनुसार पहले सीएसटी कानून होने के कारण पेट्रोल और एचएसडी इंडस्ट्रीज को सी फार्म पर मिल जाता था जिसकी वजह से इंडस्ट्रीज को खरीद के समय सिर्फ दो फीसदी टैक्स देना पड़ता था। लेकिन जीएसटी आने से पुराने वैट और सीएसटी कानून खत्म हो गए और अब राजस्थान सेल्स टेक्स विभाग ने पेट्रोल आैर एचएसडी के लिए सी फार्म इश्यू करना बंद कर दिया है। सी फार्म ना देने की समस्या हर राज्य में हुई है।

इंडस्ट्रीज ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में रिट लगाई है। पंजाब हाई कोर्ट ने इस मामले में सरकारी विभाग के खिलाफ आदेश दिया। राजस्थान हाई कोर्ट जोधपुर ने भी मई 2018 में रिट के जरिये एेसे ही आदेश पारित किए और विभाग को सी फार्म इश्यू करने के आदेश देने पड़े।

फोर्टी अध्यक्ष अग्रवाल के अनुसार सरकार इस मुद्दे को समझते हुए सभी इंडस्ट्रीज को सी फार्म अलाउ करे। कुछ राज्यों ने ऐसे ही प्रावधान कानून में किए भी हैं।

क्या है सी फॉर्म
पूर्ववर्ती सीएसटी अधिनियम 1956 के अंतर्गत जब कोई पंजीकृत बिक्री करदाता दूसरे राज्य के पंजीकृत बिक्री करदाता से माल खरीदता था तो उसे बिक्री कर देना होता था। इस बिक्री कर की दर को कम कराने के लिए सी फार्म (वाणिज्यिक कर प्रपत्र) जारी कराना होता था जिससे कर की दर कम हो जाती थी।

गौरतलब है कि सी फॉर्म देने पर किसी कंपनी द्वारा खरीदे गए माल पर 2 प्रतिशत सीएसटी लगता था, नहीं तो 18 से 20 फीसदी तक का पूरा बिक्री कर देना होता था।