नई दिल्ली। Foreign Exchange Reserves: भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में हाल के दिनों में लगातार गिरावट आ रही है। तीन जनवरी 2025 को समाप्त हुए सप्ताह में यह 634.6 अरब डॉलर पर आ गया, जो 27 सितंबर 2024 के 704.9 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर से काफी नीचे है।
पिछले 14 हफ्तों में भारत ने 70 अरब डॉलर से अधिक भंडार गंवा दिया है। विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे लंबी साप्ताहिक गिरावट 11 मार्च 2022 से 13 मई 2022 तक चली, जो कुल 30 सप्ताह तक रही। हालांकि, इस अवधि में वृद्धि वाले कुछ सप्ताह भी शामिल हैं लेकिन इनकी संख्या कम है। इसके मुकाबले, 4 अक्तूबर 2024 से 22 नवंबर 2024 तक की गिरावट चौथी सबसे लंबी रही।
29 नवंबर 2024 को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार में वृद्धि देखी गई थी, जिसके कारण इसके बाद की गिरावट को पिछली लगातार गिरावट के साथ नहीं जोड़ा गया। हालांकि, यदि गणना के मानदंडों को थोड़ा शिथिल करके भंडार में एक सप्ताह की वृद्धि को भी शामिल कर लिया जाए तो पिछले साढ़े तीन महीनों की गिरावट पांचवां सबसे लंबा दौर बन जाएगी। यह 14 सप्ताह की गिरावट होगी।
हालांकि, मौजूदा गिरावट सबसे लंबी अवधि की भले ही न हो लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार के मूल्य के अनुसार दूसरी सबसे बड़ी गिरावट बन चुकी है। 4 अक्टूबर 2024 से 03 जनवरी 2025 के 14 सप्ताह के दौरान मुद्रा भंडार में 70.3 अरब डॉलर की कमी आई है। इससे पहले सबसे बड़ी गिरावट 71.4 अरब डॉलर की थी, जो 3 जून 2022 से 4 नवंबर 2022 के बीच 23 सप्ताह की अवधि में दर्ज की गई थी।
विश्लेषण से पता चलता है कि मुद्रा भंडार में सबसे तेज गिरावट 26 सितंबर 2008 से 12 दिसंबर 2008 के बीच हुई थी, जब वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान यह 15.8 प्रतिशत फीसदी तक लुढ़क गया था। इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी गिरावट 11.9 प्रतिशत की थी, जो 3 जून 2022 से 11 नवंबर 2022 के बीच दर्ज की गई थी। इसका कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में तेज वृद्धि को माना गया था।
मौजूदा गिरावट तीसरी सबसे महत्वपूर्ण मानी जा सकती है, क्योंकि 4 अक्तूबर 2024 के बाद से कुल भंडार में लगभग 9.97 प्रतिशत की कमी आई है। आरबीआई के अनुसार, 22 नवंबर 2024 तक भारत के पास 11 महीनों के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त भंडार था, जो मार्च 2024 में 11.3 महीनों से मामूली कमी दर्शाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विश्लेषकों का मानना है कि विदेशी निवेश में कमी और आयात की बढ़ती लागत ने इस स्थिति को प्रभावित किया है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये की विनिमय दर में गिरावट की अनुमति दी है ताकि बाजार में स्थिरता लाई जा सके। हालांकि, यह कदम अल्पकालिक राहत प्रदान कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए व्यापक आर्थिक सुधारों की आवश्यकता होगी।
गिरावट के मुख्य कारण
- डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी
- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट
- रुपये को संभालने के लिए आरबीआई का हस्तक्षेप
- आयात बढ़ना और निर्यात घटना