Bhagwat Katha: श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह के प्रसंग से भक्त हुए भावुक

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कोटा। Bhagwat Katha: श्री महर्षि दधीचि छात्रावास में भागवत कथा के छठे दिवस आचार्य पंडित कौशल किशोर दाधीच (रायथल) ने श्रीकृष्ण -रुक्मिणी विवाह प्रसंग को विस्तार से सुनाया। अतिथि संदीप शर्मा, पंकज मेहता, राकेश जैन रहे।

आचार्य पंडित कौशल किशोर दाधीच ने श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के पवित्र विवाह का वर्णन अत्यंत रोचक और भक्तिमय ढंग से प्रस्तुत किया।

रुक्मिणी का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम
रुक्मिणी विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं, जो रूप, गुण और सद्गुणों में अनुपम थीं। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के बारे में सुना और मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया। रुक्मिणी का हृदय श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित था। लेकिन उनके भाई रुक्मी, जो श्रीकृष्ण के शत्रु थे, ने उनकी शादी चेदि राजा शिशुपाल से तय कर दी।

रुक्मिणी का प्रेम-पत्र और निवेदन
रुक्मिणी ने अपने दूत के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी व्यथा व्यक्त की और श्रीकृष्ण से आग्रह किया कि वे आकर उन्हें शिशुपाल के विवाह से मुक्त करें। पत्र में रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानते हुए उन्हें अपनी रक्षा करने के लिए प्रार्थना की।

रुक्मिणी हरण और रुक्मी से युद्ध
रुक्मिणी को हरने के बाद भगवान श्रीकृष्ण विदर्भ से द्वारका की ओर चल पड़े। इस बीच, रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने अपनी सेना के साथ श्रीकृष्ण का पीछा किया। श्रीकृष्ण ने रुक्मी को पराजित किया, लेकिन रुक्मिणी के आग्रह पर उसका वध नहीं किया। उन्होंने रुक्मी को जीवनदान देकर उसे वापस भेज दिया।

द्वारका में विवाह
द्वारका पहुंचने पर भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी का विधिवत विवाह संपन्न हुआ। इस विवाह ने न केवल प्रेम और भक्ति की अनूठी मिसाल पेश की, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि भगवान अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं।