कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर शनिवार को आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर बोलते हुए कहा कि आज का मनुष्य जीवन में हर काम हार व जीत के लिए करता है और परेशान रहता है।
हमें हार जीत के लिए नहीं सफलता के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में शिक्षण में हार -जीत का सिलसिला चल रहा है। शिक्षा ज्ञान का साधन थी, वह धनोपर्जान का केन्द्र बन गई है और शिक्षण में हार-जीत के लिए कार्य हो रहा है। जबकि शिक्षा का अर्थ दिखावा नहीं होता, अपितु ज्ञान अर्जित करना होता है।
जीत व हार में दूसरे को नीचा दिखाने की भावना होती है। जबकि सफलता में स्वहित व पर हित की भावना भी होती है। पहले गुरूकुल हुआ करते थे जहां राम व कृष्ण ने ज्ञान प्राप्त किया। आज शिक्षण केन्द्र जो ज्ञान नहीं किताबी शिक्षा देते हैं। शिक्षण केन्द्र मात्र डिग्री के लिए खोले जाते हैं। पहले ज्ञान के लिए शिक्षण केन्द्र होते थे। हर व्यक्ति डिग्री के पीछे भाग रहा है परन्तु ज्ञान व संस्कार से वह दूर होता जा रहा है।
उन्होने कहा कि मानव का प्रारंभ व अंत एक सा होता है। प्रांरभिक अवस्था में बच्चे के दांत नही होते तो बुढापे में दांत टूट जाते हैं। इंद्रिया शिथिल हो जाती हैं। बचपन में ऐसा ही होता है। बचपन ज्ञान नही अबोधपन होता है, वृद्धावस्था मे स्मरण शाक्ति की कमी होती है।
इस अवसर पर सकल समाज के पूर्व अध्यक्ष राजमल पाटोदी, पीयूष बज, राकेश चपलमन, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि—सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला सहित कई शहरो के श्रावक उपस्थित रहे।